डॉ.वीरेन्द्र बर्त्वाल,देहरादून

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने स्वयं को चुनावी रंग-ढंग में ढालना शुरू कर दिया है। भावनात्मक मसलों के जरिये जनता का प्रिय बनने का प्रयास करना हरीश रावत का शगल है। इस बार उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट के माध्यम से यह साबित करने का प्रयास किया है कि उनका झुकाव मुस्लिमों की तरफ नहीं है, परंतु राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने भी फेसबुक पर ही इसका करारा जवाब दिया है।
यह मानव स्वभाव है कि उसे जिस चीज का डर होता है, वह उससे छिपाए नहीं छिपती। हरीश रावत पर लंबे समय से आरोप लगते आ रहे हैं कि वे मुस्लिम तुष्टिकरण कुछ अधिक ही करते हैं। जाहिर सी बात है कि भाजपा पर हिंदुत्ववादी तमगा लगा होने के कारण हरीश रावत ने राजनीतिक फायदे के लिए यह रास्ता अख्तियार किया हो, लेकिन उत्तराखंड जैसे आपसी प्यार-प्रेम के वातावरण वाले राज्य में हरीश रावत को फायदे के बजाय इसका नुकसान होने लगा। सोशल मीडिया पर भी इसकी आलोचना होने लगी। एनडी तिवारी और विजय बहुगुणा जैसे कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने भी कभी यह पत्ता नहीं खेला।
अब हरीश रावत ने चुनाव नजदीक आते देख इस मसले पर इसलिए सफाई देनी शुरू कर दी, ताकि उन्हें मुसलमान और हिंदू दोनों की ओर से सहानुभूति और वोट दोनों का लाभ मिले। उन्होंने इस आशय की एक पोस्ट डाली कि जब दरगाह में खींची गयी एक फोटो पर मुझे मौलाना हरीश रावत कहा जाने लगा तो मुस्लिम टोपी के साथ कुछ भाजपाइयों की फोटो पर क्या आप उन्हें भी ऐसे नाम से पुकारेंगे?
इस पर सांसद अनिल बलूनी ने सटीक प्रत्युतर दिया है। उन्होंने लिखा है-
आदरणीय रावत जी, आज आपने फिर बड़ी सफाई के साथ कांग्रेस की डूबती नैया बचाने के लिए हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेला है। इस कार्ड को आप अपनी ‘ राजनीतिक संजीवनी ‘ मानते आए हैं। स्वाभाविक है सत्ता पाने के लिए कांग्रेस बार इस धार्मिक कार्ड का उपयोग करती आई है। इसके अनगिनत उदाहरण हैं।
जनता को याद है जब आपने मुख्यमंत्री रहते हुए जुमे की नमाज के लिए छुट्टी का आदेश निकाला था। आप बार-बार विशेष संदेश देने के लिए निरन्तर मुस्लिम धार्मिक स्थानो की यात्रा करते रहते थे, मदरसों का गुणगान करते थे। हम सभी को देश का नागरिक मानते, सबके लिए बराबर मनोभावों रखते है। आज देश मे सबकी सरकार हैं। बिना भेद-भाव और तुष्टीकरण के देश आगे बढ़ रहा है।