‘ग्लेडियोलस’ के फूलों को हम सबने पुष्पगुच्छ (बुके) के आदान-प्रदान में अवश्य ही देखा होगा।
ग्लेडियोलस का पौधे मूलतः भूमध्यसागर के उष्णकटिबंधीय में यूरोपीय देशों में दक्षिण अफ्रीका तथा विशेषतः विश्व प्रसिद्ध प्राकृतिक धरोहर cape floristic region में प्राकृतिक रूप से बहुतायत में मिलते हैं।
अपनी अनुपम सुंदरता एवं बढती मांग के कारण आज हमारे देश में भी ग्लेडियोलस के पौधे वाटिकाओं के अतिरिक्त ‘फूलों की व्यवसायिक खेती’ में बड़ी मात्रा में उगाये जा रहे हैं।
ग्लेडियोलस के फूल लाल, सफेद, पीले, गुलाबी,बैंगनी, orange तथा multicolor रंगों में अपनी शोभा बिखेरते हुए सबका मन मोह लेते हैं।
ग्लेडियोलस नाम Latin शब्द gladiolus से आया जिसका अर्थ तलवार होता है,जो कि इनकी बड़ी -बड़ी लम्बी swordlike पत्तों के आकार के कारण पड़ा।
यूरोपीय देशों में ग्लेडियोलस के फूलों को नैतिक एवं चारित्रिक दृढता का प्रतीक माना जाता है।
इसके अतिरिक्त विशेष रूप से ग्लेडियोलस किसी के प्रति सम्मान, प्रेम, आत्मीयता एवं लगाव प्रकट करने के प्रतीक के रूप में व्यवहार में आता रहा है।ऐसा माना जाता है कि तलवार के समान ही यह किसी के हृदय को बेंधने (piercing)की क्षमता रखते हैं।
ग्लेडियोलस के पौधे अपनी मनमोहक आभा के साथ- साथ अनेक रोगनाशक औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण हैं।
अनेक देशों में अनादिकाल से पारंपरिक घरेलू उपचार में ग्लेडियोलस के पौधे की जड़ो एवं फूलों का प्रयोग किया जाता रहा है।
खांसी-जुकाम तथा chest infection के उपचार के लिए ग्लेडियोलस के पौधे बहुत लाभकारी हैं।
पाचनतंत्र की अनेक समस्याओं, कब्ज एवं डायरिया के उपचार के लिए भी ग्लेडियोलस की जड़ो का इस्तेमाल होता रहा है।
अफ्रीका के मूल निवासी सदियों से इस पौधे की जड़ो को बकरी के दूध में पीस कर बच्चों के पेट के ऐंठन ( intestinal colic)की चिकित्सा में सफलता पूर्वक प्रयोग करते हैं।
उत्तराखंड के प्रतिभा सम्पन्न बेरोजगार युवा अपनी पैतृक निष्प्रयोज्य जमीनो पर ग्लेडियोलस की व्यवसायिक खेती की संभावना पर विचार कर अपनी मातृभूमि पर ही ससम्मान रोजगार के अवसर तलाश सकते हैं।
-डॉ आदित्य कुमार
पूर्व उपाध्यक्ष, राज्य औषधीय पादप बोर्ड, उत्तराखंड