27 Apr 2025, Sun

नवसंवत्सर समृद्ध सांस्कृतिक थाती से परिचित कराने का अवसर

  • कमल किशोर डुकलान ‘सरल’ 

भारतीय कालगणना वैज्ञानिक और प्रामाणिक है। नवसंवत्सर का प्रतिवर्ष स्वागत करते समय हमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि नवसंवत्सर हमें अपनी समृद्ध सांस्कृतिक थाती से परिचित कराने और उसे सहेजने का अवसर उपलब्ध कराता है..

सनातन धर्म के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से भारतीय नवसंवत्सर का आरंभ होता है। यह दिन हमें भारतीय संस्कृति से परिचित कराने और उसकी महत्ता को रेखांकित करने का अवसर उपलब्ध कराता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को भगवान ब्रह्मा जी द्वारा ब्रम्हांड की उत्पत्ति का दिन भी माना जाता है। सृष्टि की उत्पत्ति के प्रथम दिन से ही भारतीय संस्कृति में नववर्ष मनाने की परंपरा है। नव सम्वत्सर वैश्विक समाज में मनाए जाने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के नए वर्षो से अलग है। यह स्वयं में आध्यात्मिक रहस्य समेटे हुए है। भारतीय नवसंवत्सर आंग्ल नये वर्ष की तरह रात भर जागकर नाचने-गाने व मौज-मस्ती का अवसर नहीं है। वास्तव में देखा जाए तो नववर्षोत्सव प्रकृति के साथ एक समन्वय स्थापित कर वर्ष भर के लिए निर्बाध जीवन की कामना का अवसर है। यह अवसर प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों से तादात्म्य बैठाने के साथ-साथ उनके अनुरूप स्वयं को ढालने का संदेश भी है। इसीलिए यह पर्व रातभर नाचने गाने का एवं मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि नये संकल्प लेने और साधना करने का शुभ दिन भी है।

संकल्प और साधना के लिए ही बासंतिक नवरात्र का प्रविधान किया गया है। नवसंवत्सर में सृष्टि के साथ अपना एक अव्यक्त सा रेशमी नाता अनुभव करने का भाव हर मन में भर जाता है। सूरज की स्वर्णिम किरणों सभी को स्नेह से सहलाते हुए मानो जीवन के उस अबूझ रहस्य को समझने का संकेत करती हैं, जिसके लिए हम पृथ्वी पर आए हैं। धरती से लेकर आकाश तत्व तक फैला मौन उस असीम अबूझ का भेद खोलने लगता है। चैत्र नवरात्र का उत्सव भोगमय जीवन से अलग हटकर उसके वास्तविक मर्म को जानने का पर्व बन जाता है। जीवन की परिपूर्णता पर बल देने के कारण नवसंवत्सर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे पुरुषार्थो को भी सिद्ध करने का अवसर प्रदान करता है। भगवान शिव के एकात्म अस्तित्व का बोध कराने वाला पड़ाव है नवसंवत्सर है।

हर प्राणी इस समय अवधि में सृष्टि जगत का सर प्राणी एक अलग सा स्पंदन महसूस करने लगता है। चैत्र की गंध वाही वायु के साथ हर चित्त अपने अनन्त प्रियतम से मिलने को उन्मन होता है। इसीलिए चैत्र मास में विरह की पीर कुछ अधिक ही टीस देने लगती है। प्रिय अनंत, जिससे बिछड़कर प्राणी इस संसार में भटकता है, उसी की खोज में मन मृगछौना सा कुछ और ही भटकने लगता है। पूरी प्रकृति में मिलन और सौंदर्य की एक आतुरता दिखाई देने लगती है। यह ऋतु माधव की ऋतु है। माधव यानी परब्रह्म पूरी सृष्टि में वसंत बनकर छा जाता है। आनंद बन छलक उठता है प्रकृति में। प्रेम का पाथेय लेकर पुष्प खिलखिला उठते हैं। चंद्रमा की कलाएं अपनी शीतलता और स्निग्धता में ईश्वरीय चिंतन के लिए एक आध्यात्मिक वातावरण का सृजन करने लगती हैं। परब्रह्म की प्रकृति स्वरूपा शक्ति आह्लादित होती है। इसीलिए हम शक्ति की आराधना से इस नवसंवत्सर का आरंभ करते हैं।

शक्ति स्वरूपा स्त्री लक्ष्मी, गौरी, सरस्वती का रुप धारण करती है। दुर्गा, काली, शिवा, धात्री आदि अनेक रूपों में हम अखिल ब्रह्मांड में मातृ तत्व के रूप में व्याप्त इसी एकमात्र शक्ति का आह्वान करते हैं और इस भाव से भरते हैं कि इस धरती पर मां की तरह कोई शक्ति निरंतर हमारा सृजन और पालन कर रही है। हम सब उसकी संतानें हैं, परंतु जब कभी हम अहंकार में उस शक्ति को नकारने का उपक्रम करने लगते हैं या सृष्टि को बाधा पहुंचाते हैं तो वह शक्ति चंडी का रूप धारण कर हमें रोकती है। शक्ति का सकारात्मक उपयोग करने की प्रेरणा देने आता है नवसंवत्सर, ताकि संपूर्ण मानवता के लिए हम कष्टकारी न बनने पाएं। भोग और भौतिकता की चाहत हमें शांत नहीं रहने देती। हमारे वैदिक ऋषि मुनि यह आह्वान करते थे कि धरती पर सभी शांतचित्त हों। मनुष्य मनुष्य का या प्रकृति का शत्रु न बने, इसकी कामना हमारे ऋषियों-मुनियों ने की।  इसीलिए नवरात्र के रूप में शक्ति के जागरण का महापर्व भी है यह उत्सव। प्रकृति के सौंदर्य और साम्यावस्था में अपनी आध्यात्मिक शक्तियों का जागरण और जीवन के प्रति नवस्फुरण उद्देश्य होता है इस नवसंवत्सर में। आंखें मूंदें रखने से नए सूरज का दर्शन नहीं हो सकता, इसलिए नए संकल्प के साथ नए अरुणोदय को अपनी आंखों में, हृदय में उतारना होता है। मन को भर लेना होता है चिड़ियों की चहचहाहट से। स्वीकार करना होता है सह-अस्तित्व की संकल्पना को। संभवत: इसीलिए यह भारतीय नववर्ष मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत है। इसमें हमारे मंत्र द्रष्टा ऋषियों की वैज्ञानिक सोच और दृष्टि अंतर्निहित थी। नवसंवत्सर को वैश्विक मानवीय मूल्यों और सत्य के साक्षात्कार के दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करना चाहिए। इसी क्रम में यह भी स्मरण रखना चाहिए कि नवसंवत्सर भारत की कालगणना की समृद्ध परंपरा को भी रेखांकित करता है। कालगणना के आकलन का आधार अत्यंत व्यापक है। यह सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की गति के आकलन पर आधारित है। वास्तव में इसीलिए इसमें त्रुटि की आशंका न्यून होती है। यह कालगणना वैज्ञानिक भी है और प्रामाणिक भी। ऐसे में इसका स्वागत करते समय हमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि यह हमें हमारी समृद्ध सांस्कृतिक थाती से परिचित कराने और उसे सहेजने का भी प्रतिवर्ष अवसर उपलब्ध कराता है।

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