केसर की खेती अमूमन कश्मीर की ठंडी वादियों में होती है, लेकिन अब दावा किया जा रहा है कि केसर की खेती से उत्तराखण्ड में कई किसानों ने लाखों की कमाई की है। ‘‘जौनसार के रणवीर चौहान केसर उगाकर मजबूत कर रहे आर्थिकी’’- शीर्षक से हिन्दुस्तान समाचार पत्र में रविवार 07 जून 2020 के अंक में प्रकाशित समाचार में कहा गया है कि श्री रणवीर चौहान ने जौनपुर-बावर क्षेत्र के किस्तूड गांव में तीन बीघा भूमि पर कश्मीरी केसर उगाई है, जिससे उन्हें अभी तक करीब तीस किलो उत्पादन मिल चुका है, अभी इस खेती से और उत्पादन मिलेगा। समाचार के अनुसार तीन लाख रुपये प्रति किलो की दर से केसर की बिक्री हुई है, जिससे अब तक श्री चैहान को 90 लाख रुपये तीन बीघा भूमि से एक वर्ष में प्राप्त हो चुके है। सवाल यह उठता है कि क्या उत्तराखण्ड में असली खेती करके इतनी कमाई की जा सकती है ?
केसर की खेती कर अधिक आर्थिक लाभ का प्रलोभन देकर राज्य में विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में ठगी की जा रही है। न्यूज पेपर, व्हाट्स एप ग्रुप, फेसबुक, यूट्यूब आदि के माध्यम से केसर उत्पादन की खबर के माध्यम से सफलता की कहानी देखने को मिल रही है। कई कृषकों ने तो केसर की सफल खेती के वीडियो भी बनाये है। ऐसा ही एक वीडियो कोटद्वार से श्री अनिल बिष्ट का देखने को मिला, जिसमें बताया जा रहा है कि कोटद्वार में सफलतापूर्वक केसर का उत्पादन किया गया है। इसी प्रकार की सफलता की कहानियां पिथौरागढ़, टिहरी जनपद के चम्बा, कीर्तीनगर, रुद्रप्रयाग जनपद के भीरी चन्द्रापुरी आदि क्षेत्रों से मिली हैं।
कुसुम का पौधा (नकली केसर)केसर
इस तरह की सफलता की कहानियों से अन्य कृषक भी भ्रमित होते है। इस केसर को अमेरिकन केसर के नाम से प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है। भारत में केसर की खेती केवल कश्मीर और उसके आसपास के ठंडे क्षेत्रो में ही की जा सकती है। उत्तराखण्ड में इसकी खेती नहीं की जा सकती है। श्री विद्यादत्त पेटवाल, रजाखेत जनपद टिहरी गढ़वाल ने भी अवगत कराया कि कुछ लोगों के प्रभाव में आकर उन्होंने भी केसर की खेती समझ कर नकली केसर का उत्पादन किया जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।
अमेरिकन केसर जैसी कोई चीज होती ही नहीं है। यह नाम सिर्फ किसानों को गुमराह करने के लिए कहा जाता है। जिस केसर को अमेरिकन केसर नाम दिया गया है वह वास्तव में कुसुम (Safflower) या करड़ी वैज्ञानिक नाम- Carthamus tinctorius का पौधा होता है, इसके बीजों से सफोला तेल बनता है। इसके बीज 25-30 रुपये किलो में आसानी से मिल जाते हैं। इसी कुसुम के फूलों का पुंकेसर और स्त्रीकेसर अमेरिकन केसर के नाम से प्रचारित किया जा रहा है। इसको ही अमेरिकन केसर बोलकर इसकी कीमत 50 हजार रुपये प्रति किलो के भाव बताये जाते है। ऊँचे लाभ का लालच देकर 25 रुपये किलो का कुसुम का बीज नब्बे हजार रुपये किलो में बेच दिया जाता है। इस तरह की केसर का कोई बाजार नहीं है। बहुत से किसान इस अमेरिकन केसर के शब्दजाल में फंसकर ठगे जा चुके हैं। इन किसानों के पास ऐसा नकली केसर पड़ा है, जिसके कोई खरीददार नहीं मिल रहे हैं। इन किसानों को उस भूमि में नकली केसर उगाने के चक्कर में कोई फसल न ले पाने से नुकसान तो हुआ ही साथ ही साथ श्रम और धन का अपव्यव भी होता है। जो कुछ भी केसर की खेती की करने वाले किसानों की सफलता के किस्से है जिन्हें सोशल मीडिया के अलावा देश के नामी अखबारों की वेबसाइट में बताया जा रहा है वो असली केसर नहीं है। “अमेरिकन केसर” ये शब्द किसान भाइयो को गुमराह करने के लिए अभी पिछले एक साल से प्रचारित की जा रही है, जिसका की कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं है।
वास्तविक केसर वैज्ञानिक नाम- Crocus sativus के उत्पादन के अनुकूल जलवायु हमारे देश में केवल कश्मीर-श्रीनगर के आस-पास है, जहाँ इसका उत्पादन किया जाता है। यह प्याज के कंदों की तरह लगाया जाता है, जिसमे बैगनी रंग के फूल आते हैं इन फूलों के अंदर स्थित मादा जननांग के वर्तिकाग्र को ही केसर कहते हैं, जिसे हाथ से तोड़कर एकत्र किया जाता है।
औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केन्द्र चैबटिया रानीखेत में 70 के दशक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की योजनान्तर्गत केसर पर शोध कार्य हुए इसके अन्तर्गत काश्मीर से केसर के बल्व मंगाये गये प्रथम वर्ष इन बल्वो से केसर प्राप्त हुआ किन्तु आगामी वर्षों में केसर प्राप्त नहीं हुआ। कई वर्षों के शोध के बाद यही निष्कर्ष निकला कि उत्तराखंड राज्य में केसर का व्यवसायिक उत्पादन सम्भव नहीं है।
कोरोना के कारण बड़ी संख्या में लोगांे का उत्तराखण्ड वापस आना हो रहा है, ऐसे में इन लोगों को केसर की खेती के नाम पर झूठे सपने दिखाकर ठगने का प्रयास हो सकता है। पहाड़ में ही रोजगार के चक्कर में इस प्रकार की सफलता की कहानियां से प्रभावित न हो। उत्तराखण्ड में असली केसर की व्यवसायिक खेती की सम्भावनायें बहुत कम है।
लेखक-वरिष्ठ सलाहकार (कृषि/उद्यान),एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना (ILSP) एवं सेवा इंटरनेशनल उत्तराखंड।