@कमलकिशोर डुकलान, रुड़की उत्तराखंड


मकर संक्रांति लोक रूचि और जन आस्था के साथ समाजिक समरसता का महापर्व भी है। यह पर्व व्यक्ति के बीच आपसी प्रेम एवं सौहार्द को बढ़ावा देता है। इस दिन सूर्य नारायण भगवान भूमध्य रेखा को पार करते हुए उत्तर दिशा की ओर मकर रेखा में बढ़ना प्रारंभ करते हैं। इसी को सूर्य नारायण का उत्तरायण स्वरूप कहते हैं। जब सूर्य एक राशि को पार करके दूसरी राशि में प्रवेश करता है,तो उसे संक्रांति कहते हैं। यह संक्रांति काल प्रतिमाह आता है लेकिन मकर संक्रांति वर्ष में केवल एक बार आती है।

मकर संक्रांति सूर्योपासना का अलौकिक पर्व है। यह पर्व मानव जीवन में नवस्फूर्ति, चेतन,उत्साह एवं उमंग का प्रतीक है। इस समय प्रकृति में पविर्तन देखने को मिलने लगते हैं। जैसे -जैसे सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर बढ़ता है वैसे- वैसे पृथ्वी पर सूर्य की तपन तेज होने लगती है। इस पर्व के बाद से दिन बड़े होने लगते हैं। दिन बड़े होने का अर्थ मानव जीवन में अधिक सक्रियता से है।

मकर संक्रान्ति के बाद हमें सूर्य का प्रकाश अधिक समय तक मिलने लगता है,जो हमारे स्वास्थ्य के साथ हमारी फसलों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इससे यह पर्व अधिक क्रियाशीलता और अधिक उत्पादन का भी प्रतीक है। मकर संक्रान्ति के बाद सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। जनेऊ धारण करने और दीक्षा लेने के लिए भी यह दिन बहुत ही पवित्र माना गया है। भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।

माघ मास की संक्रांति के दिन जप, तप,दान,स्नान,श्राद्ध,तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। धारणा यह है कि इस अवसर पर दिया किया गया दान सौ गुना बढ़कर पुण्य प्रदान करता है। मान्यता है कि इस अवधि में देह त्याग करने से व्यक्ति जन्म मरण से मुक्त हो जाता है। इसी कारण महाभारत युद्ध में शर शैय्या पर पड़े भीष्म पितामह अपनी मृत्यु को उस समय तक टालते रहे,जब तक कि सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण नहीं हुआ। मकर संक्रांति होने पर ही उन्होंने अपनी देह त्यागी। मकर संक्रांति के दिन बुराई और नकारात्मकता को खत्म करने का शुभ दिन भी माना जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी।


भारतीय वार्षिक पंचाग के अनुसार सूर्य नारायण भगवान का दक्षिणायन होने पर देवताओं की रात्रि जिसे नकारात्मकता का प्रतीक तथा सूर्य नारायण का मकर संक्रांति को उत्तरायण होने पर देवताओं का दिन जिसे सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है…


पुराणों के अनुसार गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए मकर संक्रांति के दिन ही तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन मां गंगा समुद्र में जाकर मिली थी। जनवरी माह में आने वाली संक्रांति के समय ठंड बहुत ज्यादा होती है। तिल और गुड़ गर्म होते हैं जो ठंड में स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी होते हैं, जिस कारण घरों में तिल और गुड के लड्डू बनते हैं। इस त्यौहार का सम्बन्ध प्रकृति,ऋतु परिवर्तन और कृषि से है। ये तीनों चीजें ही जीवन का आधार हैं। मकर संक्रान्ति के दिन सभी तीर्थों तथा नदियों के संगम तट पर मेला लगता है जहां लोग नदियों में स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं वहीं धार्मिक स्थलों पर इस दिन देशभर के लोग नदियों,तीर्थों एवं मठ मन्दिरों में जाकर पूजा अर्चना करते हैं और विश्व कल्याण की मंगल कामना करते हैं।

मकर संक्रांति का यह सामाजिक पर्व हमारे राष्ट्रीय जीवन में परस्पर स्नेह को पुष्ट करने वाला पर्व है। समाज के सारे भेदभाव बुलाकर एकात्मता का साक्षात्कार कराने का उदार सत्कार देने वाला यह दिन है। इस समय देश की परिस्थितियों पर एक नजर डालें तो देश में भाषावाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, प्रांतवाद, गरीबी और बेरोजगारी,बढ़ती हुई जनसंख्या, निरक्षरता,भ्रष्टाचार, मंहगाई जैसी अनेकों प्रमुख समस्याएं हैं। इसके अलावा भी अंधविश्वास,दहेज़ प्रथा,नशा खोरी, महिलाओं की सुरक्षा जैसी नकारात्मक सामाजिक बुराइयां भी भारत को घेरे हुए हैं। निश्चित रूप से सूर्य के उत्तरायण होने पर इस मकर संक्रान्ति के बाद नकारात्मक सामाजिक बुराइयों का प्रभाव कम होगा और देश नये जोश नयी उमंग और नये उत्साह के साथ सही दिशा की ओर अग्रसर होगा।

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