देहरादून। उत्तराखंड में ऑक्सीजन और रेमडेसिविर की कालाबाजारी को रोकना सरकार के सामने चुनौती से कम नहीं है। सरकार को कालाबाजारी रोकने के लिए कड़े कदम उठाने होंगे।
हर दिन यह खबर सामने आ रही है कि ऑक्सीजन और कई जरूरी दवाइयों को लोग मनमाने रेट पर बेचे जा रहे हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए एसटीएफ की टीम का गठन किया गया है। जीवन रक्षक दवाओं की कालाबाजारी को लेकर सरकार मॉनिटरिंग कर रही है। ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए भटकते लोगों से मनमाना पैसा वसूला जा रहा है। जीवनरक्षक दवाइयों की बोली लगाई जा रही है। बेड के लिए भी पैसे की डिमांड की जा रही है। कोरोना संक्रमण से हो रही मौत के बाद परिजनों से अंतिम संस्कार में भी इंतजार करना पड़ रहा है। वहीं एंबुलेंस सेवा देने के लिए भी ज्यादा पैसा वसूला जा रहा है।
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कोरोना के इलाज में कारगर मानी जाने वाली कुछ दवाइयां बाजार से धीरे-धीरे गायब हो रही हैं। इनकी कालाबाजारी शुरू हो गई है, साथ कई गुना ज्यादा कीमत वसूली जा रही है। रेमडेसिविर इंजेक्शन और फेबिफ्लू जैसी दवाइयां बाजार से गायब हैं, अब ये ब्लैक में उपलब्ध है। वहीं 1000 से 1500 रुपये में मिलने वाला ऑक्सीमीटर 2000 से 3500 रुपये में मिल रहा है। कोरोना मरीजों को चिकित्सकों की लिखी गई दवाइयां मेडिकल स्टोर में नहीं मिल रही हैं। बाजार से सेफ्टम 500 एमजी, फेबिफ्लू, फ्लूगार्ड, फेवीवोक, डेक्सामेथसोन फोर एमजी और कोविहोप टेबलेट 400 और 200, पैन-डी, ए टू जेड, डोलो 650 एमजी, ग्लिंक्टस प्लेन जैसी खांसी की आम दवाइयां भी बाजार से गायब हो गई हैं।
कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने के बाद दून समेत पूरे प्रदेश में कोरोना के इलाज में इस्तेमाल हो रही दवाइयों और उपकरणों की मांग बढ़ गई है। इसका फायदा उठाकर कुछ मुनाफाखोर ऐसी सामग्रियों की कालाबाजारी कर रहे हैं। जरूरतमंदों से मुंह मांगे दाम वसूले जा रहे हैं। जीवन की अंतिम यात्रा पर भी अब आर्थिक बोझ पड़ रहा है। देहरादून में लोगों को कोरोना मरीजों के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट में महंगे खर्च की जद्दोजहद करनी पड़ रही है। इतना ही नहीं आसानी से एंबुलेंस भी नहीं मिल पा रही है। जबकि श्मशान घाट में कोरोना संक्रमितों के शव का अंतिम संस्कार करने के लिए करीब चार हजार रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।
इस दौरान कोविड-19 के उपचार में कारगर दवाइयों, रेमडेसिविर, थर्मामीटर, पल्स ऑक्सीमीटर आदि के स्टॉक की जानकारी प्राप्त की जा रही है। साथ ही अधिकारियों ने मेडिकल स्टोर संचालकों को चेतावनी दी कि कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया जाएगा।
वहीं, दिल्ली क्राइम ब्रांच ने कोटद्वार में एक फार्मा कंपनी में छापा मारकर नकली रेमडेसिवियर इंजेक्शन बनाने वाले गिरोह का भंडाफोड़ किया, जिसके बाद हड़कंप मच गया। एसटीएफ ने रुड़की, हरिद्वार, कोटद्वार में छापेमारी कर अहम जानकारी जुटाई है। शुक्रवार को चार टीमों का गठन कर दिल्ली, रुड़की, हरिद्वार और कोटद्वार रवाना किया गया।
नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन के रैकेट में शामिल आरोपियों ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। कई जानों को खतरे में डालकर करोड़ों कमाने वाले इन धंधेबाजों से सिर्फ 68 हजार रुपये खर्च कर 5 करोड़ रुपये कमा डाले। यूपी के बाद अब उत्तराखंड धंधेबाजों के निशाने पर था।
आरोपियों ने नकली रेमडेसिविर की सप्लाई दिल्ली, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में की। अब वह हरिद्वार और देहरादून में इंजेक्शन सप्लाई करने की तैयारी थे। लेकिन इससे पहले पकड़े गए। रैपरों को टैक्सीम इंजेक्शन में लगाकर रेमडेसिविर बनाकर बेचा गया था, वह हरिद्वार में ही छपे थे। रैपर किसने छापे, इसकी जांच की जा रही है।
दवा बनाने वाले कई और कंपनियां पुलिस की रडार में आ गई हैं। बताया जा रहा है कि कई कंपनियों में जाकर देखा भी गया था कि किस तरह की दवाई बन रही है। क्राइम ब्रांच की छापेमारी के बाद कई कंपनियों में छानबीन जारी है।
कालाबाजारी रोकने के लिए आज मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने जिला अधिकारियों के साथ बैठक में सख्त निर्देश दिए तथा एसटीएफ की विशेष टीमों का गठन किया गया। लेकिन सरकार के तमाम कोशिशों के बाद भी कालाबाजारी तथा मुनाफाखोरी को रोकने के सरकार के प्रयास विफल होते नजर आ रहे हैं। कालाबाजारी रोकना सरकार के सामने एक चुनौती है, जहां सरकार एक ओर कोविड से लड़ने के लिए जूझ रही है। वहीं दवाइयों तथा आवश्यक उपकरणों की कालाबाजारी से सरकार की चिंताएं बढ़ रही है।