कमल किशोर डुकलान ‘सरल’


हिंदू धर्म में गुरु का स्थान भगवान से ऊपर बताया गया है, जो कार्य भगवान नहीं कर सकता है, वह गुरु की कृपा से हो जाता है। तभी तो कहा गया है कि करता करे ना कर सके, गुरु करे सब होय, सात द्वीप नौ खंड में गुरु से बड़ा ना कोय। गुरु को ज्ञान व प्रेरणा का प्रतिबिंब कहा गया है। गुरु अंधकार को प्रकाश में बदलते हैं और अज्ञानता को दूर करते हैं तथा हमें जीवन का सही मार्ग दिखाते हैं।

गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का प्रतीक भी है। गुरु पूर्णिमा का दिन गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है। इस दिन उनके ज्ञान और मार्गदर्शन के लिए उनका सम्मान करते हैं। गुरु पूर्णिमा अपने माता-पिता के साथ-साथ अपने आध्यात्मिक गुरु और अकादमिक गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए मनाया जाने वाला पर्व है। आषाढ़ पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ग्रीष्म संक्रांति के बाद जुलाई-अगस्त में आने वाली पहली आषाढ़ पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के नाम से जानी जाती है।

भगवान शिव को योग विज्ञान का जनक एवं आदि योगी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव इस सृष्टि जगत के पहले आदिगुरु यानी पहले गुरु बने। आदियोगी भगवान शिव द्वारा प्रदत्त प्राप्त ज्ञान को गुरु पूर्णिमा के दिन ही सप्तऋषि पूरी दुनिया में लेकर गए थे और आज भी,धरती की हर आध्यात्मिक प्रक्रिया के मूल में आदियोगी द्वारा दिया गया ज्ञान ही है।

 

भगवान वेद व्यास को सनातन धर्म में आदि गुरु माना जाता है, मान्यताओं के अनुसार भगवान वेद व्यास जी का जन्म भी आषाढ पूर्णिमा को ही हुआ था जिसे हम गुरु पूर्णिमा के रुप में मनाते हैं। भगवान वेद व्यास जी ने सनातन धर्म के आदि ग्रंथ महाभारत,वेदों और पुराणों सहित कई महत्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों की रचना की जिस कारण उन्हें आदि गुरु के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा,गुरु पूर्णिमा को भगवान कृष्ण ने अपने गुरु ऋषि शांडिल्य एवं भगवान राम ने अपने अपने चारों भाइयों के साथ अपने कुलगुरु वशिष्ठ को ज्ञान प्रदान करने के लिए चुना था। इसी दिन,भगवान बुद्ध ने भी अपने पहले पांच शिष्यों को गुरु पूर्णिमा के ही दिन उपदेश दिया था।

 

वेदों की वाणी संस्कृत में ‘गुरु’ शब्द का अर्थ है ‘अंधकार को मिटाने वाला।’ गुरु साधक के अज्ञान को मिटाता है, ताकि वह अपने भीतर ही सृष्टि के स्रोत का अनुभव कर सके। पारंपरिक रूप से गुरु पूर्णिमा का दिन वह समय है जब साधक गुरु को अपना आभार अर्पित करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।आध्यात्मिक ज्ञान के लिए योग साधना और ध्यान का अभ्यास करने के लिए कर्क संक्रांति २१ जून से ग्रीम संक्रांति आषाढ़ पूर्णिमा तक का समय बेहद खास माना जाता है। गुरु पूर्णिमा का दिन विशेष लाभ देने वाला विशेष दिन माना जाता है।

गुरु पूर्णिमा वह दिन है जब पहले गुरु का जन्म हुआ था। यौगिक संस्कृति में शिव को भगवान ही नहीं माना जाता,बल्कि उन्हें आदि योगी,अर्थात पहले योगी की तरह देखा जाता है।

 

गुरु पूर्णिमा का दिन वह दिन है, जिस दिन भगवान शिव ने अपने को आदि गुरु,अर्थात पहले गुरु के रूप में सृष्टि में अपने को स्थापित किया। किम्वदन्ती है कि 15000 वर्ष पहले भगवान शिव का ध्यान उन महान सप्तऋषियों की ओर गया जो पहले उनके शिष्य बने। उन्होंने 84 वर्षों तक कुछ सरल तैयारियाँ की थीं। फिर जब संक्रांति,गर्मियों की संक्रांति से सर्दियों की संक्रांति में बदली,यानि जब पृथ्वी के संबंध में सूर्य की गति उत्तरी गति से दक्षिणी गति में बदली,जिसे इस परंपरा में उत्तरायण और दक्षिणायन पृथ्वी के दो ध्रुवों के नाम से जाना जाता है,उस दिन आदियोगी ने सप्तऋषियों की ओर देखा और उन्होंने यह महसूस किया कि वे जानने की अवस्था के पात्र बन गये और अब उन्हें और ज़्यादा अनदेखा नहीं किया जा सकता है। आदियोगी उन्हें ध्यान से देखते रहे, और जब अगली पूर्णिमा आई तो आदियोगी भगवान शिव ने गुरु बनने का फैसला किया। उसी पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। उन्होंने अपना मुख दक्षिण की ओर किया और सात शिष्यों को यौगिक विज्ञान प्रदान करने की प्रक्रिया प्रारंभ की।

 

हमारी सृष्टि में अखंड मंडलाकार बिन्दु से लेकर सृष्टि तक चलने वाली अनंत शक्तियां परम तत्व के रूप में स्थापित हैं। मनुष्य से लेकर समाज, प्रकृति और परमेश्वर के बीच में जिस शक्ति का सम्बंध है। साधकों द्वारा शक्ति रुपी जिस सम्बंध को जिनके चरणों में बैठकर समझने की अनुभूति पाने का प्रयास किया जाए वास्तव में वही गुरु है। विश्व में योग विज्ञान का प्रसार करते हुए सप्त ऋषियों ने मानव जीवन के आदर्श गुणों को निर्धारित करते हुए गुरु दीक्षा को व्यवस्थित रूप में समाज के सामने रखा।जीवन में हर इंसान का कोई न कोई गुरु होता है, खास बात ये है कि जो किसी को गुरु नहीं मानता है वो भी किसी न किसी से अपने जीवन में सीखता है। हम सबके जीवन में कोई न कोई हमारा आदर्श होता है। वे भी हमारे गुरु के समान होते हैं। गुरु पूर्णिमा के दिन सभी लोगों को अपने गुरु के प्रति सम्मान व्यक्त करना चाहिए। ऐसा करने से न सिर्फ गुरु और शिष्य के बीच का संबंध अच्छा होता है बल्कि दोनों को एक दूसरे के प्रति सम्मान का भाव भी बढ़ता है।

-रुड़की, हरिद्वार (उत्तराखंड)