- दुनिया भर में प्लास्टिक का उपयोग 8.3 अरब टन तक पहुंच गया है
- इंसान ही नहीं वरन जीव-जंतुओं के लिए बना खतरे का सबब
- कुल उत्पादन का 10 फीसदी प्लास्टिक कचरा हो रहा है रिसाइकिल
नई दिल्ली (हि.स.)। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के साथ देशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्ति की नयी मुहिम शुरू होगी। दो अक्टूबर से देशभर में प्लास्टिक बैग, कप और स्ट्रॉ जैसे प्लास्टिक के बने छह प्रोडक्ट के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने की तैयारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 सितम्बर को मुहिम की शुरुआत करते हुए लोगों से सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल छोड़ने का आह्वान किया था।
प्लास्टिक यानी मानव का ऐसा आविष्कार जिसका प्रभाव अब मानव के नियंत्रण से बाहर होता जा रहा है। प्लास्टिक के आविष्कार ने दुनिया के लिए संभावनाओं के नये द्वार खोले लेकिन अब यह अभिशाप की शक्ल में तब्दील होता जा रहा है। बेल्जियम में पैदा हुए अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ.लियो बेकलैंड ने ख़ुद भी कहा था कि यह भविष्य के लिए काफी अहम साबित होगा। यकीनन, इसे लेकर बेकलैंड का भरोसा सच साबित हुआ। इसे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के इस आंकड़े से भी समझा जा सकता है कि दुनिया भर में प्लास्टिक का उपयोग 8.3 अरब टन तक पहुंच गया है।
प्लास्टिक की दुनिया
कई दिलचस्प वैज्ञानिक पड़ावों के बाद प्लास्टिक का आविष्कार हुआ। इसमें कई वैज्ञानिकों का किरदार माना जाता है। खोज की शुरुआत किसी अन्य चीज के लिए हुई लेकिन यह प्लास्टिक तक पहुंच गयी। ब्रिटिश वैज्ञानिक अलेक्जेंडर पॉक्स ने 1856 में पहली मानव निर्मित प्लास्टिक की खोज की लेकिन आधुनिक प्लास्टिक का निर्माण इसके तक़रीबन 50 वर्षों के बाद हुआ। बेल्जियम के अमेरिकी वैज्ञानिक लियो बेकलैंड ने 1907 में फिनॉल और फार्मेल्डिहाइड की अभिक्रिया से प्लास्टिक का आविष्कार किया। इसका नामकरण किया गया- बेकेलाइट।
दुनिया का चेहरा बदल दिया
प्लास्टिक ने आनेवाले चंद दशकों में दुनिया का चेहरा बदलकर रख दिया। जिन सामग्रियों के लिए धातु का प्रयोग होता था, प्लास्टिक उसका सहज विकल्प बन गया। यह न केवल सस्ता था बल्कि सुगम भी। रोज़मर्रा की ज़िंदग़ी में इस्तेमाल होने वाली चीजों में साल-दर-साल प्लास्टिक ने घर-घर में जगह बना ली। ख़ासतौर पर पैकेजिंग के क्षेत्र में जैसे क्रांति आ गयी। टिन या कांच जैसी सामग्रियों के मुकाबले प्लास्टिक का इस्तेमाल धड़ल्ले से होने लगा। पैकेजिंग उद्योग के लिए न केवल यह सस्ता था बल्कि सामग्रियों को लंबे समय तक एक-जगह से दूसरी जगह भेजने में भी ज्यादा मुफीद। इसी वजह से आज दुनिया भर में प्लास्टिक की कुल खपत में से सबसे ज्यादा हिस्सेदारी पैकेजिंग के क्षेत्र में है। इसके अलावा निर्माण क्षेत्र में भी इसके इस्तेमाल की एक बड़ी हिस्सेदारी है। जो न केवल कम खर्चीला बल्कि लंबे वक़्त तक के लिए टिकाऊ भी साबित हुआ।
ताक़त ही अभिशाप
प्लास्टिक की खोज तो हो गयी मगर उसे ख़त्म करना असंभव होता जा रहा है। आज हालत यह है कि इसे धरती पर न केवल इंसानों के लिए बल्कि जीव-जंतुओं के लिए भी बड़े ख़तरे के तौर पर देखा जा रहा है। यह पर्यावरण के लिए गंभीर चुनौती बनती जा रही है। स्थिति और भी गंभीर रूप इसलिए अख्तियार कर रही है क्योंकि कुल उत्पादन का 10 फीसदी प्लास्टिक कचरा रिसाइकिल किया जा रहा है जबकि 90 फीसदी कचरा पर्यावरण के लिए नुकसान का सबब बन रहा है।
गंभीर खतरे के तौर पर उभरा
स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा विभिन्न नदियों के माध्यम से समुद्र में जा रहा है। जो डॉल्फिन, ह्वेल, कछुए जैसे जलीय जीवों के लिए अस्तित्व पर बन आया है।
उसी तरह धरती पर यह प्लास्टिक कचरा मिट्टी की उर्वरा शक्ति को न केवल बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है बल्कि भूगर्भ जल को भी विषैला कर रहा है।
सिंगल यूज प्लास्टिक
बैग, ग्लास, स्ट्रॉ, पानी की बोतल जैसे एकबार ही इस्तेमाल के बाद बेकार हो जाने वाली प्लास्टिक निर्मित सामग्री के इस्तेमाल पर पाबंदी, प्लास्टिक मुक्ति के लिए शुरुआती कदम साबित हो सकता है। गौरतलब है कि पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल करने वाले देशों में भारत भी है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके इस्तेमाल का मोह छोड़ने के साथ ही प्लास्टिक सामग्रियों को नदी या तालाबों में फेंककर, जमीन में दबाकर या फिर उसे जलाकर नष्ट करना भी पर्यावरण का नुकसान है, इसलिए ऐसा हरगिज न करें।