12 Jul 2025, Sat

कांवड़ यात्रा का सामाजिक एवं धार्मिक महत्व

कमल किशोर डुकलान ‘सरल


 सामाजिक सरोकारों से रची कांवड यात्रा का संदेश हमारी धार्मिक आस्थाओं के साथ प्रतीकात्मक तौर पर जीवनदायिनी नदियों के जल से भगवान शिव की आराधना एवं जलाभिषेक करना वास्तव में सृष्टि सृजन का ही दूसरा रूप हैं। कांवड यात्रा शिवभक्ति,आराधना एवं जलाभिषेक के साथ जल संचय की अहमियत को उजागर करती है..

सनातन हिंदू धर्म में हिन्दी महीनों में सावन का पवित्र महीना बहुत ही शुभ माना गया है। सावन के महीने में ही जगत के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। ऐसे में सृष्टि का संचालन भगवान शिव द्वारा किया जाता है। सावन मास में सृष्टि का संचालन भगवान शिव द्वारा होने के कारण यह समय ‘चातुर्मास’ कहलाता है, जो पूरी तरह धर्म, तप, व्रत और संयम का प्रतीक भी है। ऐसे में सावन का महीना आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद खास माना जाता है। यह महीना भोलेनाथ की आराधना, अभिषेक के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है। उत्तर भारत में कावड़ यात्रा न केवल एक धार्मिक परम्परा है, बल्कि यह शिव भक्तों के लिए एक गहन आध्यात्मिक अनुभव भी है। सावन मास में आयोजित होने वाली कावड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति अगाध भक्ति का प्रतीक मानी जाती है।

इस वर्ष सामाजिक एवं धार्मिक सरोकारों से जुड़ी कांवड यात्रा का शुभारंभ आज 11 जुलाई शुक्रवार से प्रारम्भ रहा है। आइए कांवड यात्रा के सामाजिक एवं धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं। सावन मास में प्रतिवर्ष प्रारंभ होने वाली सामाजिक एवं धार्मिक सरोकारों से रची कांवड यात्रा में सम्मिलित होने देशभर के कांवडिये लाखों की तादाद में सुदूर स्थानों से आकर मां गंगा का उदगम स्थल गोमुख एवं मोक्षदायिनी मायापुरी हरिद्वार से गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा के रूप में अपने गांव/ शहर की ओर वापस लौटते हैं इस यात्रा को कांवड़ यात्रा कहाँ जाता है। सावन मास की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने आसपास शिव मंदिरों में जलाभिषेक किया जाता है। कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है,लेकिन कांवड यात्रा से हमारे सामाजिक सरोकार भी जुड़े हैं। सावन मास में कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। पानी आम आदमी के साथ साथ पेड पौधों,पशु – पक्षियों,धरती में निवास करने वाले हजारो लाखों तरह के जीव-जंतु कीडे-मकोडों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक वस्तु है। परन्तु उत्तर भारत की भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां के मैदानी इलाकों में मानव जीवन नदियों पर ही आज भी आश्रित है।

कावड़ यात्रा का अगर हम सामाजिक महत्व को देखें तो नदियों के जल से दूर-दराज के रहने वाले लोगों को पानी का संचय करके रखना पड़ता है। हालांकि मानसून काफी हद तक वर्षा ऋतु में इसकी आवश्यकता की पूर्ति कर देता है तदापि कई बार मानसून का भी भरोसा नहीं होता है। ऐसे में बारह मासी नदियों के जल का ही आसरा रहता है। और इसके लिए सदियों से मानव अपने इंजीनियरिंग कौशल से नदियों का पूर्ण उपयोग करने की चेष्टा करता हुआ कभी बांध तो कभी नहर तो कभी अन्य साधनों से नदियों के पानी को जल विहिन क्षेत्रों में ले जाने का प्रयास करता आ रहा है। लेकिन घनत्व आबादी का दबाव और प्रकृति के साथ मानवीय व्यभिचार की बदौलत जल संकट वर्तमान में बड़े रूप में उभर कर आया है।

कांवड यात्रा को अगर धार्मिक संदर्भ में देखें तो इंसान ने अपनी स्वार्थपरक नियति से शिव को रूष्ट किया है। प्रतिवर्ष कांवड यात्रा का आयोजन होना सुन्दर बात है। लेकिन शिव को प्रसन्न करने के लिए इन आयोजन में भागीदारी करने वालों को इसकी महत्ता भी समझनी होगी। प्रतीकात्मक तौर पर कांवड यात्रा का संदेश इतना भर है कि आप जीवनदायिनी नदियों के लोटा भर जल से जिस भगवान शिव का अभिषेक कर रहे हें वे शिव वास्तव में सृष्टि का ही दूसरा रूप हैं। धार्मिक आस्थाओं के साथ सामाजिक सरोकारों से रची कांवड यात्रा वास्तव में जल संचय की अहमियत को उजागर करती है। कांवड यात्रा की सार्थकता तभी है जब आप जल बचाकर और नदियों के पानी का उपयोग कर अपने खेत खलिहानों की सिंचाई करें और अपने निवास स्थान पर पशु पक्षियों और पर्यावरण को पानी उपलब्ध कराएं तो प्रकृति की तरह उदार शिव भी सहज भाव से प्रसन्न होंगे।

– ग्रीन वैली गली नं 5 सलेमपुर सुमन नगर बहादराबाद (हरिद्वार)

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