समय पर प्रमाणित/ट्रुथफुल बीज न मिल पाने के कारण कृषक अदरक की अधिक लाभकारी खेती नहीं कर पा रहे हैं।
उद्यान विभाग से प्राप्त अदरक बीज समय पर नहीं मिल पाता, बीज से कई तरह की बीमारियों खेतों में आने का डर रहता है।
किसान को तकरीबन 3 से 5 महीने तक बीज का भण्डारण करना पड़ता है।
भंडारण के दौरान अदरक में सड़न बीमारी होना एक बड़ी समस्या है, स्टोर करते समय कुछ बातों पर विशेष ध्यान रखा जाए
स्वयं अपनी अदरक उपज से अदरक को बीज हेतु भंडारित करते हैं।
भारतीय अदरक की देश में ही नहीं विश्व बाजार में भी बड़ी मांग है, लेकिन अच्छी किस्म और अच्छे बीज की कमी के कारण देश में इतनी पैदावार नहीं हो पा रही है, जितनी की होनी चाहिए। अदरक की फसल 8-9 महीने में ही तैयार हो जाती है, किन्तु किसान को तकरीबन 3 से 5 महीने तक बीज का भण्डारण करना पड़ता है। भंडारण के दौरान अदरक में सड़न बीमारी होना एक बड़ी समस्या है, जो केवल बीज की गुणवत्ता को खराब करती है, बल्कि ऐसे बीज की फसल भी बीमार और खराब होती है, इसलिए बीज को स्टोर करते समय कुछ बातों पर विशेष ध्यान रखा जाए तो अदरक के खराब होने क समस्या से निजात पाई जा सकती है।
पहाड़ी क्षेत्रों में अदरक की व्यवसायिक खेती परम्परागत रूप से पर्वतीय कृषक करते आ रहे हैं। समय पर प्रमाणित/ट्रुथफुल बीज न मिल पाने के कारण कृषक अदरक की अधिक लाभकारी खेती नहीं कर पा रहे हैं। अच्छी उपज देने वाले ट्रुथफुल अदरक बीज प्राप्त करने के मुख्य स्रोत हैं-
1-आई.आई.एस.आर प्रयोगिक क्षेत्र केरल । 2-कृषि एवं तकनीकी वि० वि० पोट्टांगी उडीसा 3-वाइ.एस.परमार यूनिवर्सिटी आफ हार्टिकल्चर नौणी सोलन हिमांचल प्रदेश। 4-भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के मसाला विकास संस्थान।
उद्यान विभाग वर्षों टेंडर द्वारा निजी फर्मों के माध्यम से पूर्वोत्तर राज्यों असम, मणिपुर, मेघालय व अन्य राज्यों से सामान्य किस्म के अदरक को क्रय कर प्रमाणित रियोडी जिनेरियो किस्म बता कर राज्य के कृषकों को बीज के नाम पर बांटता आ रहा है।
अदरक उत्पादकों का कहना है कि उद्यान विभाग से प्राप्त अदरक बीज समय पर नहीं मिल पाता साथ ही इस बीज से कई तरह की बीमारियों खेतों में आने का डर रहता है।
उद्यान विभाग द्वारा मसाला विकास के नाम पर कई योजनाएं चलाई जा रही है- हार्टिकल्चर टैक्नालाजी मिशन, पारम्परिक कृषि योजना, कृषि विकास योजना, जिला विकास योजना, राज्य सैक्टर की योजना आदि नाना प्रकार की योजनाएं चल रही है, जिन पर हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं किन्तु कभी भी राज्य में अदरक बीज उत्पादन के प्रयास नहीं किए गए, जिससे राज्य अदरक बीज में हिमाचल प्रदेश की तरह आत्म निर्भर बन सके।
प्रगतिशील अदरक उत्पादक स्वयं अपनी अदरक उपज से अदरक को बीज हेतु भंडारित करते हैं। इसलिए आवश्यक है कि अदरक की भरपूर उपज हेतु कृषक अपनी स्वस्थ उपज से ही अदरक बीज का भंडारण करें।
अदरक उत्पादित क्षेत्रों में कुछ प्रगतिशील कृषक स्वयं अदरक बीज का उत्पादन करते हैं। टिहरी जनपद के फगोट विकास खण्ड के अन्तर्गत आगरा खाल के कस्मोली, आगर आदि ग्राम सभाओं के अदरक उत्पादकों में हरियाली ग्रामीण कृषक श्रमिक सहकारी समिति के अध्यक्ष श्री हरीश चंद्र रमोला, ग्रामीण श्रमिक कृषक कल्याण सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष श्री कुंवर सिंह रावत व अन्य कृषकों भी स्थानीय रूप से उत्पादित अदरक बीज की मांग करते हैं।
ग्रामीण कृषक सहकारी समिति आगराखाल के अध्यक्ष व पूर्व क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष श्री वीरेंद्र कंडारी का कहना है कि उद्यान विभाग द्वारा आपूर्ति अदरक बीज समय पर नहीं मिलता साथ ही उसमें कई तरह की व्याधियां व कीट लगे होते हैं। श्री कन्डारी ने उद्यान विभाग को स्थानीय अदरक बीज उत्पादन को बढ़ावा देने व योजनाओं में स्थानीय अदरक बीज किसानों को वितरित करने की सलाह दी। अन्य अदरक उत्पादित क्षेत्रों रुद्रप्रयाग जनपद में बनगढ (पोखरी), देहरादून के चकरौता विकास नगर आदि क्षेत्रों में भी कुछ प्रगतिशील कृषक अदरक का बीज स्वयं उत्पादित करते हैं।
कैसे करें बीज हेतु अदरक का भंडारणः–
बीज हेतु अदरक को 3-4 माह से अधिक समय तक भंडारित करना होता है, इसलिए यह अति आवश्यक है कि भंडारण सही विधि से करें, जिससे अदरक का बीज सड़न बीमारी से खराब न हो।
अच्छे सुडौल प्रकंदों का चयन करके उन्हें अलग से रखें तथा अच्छी तरह से छाया में सुखा लें। जिस खेत में अदरक की फसल पर बीमारियों लगी हों उस खेत के अदरक को बीज के लिए भंडारण न करें। अदरक को कई तरह से स्टोर कर के रखा जा सकता है। जैसे बोरी में, कमरे में ढेरी लगा कर, खेत में दबा कर, गड्ढों में या खत्तियों में अदरक को स्टोर कर के रखा जाता है। खत्तियों में स्टोर करना सब से अच्छा तरीका है, क्योंकि इस में भंडारण के लिए सही तापमान व नमी बनी रहती है, जिस से बीज ताजा रहता है और सूखता नहीं है, कुछ स्थानों पर किसान अदरक का भंडारण खुले स्थान पर कच्ची खत्तियों में करते हैं, लेकिन ऐसी खत्तियों में ज्यादा नमी रह जाने से सड़न बीमारी लग जाती है, अदरक के सही भंडारण के लिए खत्तियों को अच्छी तरह से ढकना जरूरी है,
खेती के लिए अदरक का बीज किसी अच्छी और भरोसेमंद जगह से ही लें और बोने से पहले उसे फफंूदीनाशक दवा से उपचारित कर लेना चाहिए। अदरक की बोआई ऊंची उठी क्यारियों में ही करें और बरसात के दिनों में खेत से पानी बाहर निकालने का इंतजाम जरूर करें, खेतों में पानी भरे रहने से फसल में सड़न, बीमारी होने का डर बना रहता है। खुदाई के समय ध्यान रखें कि अदरक की गांठें कटे या टूटे नहीं।
प्रकन्दों का भंडारण सूखे, ऊंचे एवं छाया दार स्थान पर एक उचित वायु संचार युक्त गड्ढों में करना चाहिए। भंडारण से पहले गड्ढे को भलीभांति सफाई कर लें तथा उसे एक सप्ताह तक धूप में खुला छोड़ दें, जिससे गड्ढे में नमी न रहे। भंडारण करने से पूर्व गड्ढे को एक भाग फौरमिलीन तथा 8 भाग पानी का घोल बनाकर उपचारित कर दें, गड्ढे के अन्दर घास फूस जलाकर भी गड्ढे को उपचारित किया जा सकता है। भंडारण करने से पूर्व प्रकन्दों को कार्बेन्डाजिम (100 ग्राम) मैन्कोजैव (250 ग्राम) को 100 लीटर पानी में घोल तैयार कर लें इस घोल में 70-80 किलोग्राम अदरक को एक घंटे तक उपचारित करें।
यदि रासायनिक दवायें उपलब्ध नहीं हो पा रही है तो ट्राइकोडर्मा कल्चर से अदरक को छाया में उपचारित करें तेज धूप में ट्राइकोडर्मा जीवाणु मर सकते हैं।
अदरक पर हल्का सा पानी छिड़क कर, दस ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो अदरक बीज की दर से (याने एक कुन्तल बीज हेतु एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा) उपचारित करें, जिससे ट्राइकोड्रमा की पर्त अदरक कन्दों पर बन जाय।
उपचारित अदरक को छाया में भली-भांति सुखायें। बीज भंडारण से पूर्व गड्ढे में सबसे नीचे एक परत रेत या बुरादा या धान की पुलाव बिछा दें फिर उपचारित बीज को भरें। हवा के संचार के लिये छिद्र युक्त प्लास्टिक के पाईप को गड्ढे के बीच में डालें। गड्ढे में प्रकन्दों को पूरी तरह से न भरें 1/4 भाग खाली रखें। ऊपर के खाली भाग में सूखी घास रखें तथा गड्ढे को ऊपर से लकड़ी के तख्ते से ढक दें। तख्तों किनारों को मिट्टी से पोत दें। हवा के आवा गमन हेतु यदि छिद्र युक्त पौलीथीन पाइप की व्यवस्था नहीं हो पा रही है तो ऊपर से बिछे तखत्तों के बीच में हवा के आवगमन हेतु जगह छोड़ दें।
सही भंडारण के लिए खत्तियों को अच्छी तरह ढकना जरूरी है इसके लिए पत्तियों व घास का रिंगांल या बांस के साथ कच्चा ढांचा बनाया जा सकता है जिससे वर्षा का पानी खत्तियों में जाने से रोका जा सके।
टिहरी जनपद के आगरा खाल में अदरक उत्पादक खत्तियांे में बीज हेतु अदरक भरने के बाद ऊपर से मालू के पत्तों से बने विशेष आवरण जिसे स्थानीय भाषा में पितलोट कहते हैं, से ढक देते हैं, जिससे वर्षा का पानी अन्दर नहीं जा पाता साथ ही हवा का आवा गमन भी बना रहता है जिससे अदरक बीज सुरक्षित रहता है।
(लेखक के बारे में- वरिष्ठ सलाहकार कृषि / उद्यान – एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना (ILSP) एवं सेवा इंटरनेशनल)