✍️ सुभाष चन्द्र जोशी ©
नेपाल के सुदूर जिले से अपने पिताजी के साथ काम के लिए भारत आये थे काली और हीरा। उस समय काली 12 वर्ष का और हीरा 10 वर्ष का था। पिताजी के साथ ही भारत आकर मजदूरी करने लगे थे दोनों। एक दिन काली और हीरा अपने पिताजी के साथ काम के लिए हमारे गाँव आये। उनके पिताजी की भेंट मेरे दादाजी से हुई। दादाजी ने पूछा ‘‘ये दोनों कौन है।’’ दल बहादुर बोला साहब ‘‘यह दोनों मेरे बेटे हीरा और काली है।’’ दादाजी ने पूछा इन ‘‘दोनों को स्कूल नहीं भेजते हो।’’ दल बहादुर बोला ‘‘स्कूल जायेंगे तो काम कौन करेगा। काम नहीं करेंगे, तो परिवार का गुजर बसर कैसे होगा। बड़ा परिवार है, दो पत्नियाँ है साहब मेरी; दल बहादुर बोला और इन दोनों को मिलकार छः बेटा-बेटी है। अब आप ही बताईये क्या करें कैसे भेजे स्कूल ? यह दोनों ही बड़े हैं और काम के लिए भारत आये हैं।’’ दादाजी ने बोला ‘हमारे यहाँ काम करोगे, दल बहादुर ने कहा ‘हाँ साहब।’
दादाजी ने घर का काम, खेती और दुकान के काम के लिए तीनों को काम पर रख लिया और रहने के लिए घर भी दे दिया। बहुत दिनों बाद दादाजी ने दल बहादुर को बुलाकर कहा ‘‘काली और हीरा को स्कूल भेजना है।’’ दल बहादुर बोला ‘‘साहब फिर काम कौन करेगा।’’ दादाजी बोले ‘‘स्कूल भी जायेंगे और काम भी होगा।’’ दादाजी ने दोनों को दाखिला स्कूल में करवा दिया। वह दोनों नेपाल में पाँचवीं तक पढ़ पाये थे। दादाजी ने उन दोनों का दाखिला हेडमास्टर से कहकर 6वीं कक्षा में करवा दिया।
दल बहादुर मेहनती और ईमानदार था। वैसे ही काली और हीरा भी था। हीरा को नेपाल की याद बहुत आती थी। वह बार-बार नेपाल जाने की भी बातें करता रहता था। दादाजी के स्नेह और उनके प्रति लगाव के कारण वह दोनों दादाजी के साथ ही ज्यादा रहते थे। दादाजी जो भी उन दोनों को छोटे-छोटे काम बताते थे वह दोनों का पूरा कर देते थे। पर काली और हीरा से कोई बड़ा काम नहीं करवाया जाता था। मेरे ताऊजी, पिताजी और चाचाजी के साथ वह भी पढ़ते और सुबह खाना खाकर स्कूल जाते थे और फिर घर आकर खाना खाते। दोनों की अब यह दिनचर्या बन गयी थी। दोनों ने आठवीं की परीक्षा पास कर ली थी।
एक दिन दल बहादुर दादाजी के पास आया और नेपाल जाने की बात करने लगा। दादाजी ने पूछा कोई विशेष बात है। दल बहादुर बोला चिठ्ठी आयी थी पिताजी की तबियत बहुत खराब है। तो मुझे जाना ही पड़ेगा। हीरा भी जिद्द करने लगा नेपाल जाने के लिए। पर काली को तो यही अच्छा लग रहा था। दरअसल हीरा को अपनी माँ से बहुत लगाव था। दल बहादुर नेपाल अपने गाँव चला गया। बहुत दिनों बाद चिठ्ठी आयी कि दल बहादुर के पिताजी का देहान्त हो गया। दल बहादुर के पिताजी के मरने के बाद घर को सम्भालने की पूरी जिम्मेदारी उस पर आ गयी थी। इसलिए दल बहादुर लौटकर वापस नहीं आ पाया। काली और हीरा दोनों अब दादाजी के शरण में थे। पर दादाजी ने दोनों को अपने बच्चों की तरह पढ़ाया। दोनों ने दसवीं की परीक्षा पास कर ली। दसवीं पास करने के बाद हीरा ने नेपाल जाने की इच्छा जताई और बोला ‘दादाजी मैं जल्दी आ जाऊँगा।’ पर काली को यहीं दादाजी के साथ रहना था। हीरा अगले दिन नेपाल के लिए निकल पड़ा।
अब काली भले अकेला पड़ गया था, पर उसे सभी परिवार वाले बहुत अच्छा मानते थे। सभी उसे अपने परिवार का सदस्य मानते थे। बस कुछ दिनों में काली भी सब कुछ भूल गया और अपनी पढ़ाई करने लगा। काली पढ़ाई के साथ दादाजी के साथ काम भी कर लेता था। उसका शरीर बहुत मजबूत था और वह खुश मिजाजी था। बस वह तक बहुत नाराज हो जाता था जब कभी कोई उसे ‘‘डोटयाल’’ कहता था। पहाड़ में हर नेपाली को ‘‘डोटयाल’’ कहते हैं। ‘‘डोटयाल’’ बोलना नेपालियों को अच्छा नहीं लगता था। दरअसल नेपाल में ‘‘डोटी’’ एक पिछड़ा जिला था। इसलिए किसी भी नेपाली को ‘‘डोटयाल’’ बोला जाना अच्छा नहीं लगता था। पर काली के लिए धीरे-धीरे यह बात आम हो गयी थी। काली गाँव के लोगों के साथ घुल-मिल गया था। उसने 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद दुकान का काम सम्भाल लिया।
हीरा और दल बहादुर लौट कर वापस नहीं आये। बहुत समय बाद हीरा फिर गाँव आया। अब हीरा भी जवान हो गया था और हीरा ने नेपाल में विवाह कर लिया था। अब काली की के मन में भी विवाह की इच्छा जागने लगी थी, क्योंकि काली हीरा से उम्र में बडा था। नेपाल में छोटी उम्र में ही विवाह हो जाता है। काली को तो भारत में ही रहना था। इसलिए वह अपनी इच्छा प्रकट नहीं कर पाया। अब यदि विवाह करना हो तो काली को नेपाल जाना पड़ता। नेपाल जाने के बाद वापस आ पाये या नहीं इस दुविधा में विवाह के मामले में काली चुप ही रहता था। हीरा कुछ दिन रहकर फिर नेपाल चला गया। दादाजी को काली का परिवार बसाने की चिन्ता थी। ऐसा घर ढूँढ़ रहे थे, जहाँ बस एक बेटी ही हो और काली का विवाह कर वहीं ‘घर जवाँई’ हो जाये। दादाजी के पास दूर-दूर से लोग आते थे। हमारे गाँव से 20 किमी की दूरी में एक ऐसा घर मिल गया तो दादाजी ने उनसे काली के विवाह की बात की। पर नेपाल का निवासी होने के कारण उन्होंने संकोच किया पर बहुत दिनों बाद एक बार दादाजी ने फिर प्रयास किया और काली के बारे में उनको बताया। तब तक उन्होंने भी काली के बारे में पता कर लिया था। काली के मेहनती और ईमानदार होने के गुण से लड़की के परिवार वाले प्रभावित हो गये। साथ ही काली का सरल स्वभाव भी उन्हें भा गया था। उनकी लड़की को भी काली पसन्द आ गया। काली का रंग सांवला था पर वह सूरत और नाक नक्शे का बहुत सुन्दर था। फिर एक दिन धूमधाम से काली का विवाह हुआ। विवाह में दल बहादुर और हीरा के साथ काली के अन्य रिश्तेदार भी आये।
विवाह के बाद काली ने छोटे-छोटे कामों के ठेके भी लेने शुरू किये। एक दिन ऐसा भी आया जब काली को बड़े-बड़े ठेके मिलने लगे। काली के काम को देखकर हीरा भी वापस आ गया और काली के साथ काम करने लगा लेकिन हीरा फिर कुछ समय बाद नेपाल चला जाता था। पर काली के लिए अब सब कुछ यही था। इसलिए वह सभी लोगों से घुलमिल गया। काली के एक बेटा और एक बेटी हुई। व्यस्त होने के बाद भी काली दादाजी से लगातार मिलने आता था। दादाजी के देहान्त के बाद भी उसका घर में आना जाना लगा रहता था। काली अब भी सब को घर का ही सदस्य लगता था। दादाजी के देहान्त के बाद काली का आना जाना भी कम हो गया था। काली का दादाजी के प्रति स्नेह और लगाव बहुत था, वह जब भी घर आता था तो दादाजी के कमरे में जाकर थोड़ी देर जरूर बैठता था।