देहरादून। प्रदेश में अब तक सरकारी भूमि से से अतिक्रमण 2279 अतिक्रमण हटाए गए। प्रदेश के नोडल अधिकारी अपर पुलिस महानिदेशक डा. वी मुरुगेशन ने बताया कि सबसे ज्यादा अतिक्रमण देहरादून जिले में हटाए गए हैं। यहां 1415 अतिक्रमण हटाकर सरकारी जमीन को कब्जा मुक्त किया गया है। इसके अलावा हरिद्वार में 259, पौड़ी में सात, टिहरी में 106, चमोली में 47, ऊधमसिंहनगर में 416, नैनीताल में 19, अल्मोड़ा में चार, पिथौरागढ़ में पांच और बागेश्वर में एक अतिक्रमण हटाए गए हैं। प्रदेश में अब तक सरकारी भूमि पर पूरे प्रदेश में 3793 अतिक्रमण चिह्नित हो चुके हैं, जिनमें से 1288 अवैध कब्जे सरकारी भूमि से हटाया जा चुके हैं। वन भूमि पर बनी 300 से अधिक मजारें ध्वस्त हो चुकी हैं, जबकि 35 मंदिरों पर भी हथौड़े चल चुके हैं।
उत्तराखंड में लैंड जिहाद के खिलाफ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सख्त तेवर अख्तियार कर रखे हैं। उन्होंने चेतावनी भरे अंदाज में कहा कि अच्छा होगा कि लोग सरकारी भूमि से खुद अतिक्रमण हटा लें, वरना धीरे-धीरे नंबर तो सबका ही आएगा। उन्होंने कहा कि सरकार हर कीमत पर अतिक्रमण हटाएगी। मुख्यमंत्री सोमवार को राज्य सचिवालय में मीडियाकर्मियों से बातचीत कर रहे थे। राज्य में चल रहे अतिक्रमण हटाओ अभियान पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि हमने पहले भी कहा है कि सरकारी भूमि पर किसी भी प्रकार अतिक्रमण या अवैध कब्जा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पूरे प्रदेश में सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने का अभियान जारी है। कहा कि यह अभियान तब तक जारी रहेगा, जब तक समस्त सरकारी भूमि पूरी तरह से अतिक्रमण मुक्त नहीं हो जाती।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बहुत सारे लोग अतिक्रमण के संबंध में मुझसे मिले। उन्होंने मुझे भरोसा दिया कि वे स्वयं अतिक्रमण हटा लेंगे। सीएम ने कहा कि यह अच्छा है कि वे स्वतः ही अतिक्रमण हटाने को तैयार हैं। वरना सरकार का अभियान अनवरत जारी रहेगा और धीरे-धीरे सबका नंबर आएगा। अवैध धर्मस्थलों के विरुद्ध चलाए गए अभियान के तहत अब तक 350 मजार और 35 मंदिर हटाए जा चुके हैं। कई अन्य को अभी नोटिस भी दिए गए हैं। मुख्य वन संरक्षक पराग मधुकर धकाते ने बताया कि प्रदेश में नदी क्षेत्रों को भी अतिक्रमणमुक्त कराया जाएगा। इसके तहत जलस्रोत, झील, तालाब समेत आसपास के क्षेत्रों में वन भूमि से कब्जे हटाए जाएंगे। इसके लिए स्थानीय प्रशासन और पुलिस की भी मदद ली जाएगी। इसके साथ ही कार्रवाई का समय और अधिकारियों की जिम्मेदारी भी तय की गई है। बताया कि वन संरक्षण अधिनियम के तहत वन क्षेत्र में रात को रुकने की अनुमति नहीं है। ऐसे में नदी में खनन करने वाले मजदूर झुग्गी बनाकर वहां नहीं रुक सकते। उन्हें खनन कार्य होने के बाद शाम को अपने स्थायी ठिकानों पर लौटने की चेतावनी दी गई है। इसके साथ ही अस्थायी झुग्गियों को भी ध्वस्त करने की तैयारी है।