पिछले कुछ समय से कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या में गिरावट एवं सक्रिय मामलों में कमी आने से यह उम्मीद जगी है कि कोरोना महामारी पर जल्द ही काबू पा लिया जाएगा,लेकिन अभी इसको लेकर आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता कि ऐसी स्थिति कब रहेंगी? आम जनमानस को कोरोना वायरस से उपजी कोविड-19 महामारी पर लगाम लगने के स्पष्ट संकेत न मिल जाएं, तब तक शासन-प्रशासन के साथ आम जनता के लिए भी सतर्कता बनाए रखना आवश्यक है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के खिलाफ बचाव को लेकर एक जन आंदोलन की शुरुआत की। प्रधानमंत्री की इस बात को गंभीरता से लेने की जरूरत है कि जब तक तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं।

कोरोना संक्रमितों की संख्या में गिरावट के बाद भी सतर्कता की इसलिए भी जरूरत है,क्योंकि मौसम में बदलाव के नवरात्र,दशहरा, दीपावली जैसे बड़े पर्व भी निकट आ रहे हैं। मौसम परिवर्तन देश के एक बड़े हिस्से में वायु प्रदूषण को बढ़ा सकता है जिस कारण यह स्थिति कोरोना संक्रमितों के लिए घातक साबित हो सकती है। इसी तरह त्योहारों के अवसर पर शारीरिक दूरी के उल्लंघन के कारण भी कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ सकता है।

लॉक डाउन एवं अनलॉक के प्रतिबंधों में भारत के दक्षिणी राज्य केरल में ओणम और महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी के आयोजनों के बाद कोरोना संक्रमितों में लगातार वृद्धि देखी गई। इसमें सतर्कता की आवश्यकता है इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। शायद इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के खिलाफ बचाव को लेकर एक जन आंदोलन की शुरुआत की। प्रधानमंत्री की इस बात को गंभीरता से लेने की जरूरत है कि जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं।

केरल और महाराष्ट्र के लोगों ने जो गलती की, उससे शेष देश के शेष भाग में रहने वाले लोगों को सबक इसलिए भी लेना चाहिए कि अभी इस बारे में सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता कि कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर नहीं आएगी। दुनिया के दूसरे देशों का अनुभव यह कहता है तो यही कि अपने देश में भी संक्रमण की दूसरी लहर सिर उठा सकती है। देश में रफ्तार पकड़ती आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियां फिर से शिथिल हो सकती हैं। इसकी नौबत नहीं आने देनी चाहिए।

संक्रमण की दूसरी लहर भारत की अर्थव्यवस्था पर ही नए सिरे से बुरा असर डालेगी, बल्कि महामारी से निपटने में लगे स्वास्थ्य तंत्र के लिए भी एक प्रकार से बोझ साबित होगी। यह सही है कि लोग महामारी से उपजी परिस्थितियों का सामना करते-करते उभ चुके हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि संयम और सतर्कता का साथ छोड़ दिया जाए।

भारत सरकार द्वारा लॉक डाउन और अनलॉक के प्रतिबंध हटाने के बाद सार्वजनिक स्थलों पर लोग शारीरिक दूरी के प्रति उतने सतर्क नहीं दिखते,जितना उन्हें दिखना चाहिए। इसी तरह बहुत से लोग मास्क का सही तरह से उपयोग करने में लापरवाह हो रहे हैं और वह भी तब, जब इससे वे भली-भांति अवगत हैं वे इस लापरवाही से अपने साथ-साथ अपनों को भी खतरे में डालने का काम करते हैं।
कमल किशोर डुकलान, रुड़की (हरिद्वार)