देहरादून। जनपद हरिद्वार का कुंभ क्षेत्र चारों ओर से जंगलों से घिरा हुआ है। इसके एक ओर राजाजी टाइगर रिजर्व है, वहीं दूसरी ओर हरिद्वार वन प्रभाग यहां जंगली हाथी अक्सर शहर में घुस आते हैं। हाथी जंगलों से निकलकर पानी पीने नदी में आते हैं और फिर वो नदी से लगे खेतों में घुस जाते हैं। हाथियों से आमना-सामना होने पर कई बार किसान अपनी जान गवां देते हैं। यह ही नहीं उत्पात मचाते हाथी कई बार शहर से लगे इलाकों में भी घुस आते हैं। प्रशासन का मानना है कि कुंभ के दौरान जब लाखों की संख्या में लोग हरिद्वार में होंगे और यदि उत्पाती हाथियों की यह फौज कहीं भी घुसी तो बड़ी परेशानी खड़ी कर सकती है। शासन स्तर पर प्रमुख सचिव वन की अध्यक्षता में बीते जनवरी में हुई बैठक में यह तय किया गया था कि बिगडैल हाथियों के झुंड में से एक हाथी को रेडियो कॉलर लगा दिया जाए।
इससे हाथियों के शहर के करीब आने से पहले ही सूचना मिल जाएगी। साथ ही यह भी निश्चिंतता रहेगी कि हाथी अभी कहां पर हैं। रेडियो कॉलर से हाथियों के रूट का पता लगाने में भी आसानी होगी। अलग-अलग झुडों में ऐसे करीब दस हाथी चिन्हित किए गए, जिनको कुंभ से पहले-पहले रेडियो कॉलर करने का प्लान बनाया गया है। लेकिन, समस्या यह है कि अभी तक केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से हाथियों को कॉलर लगाने के प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिली है। उत्तराखंड के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन राजीव भरतरी का कहना है कि केंद्र से परमिशन मिलने का इंतजार किया जा रहा है। दूसरी ओर कैंपा मद से इसके लिए धन राशि रिलीज होनी है, लेकिन यह फाइल भी सेंटर में लटकी हुई है। कैंपा के सीईओ समीर सिन्हा का कहना है कि कुंभ के मद्देनजर जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए करीब 11 करोड़ रूपए का प्रस्ताव भेजा गया है। इसमें सोलर फैंसिग के साथ ही रेडियो कॉलर समेत अन्य कार्य भी प्रसतावित हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस हफ्ते कभी भी इसे मंजूरी मिल सकती है। राजाजी टाइगर रिजर्व प्रशासन इससे पहले वर्ष 2018 में एक बिगड़ैल हाथी को कॉलर लगा चुका है। जनवरी 2018 में एक टस्कर हरिद्वार के बीएचईएल इलाके में घुस आया था। यहां उसने हमला कर दो लोगों को मार डाला था। बाद में वन विभाग ने 36 घंटे तक ऑपरेशन चला के मस्तमौला हाथी को काबू में कर उसे रेडियो कॉलर टैग करने में सफलता हासिल की थी। जंगल में वापस छोड़ने के बाद इस हाथी की प्रत्येक मूवमेंट राजाजी पार्क प्रशासन को मिलती रही। करीब साल भर बाद यह हाथी एक बार फिर हरिद्वार पहुंचकर उत्पात मचाने लगा था। जिसके बाद पार्क प्रशासन को ट्रेंकुलाइज कर इसे पालतू बनाना पड़ा। इन दिनों यह हाथी पार्क के चीला एलिफेंट कैंप में अपनी सेवाएं दे रहा है।