देहरादून। स्वामी सुन्दरानन्द जी का जन्म 1926 में अनंतपुरम ग्रामए जिला नल्लोरए आंध्र प्रदेश में हुआ था। किशोरावस्था में ध्रुवए प्रह्लाद व मार्कण्डेय की कहानियों से प्रेरित हो उन्होंने भी इन्ही संतों की तरह तपस्या करने का निश्चय किया। 1947 में जब भारत आजाद हुआए तो वह अपने घर से भगवान की खोज में निकल पड़े। ना तो उन्हें यह पता था कि कहाँ जा रहे हैं ना ही कोई मार्ग दर्शक था। हर कदम पर कठिनाइयाँ आयी परन्तु वह विचलित नहीं हुए। सौभाग्य से उन्हें स्वामी तपोवन महाराज जी जैसा सुयोग्य गुरु मिला।
स्वामी तपोवन जी महाराज वेदांतए उपनिषद और गीता के प्रकांड विद्वान् थे। उन्होंने विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में बैठए 18 दिन में श्सौम्य काशी स्त्रोतमश् लिखा था। गुरुदेव जी प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया के बाद उत्तरकाशी से गंगोत्री पैदल कूच कर जाते थे। गंगोत्री पहुँचने में छ दिन लगते थे। उजेली की तरह गंगोत्री में भी गुरुदेव की एक कुटिया थी। यह कुटिया आज विश्व प्रख्यात है। स्वामी सुन्दरानन्द जी एक ऐसे कर्मयोगीए सिद्ध व सरल साधु हैं जिन्होंने लगभग अपनी पूरी जिन्दगीए हिमालय की गोद में गंगा मैय्या के चरणों में बैठकरए एक साधारण सी कुटिया में साधना कर बिता दी। उनका मानना है सत्यम शिवम् सुन्दरमए सर्वोच्च सौन्दर्य ही सत्य है।
वे हिमालय और उसके प्राकृतिक सौंदर्य में ईश्वर के दर्शन करते हैं। अपने पर्वतारोहण तथा पर्यटन के दौरान स्वामी जी ने हिमालय से सम्बंधित हजारों चित्र लिए। उनके पास पुष्पों, मंदिरों, साधुओं, वन्य जन्तुओं का भी अद्वितीय संकलन है। उन्होंने देश के विभिन्न भागों में स्लाइड शो का आयोजन कर लाखों लोगों को अपने चित्रों के माध्यम से हिमालय दर्शन करवाया। अब वह यही कार्य कलादीर्घा के माध्यम से करना चाहते हैं। कर्नल कोठियाल के केदारनाथ के पुनर्निर्माण के कार्य से प्रभावित होकर स्वामी सुंदरानंद ने अपनी कलादीर्घा को सम्पन्न करने का जिम्मा उनको सौंपा। समय का आभाव था, परंतु कर्नल कोठियाल की टीम ने दिन रात मेहनत कर निश्चित समय पर आर्ट गैलरी का उद्घाटन करवाया।