20 Mar 2025, Thu

✍️ अनूप नौटियाल देहरादून, उत्तराखंड


उत्तराखंड के जोशीमठ में हो रहे भूधंसाव के बाद हाल के दिनों में उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी नगरों की कैरिंग कैंपेसिटी की बात जोर-शोर से उठाई जा रही है। राज्य के चारों धामों पर भी कैंरिंग कैपेसिटी की बात लागू होती है। पिछले वर्ष 2022 मे चार धामों में कैंरिंग कैपेसिटी निर्धारित करते हुए हर रोज धामों में जाने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या निर्धारित की गई थी। लेकिन इसकी घोषणा यात्रा शुरू होने के सिर्फ दो दिन पहले की गई थी। ऐसे में यात्रा के शुरुआती दिनों में अफरा-तफरी की स्थिति पैदा हो गई थी और रजिस्ट्रेशन करने में श्रद्धालुओं को बेहद ज़्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा था।
अब जबकि वर्ष 2023 में आज बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की अप्रैल 27 की तिथि तय हो चुकी है तो ऐसे में जरूरी है कि इस बार पिछले वर्ष जैसी स्थिति पैदा न हो और चारों धामों में उनकी कैरिंग कैपेसिटी से ज्यादा श्रद्धालु न पहुंचे, इसका निर्धारण समय से पहले कर दिया जाना चाहिए। यह भी जरूरी है की कैरिंग कैपेसिटी को निर्धारित किस आधार पर किया गया, उसमें पारदर्शिता रखी जाए और उसका प्रदेश के जन मानस के साथ व्यापक प्रचार प्रसार किया जाए।
पिछले वर्ष 2022 मे चारों धामों के कपाट खुलने का सिलसिला 3 मई को शुरू हुआ था। इसके सिर्फ दो दिन पहले एक मई को चारों धामों का कैरिंग कैपेसिटी का निर्धारण किया गया था। शुरुआती दौर मे चारों धामों मे 38,000 श्रद्धालुओं की संख्या निर्धारित की गयी थी। कुछ दिन बाद बदलाव के साथ बद्रीनाथ में प्रतिदिन 16 हजार, केदारनाथ में 13 हजार, गंगोत्री में 8 हजार और यमुनोत्री में 5 हजार श्रद्धालुओं कुल 42,000 श्रद्धालुओं को जाने की अनुमति देने का आदेश दिया गया था। यह भी व्यवस्था की गई थी कि किसी भी श्रद्धालु को बिना रजिस्ट्रेशन जाने की अनुमति न दी जाए।
यात्रा शुरू होने से ठीक पहले आये इस आदेश से अफरा-तफरी की स्थिति पैदा हो गई थी। उत्तराखंड पहुंच चुके कई श्रद्धालुओं को रजिस्ट्रेशन करवाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ा था। इन सब परिस्थिति को देखते हुए प्रतिदिन धामों में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या का निर्धारण हर हाल मे मार्च 2023 के अंत तक हो जाना चाहिए, ताकि यात्रा पर आने वाले लाखों श्रद्धालु पहले से रजिस्ट्रेशन आदि कर लें और उन्हें परेशानी न हो। कैरिंग कैपेसिटी का निर्धारण किस प्रक्रिया के तहत किया गया इसमें भी पारदर्शिता अपनाई जानी चाहिए।
एक और महत्वपूर्ण तथ्य है की कैरिंग कैपेसिटी का निर्धारण केवल धाम में उपलब्ध कमरों की संख्या और पार्किंग कैपेसिटी के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। कैरिंग कैपेसिटी टोपोग्राफी, भूविज्ञान, पर्यावरण घटकों और बहुत कुछ अन्य कारकों पर निर्भर करती है। यह सिर्फ होटल और धर्मशाला के कमरों या कार पार्किंग सुविधाओं की कुल संख्या नहीं है। उत्तराखंड सरकार को पूरे राज्य में वैज्ञानिक प्रणाली का पालन करते हुए कैरिंग कैपेसिटी का निर्धारण करना चाहिए। कैरिंग कैपेसिटी के निर्धारण की जिम्मेदारी जिला प्रशासन या पुलिस को नहीं दी जानी चाहिए। उनके पास पहले से कई काम हैं, ऐसे में वे इसका निर्धारण ठीक से कर पाएंगे, इसमें संदेह है। राज्य को एक ऐसी स्पेशल फोर्स की जरूरत है जो वैज्ञानिक तरीके से धामों की कैरिंग कैपेसिटी का निर्धारण कर सके।
चार धाम और चारधाम यात्रा मार्ग पर हेल्थ कैपेसिटी बढ़ाने की भी जरूरत है। पिछले वर्ष तीर्थयात्रियों की संख्या रिकॉर्डतोड़ रही तो इसी के साथ मरने वालों की 300 से ज्यादा श्रद्धालुओं की संख्या भी अब तक की सबसे बड़ी संख्या रही। हेल्थ सर्विसेस में सुधार के साथ हर यात्री को धाम में पहुंचने से पहले एक दिन निचले हिस्सों में रहने के लिए बाध्य किया जाए। दक्षिण भारत या मुंबई जैसे इलाकों से तीर्थयात्री एक ही दिन में केदारनाथ या यमुनोत्री पहुंचते हैं तो अचानक इतनी ऊंचाई पर पहुंचने से कई तीर्थयात्रियों को स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें आती हैं। ऐसे में यदि लोग धाम में पहुंचने से पहले एक दिन किसी निचले क्षेत्र में रहें तो ऊंचाई पर पहुंचने से पहले शरीर को इस वातावरण में ढलने के लिए कुछ समय मिल जाएगा। इससे हार्ट अटैक या अन्य परेशानियों से होने वाली मौतों की संख्या में कमी लाई जा सकती है।

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