✍️ सुभाष चन्द्र जोशी
सुबह ऑफिस जाने ही लगा, तो जोर से बारिश शुरू हो गयी। पत्नी से मैंने कहा ‘‘रेन कोर्ट दे दो भाग्यवान।’’ पत्नी झल्लाये रसोई से बाहर आयी और बोली ‘‘दिखाई नहीं देता आपको। यहीं तो रखा था आपने कल’’। पत्नी की बात सुनकर मुझे अपना रेन कोर्ट मिल गया। फिर इसके बाद पत्नी को कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई। अपना बैग उठाया और स्कूटर स्टार्ट किया और निकल पड़ा घर से। सुबह-सुबह सभी जल्दी-जल्दी ऑफिस जाने को निकल रहे है। कोई दाहिनी ओर से तो बायीं ओर से निकलने का प्रयास कर रहा है। सड़क पर इतना जाम कि समझ नहीं आ रहा था किधर से निकले। बारिश का मौसम है, जिसके पास कार थी वो आज स्कूटर से नहीं आया। रेल-म-रेल बनी पड़ी है सड़क पर। पुलिस वाला एक को रोके तो दूसरा मौका देखकर निकलने का प्रयास करने लगा। बारिश धीरे-धीरे बढ़ने लगी। गिरते पड़ते ऑफिस पहुंचे। 10 मिनट लेट हो गया। बॉस का रूम देखा, तो बॉस अभी आये नहीं थे। फटाफट अपने कैबिन में गया और अपना कम्प्यूटर ऑन कर दिया। कल के पैन्डिग कामों को पहले निपटने की कोशिश पर लग गया। बगल वाले वर्मा जी जैसे फुर्सत में होंगे, मेरे कैबिन में आये बोले ‘‘क्या पण्डित जी, सुबह-सुबह सब काम निपटा दोगे। कुछ कल के लिए भी छोड़ दो।’’ किसी तरह वर्मा जी से पीछा छुड़ाया।
बॉस का बुलाआ आया। दो फाइल उठायी चल दिया बॉस के कैबिन में। फटाफट सब बोल दिया। बॉस को आधी बातें समझ में आयी और आधी नहीं आयी। बॉस छल्लाया बोला ‘‘कहां की जल्दी है। तुम्हारी गाड़ी का ब्रेक खराब है क्या ?’’ मैं बोला ‘‘सर अभी फाइलों की मीनार पड़ी है टेबल पर। नहीं निपटेगी तो आप ही डांट लगाओगे।’’ बॉस ने गहरी साँस ली। मेरी फाइल उठायी। पढ़ाना शुरू ही किया पर कुछ बात ऐसी थी जो समझ में नहीं आयी बॉस को। मेरी ओर देखा पर पूछा नहीं। लग रहा हो कि इसने तो सब कुछ बता ही दिया तो अब क्या पूछूँ । मैं बोलने की कोशिश कर ही रहा था बॉस बोले सब तो ठीक है, पर तुमने फाइल बनाने में इतना टाइम क्यों लगाया। मैं क्या बोलता। इधर-उधर की बात कर बॉस की नाराजगी दूर कर दी। बॉस बोला कल से मत करना ऐसी गलती। सब काम टाइम पर निपटा देना। मैं अपने कैबिन में आया और पानी की बोतल उठा कर एक घूंट पानी पी कर फाइलों को टटोलने लगा। फाइलें ऐसी लग रही थी जैसा कि मुझे एवरेस्ट पर चढ़ना हो। खैर किसी तरह शाम तक आधा काम निपटाया। ऑफिस से घर के लिए निकला। पत्नी का फोन आया। बोली ‘‘सब्जी ले आना।’’ मैंने ‘‘पूछा कौन सी सब्जी लाना।’’ पत्नी जी बोली ‘‘लौकी तो कल ही खायी थी। बैंगन तुम्हें पसन्द नहीं है। अब देख लेना जो तुम्हारी इच्छा हो वो सब्जी लेते आना।’’ मैं सोचने लगा चलो सब्जी लाने के बहाने मेरी इच्छा तो पूछ ली पत्नी ने। सब्जी के ठेले पर गया। सब्जी वाला बोला ‘‘बाबू जी ताजी गोभी ले जाओ बाजार में 60 है मैं 50 में दे दूंगा।’’ मैंने पूछा ‘‘मुझ पर इतना मेहरबान क्यों हो। जो 50 में दे रहे हो।’’ मुझे तो बिन्स लेनी है बताओ कितने में दी। बोला 80 है आप 70 दे दो। आधा किलो बिन्स और अन्य सब्जी लेकर घर को निकल पड़ा।
बारिश शुरू होने लगी। सड़क पर पानी भरने लगा। अब तो पूरी सड़क एक सी लग रही थी। गड्ढे तो जैसे भर गये हो। पर मुझे तो घर के रास्ते का पूरा नक्शा ही याद था। तो मैं जहां गड्ढे नहीं थे वहां से घूम फिरकर निकल रहा था। तभी मेरे पीछे से एक नौजवान तेजी से मोटरसाइकिल में आगे निकला तो सड़क का गन्दा पानी मेरे ऊपर गिर गया। मैं जोर से चिल्लाया अरे ! गधे दिखायी नहीं देता क्या ? जरा सा आगे जाकर गड्ढे में घुस गया वो नौजवान। स्कूटर साइट कर उसे बाहर निकाला। बोला थैक्यू। मैंने बोला थैक्यू बाद में बोलना पहले ये बताओ इतनी जल्दी में क्यों हो ? बोला गर्लफ्रेन्ड को मिलने जाना है। रेस्टोरेन्ट में इंतजार कर रही है। खैर नौजवान जल्दी में था वो जल्दी ही निकल गया।
मेरा डर फिर बढ़ने लगा। मैं सोचने लगा। अगर में कहीं गड्ढे में गिर गया और कोई उठाने वाला न हो तो मेरा क्या होगा। तो इसी उधेड़बुन में मैंने लम्बा वाला रास्ता पकड़ लिया घर जाने को। इतने में पत्नी जी का फिर फोन आया। अभी तक पहुंचे नहीं। दूध भी लेते आना। मैंने कहा हां पहुंच रहा हूं। किसी तरह घर पहुंचा। पत्नी बोली समय से निकल जाते ऑफिस से। उसे क्या पता ऑफिस से निकल कर घर तक पहुंचने में क्या-क्या होता है सड़क पर……………………….