देहरादून। भारत के प्रमुख वैचारिक थिंक टैंक अंब्रेला संगठन “प्रज्ञा प्रवाह” की पश्चिम उत्तर प्रदेश क्षेत्र इकाई द्वारा चलाए जा रही महत्वपूर्ण वेब परिचर्चा श्रृंखला “युवा संवाद से समाधान” के अंतर्गत पांचवें कार्यक्रम “शास्त्रीय व लोक गायन के क्षेत्र में रोजगार” का आयोजन डॉक्टर भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। श्रृंखला के अंतर्गत उक्त कार्यक्रम की आयोजक प्रज्ञा परिषद, ब्रज प्रांत रही। देवभूमि विचार मंच उत्तराखंड एवं भारतीय प्रज्ञान परिषद मेरठ द्वारा सहयोग प्रदान किया गया।

श्रंखला संयोजक डॉ प्रवीण कुमार तिवारी सह आचार्य महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय एवं युवा मंथन प्रभारी शुभ गुप्ता द्वारा कार्यक्रम का संचालन किया गया। कार्यक्रम में प्रज्ञा प्रवाह पश्चिम उत्तर प्रदेश क्षेत्र संयोजक भगवती प्रसाद राघव की उपस्थिति रहे।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. डी. आर. पुरोहित रहे। प्रो. पुरोहित वर्तमान में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला के राष्ट्रीय अध्येता हैं एवं पूर्व मेंं लोक कला एवं संस्कृति निष्पादन केंद्र उत्तराखंड के निदेशक एवं एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष रहे हैं। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रख्यात गायिका एवं काशी कोकिला के नाम से विख्यात प्रो.रेवती साकलकर रहींं। प्रो. साकलकर वर्तमान में काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के संगीत एवं मंच कला संकाय में आचार्य के पद पर सुशोभित हैं।

मुख्य वक्ता डॉ. डी.आर. पुरोहित ने कहा कि उत्तराखंड में ही नहीं संपूर्ण भारतवर्ष में लोक कलाकारों के संरक्षक होते थे जो उनको सहायता के रूप में धन-अन्न उपलब्ध करवाते थे । अभी यह संरक्षक गायब से हो गए हैं। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता है कि संपूर्ण भारत वर्ष में लुप्त प्राय हो रही लोक कलाओं को फिर से पुनर्जीवन प्रदान करना किया जाए । उन्होंने कहा कि आज उत्तराखंड में मांगल्य गायन, बन्ना बन्नी जैसी विधाएं फिर से पुनर्जीवित हो रही हैंं और आज विवाह समारोह में कई परिवार इन लोगों को आमंत्रित करते हैं; जिससे उन समूहों की उचित आय हो रही है। उन्होंने बैगपाइप का उदाहरण देकर भी बताया कि इस प्रकार के वाद्य यंत्र भी कई समूहों को रोजगार उपलब्ध करवा रहे हैं ।उन्होंने चैती गायन का उदाहरण देकर बताया कि कुछ लोगों ने इसको सीखा और आज स्टेज पर गाकर धन अर्जन कर रहे हैं।

मुख्य अतिथि प्रोफेसर रेवती साकलकर ने कहा कि आज प्रज्ञा प्रवाह के मंच पर आकर मैं बहुत प्रसन्न और उत्साहित हूं । उन्होंने कहा कि वेदों के साथ ही स्वर की परंपरा भी रही है ; यहां तक कि उससे पहले भी जब मानव अपनी भूख मिटाने को आखेट करता रहा था , तब भी वह अपना हर्ष स्वर के माध्यम से ही व्यक्त करता था । संगीत विद्या का हम प्राचीन काल से ही देवी देवताओं की पूजा अर्चना और यज्ञ इत्यादि में प्रयोग करते थे । यह दैवीय परंपरा मानी जाती थी , परंतु आजकल धन अर्जन में भी इसका प्रयोग होने लगा है ।

उन्होंने रसिया , कजरी, चैती का उदाहरण देकर बताया कि जब इन सब विधाओं पर शोध होता है, तब ज्ञात होता है कि भारतवर्ष में अलग-अलग स्थानों पर इन विधाओं का अलग-अलग प्रकार से उद्भव हुआ था। उन्होंने कहा कि लोक कलाकार शोध के क्षेत्र में भी उपयोगी होते हैं ।

उन्होंने कहा की पूर्व काल में सिर्फ धन अर्जन के लिए संगीत का उपयोग नहीं होता था । इसके साथ-साथ पूर्व काल में राजाश्रय भी संगीतज्ञ को प्राप्त था अर्थात् राजा कलाकारों एवं उनके परिवार की देखरेख करते थे एवं कलाकार पूर्ण रूप से संगीत एवं गायन विद्या में ही व्यस्त रहते थे । इसी कारण पूर्व में कला का विकास भली प्रकार होता था।

प्रो. साकलकर ने लोक गायन एवं शास्त्रीय संगीत के लिए लोक कलाकारों की एक डायरेक्टरी बनाने का प्रस्ताव भी दिया। उन्होंने प्रशिक्षण हेतु संस्थानों के विषय में भी चर्चा करी। उन्होंने कहा कि आज लोक समाज तक इन विधाओं को ले जाने के लिए वर्कशॉप आयोजित करने की आवश्यकता है। आज ग्रामीण अंचलों के कलाकारों को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने की भी आवश्यकता है। प्रो. साकलकर ने कहा कि लोक हृदय का आलोक है। आज लोक को बैंड के रूप में, फ्यूजन के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है ।लोक आर्केस्ट्रा भी करना चाहिए। यह लोक संगीत आज भारतवर्ष की धरोहर है । इसको जानने वाले इस के ट्रस्टी हैं । उनको चाहिए कि शब्दों के साथ मूल /पारंपरिक को भी संरक्षित एवं सुरक्षित रखें। उन्होंने मैथिलीशरण गुप्त जी की रचना “नर हो, ना निराश करो मन को” का सुंदर गायन भी प्रस्तुत किया।

कार्यक्रम के संयोजक मंडल में डॉ प्रवीण कुमार तिवारी ,डॉ गौरव राव, शुभ गुप्ता ,आदर्श चौधरी एवं अनुराग विजय अग्रवाल मुख्य रूप से रहे। कार्यक्रम में 294 लोग यूट्यूब के माध्यम से उपस्थित रहे।