उत्तराखंड में, फेफड़ों का कैंसर है महिलाओं में चौथा और पुरुषों में कैंसर से होने वाली मौतों का सबसे प्रमुख कारण
देहरादून। नवंबर का महीना फेफड़ों के कैंसर के बारे में जागरूकता का प्रसार करने को लेकर समर्पित माह है। भारत में, हर साल लंग कैंसर के 67,000 नए मामले सामने आते हैं। काफी लंबे समय तक ऐसा माना जाता रहा था कि लंग कैंसर सिर्फ उन पुरुशों को ही अपना शिकार बनाता है जो धूम्रपान करते हैं या धूम्रपान किया करते थे। लेकिन अब नए अध्ययनों से ऐसे संकेत भी मिले हैं कि धूम्रपान नहीं करने वाले भी लंग कैंसर के मरीज बन सकते हैं,और यह भी कि कुछ तरह के लंग कैंसर युवाओं, धूम्रपान नहीं करने वालों और महिलाओं में ज्यादा आम हैं।
एक खास तरह का लंग कैंसर, जिसे ’नान-स्माल सैल लंग कैंसर (एनएससीएलसी) कहा जाता है, सभी तरह के लंग कैंसर के मामलों में 85 प्रतिशत पाया जाता है।  ऐसे अधिकांश मामले देरी से पकड़ में आते हैं क्योंकि इस रोग के शुरुआती लक्षण दिखायी नहीं देते, या फिर इन लक्षणों को अन्य संक्रमण समझा जाता है। इसी वजह से उपचार भी चुनौती पूर्ण हो जाता है।  2003 तक, एडवांस एनएससीएलसी से पीड़ित मरीजों के उपचार के लिए एकमात्र उपलब्ध विकल्प कीमोथेरेपी ही था और इससे मरीज का जीवन 8 से 10 महीने तक बचाया जा सकता था। लेकिन हाल में इस क्षेत्र में हुई प्रगति ने एक और विकल्प उपलब्ध कराया है, यह है-टारगेटेड थेरेपी, जो मरीजों को कीमोथेरेपी की कमियों से उबारकर उनके जीवन में लगभग 45 महीने और जोड़ सकता है। रोगनिदान (डायग्नास्टिक) तथा उपचार में हुए इन सुधारों के बारे में डा संजीव कुमार वर्मा, प्रोफेसर-ओंकोलाजी, हिमालयन इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज ने कहा, ’’हर महीने में ऐसी करीब 8 से 10 महिलाओं में लंग कैंसर के मामलों का पता लगाता हूं जो धूम्रपान नहीं करती हैं। लंगस कैंसर का इलाज करना कई बार कठिन होता है।हमें मालूम है कि डीएनए में कुछ खास तरह के म्युटेषन के चलते ट्यूमर्स काफी तेजी से बढ़ते हैं और शरीर के अन्य अंगों तक में भी फैल जाते हैं।आज हम ऐसे कुछ म्युटेशन का पता लगा सकते हैं और फिर टारगेटेड थेरेपी की मदद से उनका उपचार भी करते हैं। यह थेरेपी डाक्टरों के लिए बेहतरीन विकल्प है क्योंकि यह न सिर्फ कारगर है बल्कि इसकी मदद से मरीजों का जीवन लंबा होता है और यह पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल होने वाली कीमोथेरेपी की तुलना में कम विशाक्त भी है।