बिहार में एन.डी.ए को दोबारा सत्ता हासिल हुई है ऐसे में राज्य सरकार को केंद्र सरकार की तमाम जन कल्याणकारी योजनाओं को बिहार के विकास में सोलह आने धरातल में उतारना ही होगा
बिहार में शांतिपूर्ण मतदान के बाद नई सरकार का गठन ऐतिहासिक एवं स्वागतयोग्य है। बिहार में बिहार में नीतीश कुमार के सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद अब सारे देश की निगाह अगले पांच साल तक बिहार पर रहेगी।उनके पिछले कार्यकालों की तुलना में उनका नया कार्यकाल बहुत ही निर्णायक रहने वाला है। इस बार राज्यवासी कहीं ज्यादा आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं के साथ राज्य सरकार की ओर निहार रहे हैं। सबका साथ सबका विकास के साथ नये कार्यकाल में भाजपा के साथ बेहतर तालमेल बनाकर चलना नीतीश कुमार लिए इस बार ज्यादा जरूरी होगा। विधानसभा में विधायकों की संख्या जनता दल यूनाइटेड से ज्यादा होने पर निश्चित रुप से बिहार सरकार में भाजपा के चेहरे इस बार ज्यादा होंगे। भाजपा के इन सभी चेहरों को भी यह ध्यान रखना होगा कि बिहार में दुबारा एनडीए की सरकार बनने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्माई चमत्कार ही है। ऐसे में नीतीश सरकार की जिम्मेदारी यह होनी चाहिए कि केंद्र सरकार की तमाम जनोपयोगी योजनाओं को सोलह आने राज्य में लागू किया जाए। बिहार के विकास में केंद्र द्वारा आवंटित धन का अधिकतम सदुपयोग हो। साथ ही जद-यू को भी छोटी-छोटी नाराजगी के इजहार से बचकर चलते हुए खुद को फिर खड़ा करना है। बेहतर काम से सरकार गठन के समय से ही हमलावर अपने विरोधियों को जवाब देना है। शराबबंदी जैसी महत्वाकांक्षी नीति के बारे में ठोस फैसले और निगरानी की जरूरत है। शराबबंदी दिखावा नहीं होनी चाहिए और उसकी बिक्री के आपराधिक तंत्र को जल्द से जल्द उखाड़ फेंकना चाहिए।
एक बड़ी चुनौती रोजगार की है। लोगों और युवाओं को पिछली सरकारों की तुलना में इस सरकार से कहीं ज्यादा उम्मीदें हैं। जहां भाजपा को 19 लाख रोजगार का अपना चुनावी वायदा नहीं भूलना चाहिए, वहीं नीतीश कुमार बिहार सरकार के खाली पदों पर भर्ती कर दें,तो भी राज्य का कल्याण हो जाएगा। डॉक्टर,पुलिस,नर्सिंग स्टाफ, सरकारी कर्मचारी इत्यादि का अनुपात राज्य में चिंताजनक है। रोजगार देने की दिशा में लोगों को विश्वास में लेकर चलने में ही सरकार की भलाई है। बिहार एक जागरूक प्रदेश है और वहां सरकार जितनी पारदर्शिता के साथ काम करेगी, उतना अच्छा होगा। सरकार में बैठे लोगों को ध्यान रखना होगा कि यह कोई आखिरी चुनाव नहीं है और कांटे की टक्कर में सत्ता हासिल हुई है। राजद और कांग्रेस जैसी जो पार्टियां पराजित हुई हैं,वे अगले पांच सालों में आक्रामक मुदे पर रहेगी। इन पार्टियों ने एक प्रकार से नव गठित सरकार को यह संकेत दे दिया है कि सरकार को आने वाले दिनों में कदम-कदम पर विरोध का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि,लोग विपक्षी पार्टियों से भी यह उम्मीद करेंगे कि वे बिहार को आगे ले जाने में सरकार का साथ दें। ताकतवर विपक्ष देकर राज्य के लोगों ने जो संदेश दिया है,उसे राज्य के दोनों पक्षों को समझना चाहिए। बहुत कुछ सरकार पर निर्भर करेगा कि वह सकारात्मक दिशा में आगे बढ़े, ताकि उसे कम से कम विरोध का सामना करना पड़े।
यह नीतीश कुमार का सौभाग्य है कि मुख्यमंत्री के रूप में उन पर बिहार के लोगों और खासकर भाजपा ने पिंचहत्तर सीटें लाने के बाद भी सबसे ज्यादा भरोसा किया है। इतना मौका लोगों ने शायद ही किसी दूसरे नेता को दिया हो। केवल बिहार ही नहीं, बल्कि देश की उम्मीदों पर खरा उतरना व अपनी छवि को और विराटता देने का यह स्वर्णिम मौका नीतीश कुमार को हाथ से गंवाना नहीं चाहिए।