किसानों के प्रदर्शन से जिस तरह पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच जो अप्रिय संवाद चल रहा है उससे यही प्रतीत होता है कि राज्यों के बीच स्वस्थ संवाद और समन्वय का अभाव है। पंजाब और हरियाणा के वैचारिक या राजनीतिक मतभेदों के संघर्ष का नुकसान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को भुगतना पड़ेगा….


-कमल किशोर डुकलान, रुड़की (हरिद्वार)


कल किसानों के आंदोलन का जो उग्र स्वरूप मैंने दिल्ली की सीमाओं देखा,वह दुखद ही नहीं,अपितु चिंताजनक भी है। किसानों का आंदोलन न केवल हरियाणा पुलिस, बल्कि दिल्ली पुलिस के लिए भी चुनौती बनकर खड़ा है। केंद्र सरकार यह नहीं चाहती कि किसान आन्दोलन का केन्द्रबिन्दु दिल्ली बनें, इसलिए दिल्ली राज्य पर लगी सीमाओं पंजाब और हरियाणा के रास्ते दिल्ली में घुसने की कोशिश करने वाले किसानों के खिलाफ अर्द्धसैनिक बलों द्वारा उन्हें रोकने के प्रयास में कुछ बल प्रयोग भी किया गया। जिस कारण से सीमा पर बैरिकेडिंग के चलते दिल्ली, गाजियाबाद,नोएडा,गुरुग्राम, फरीदाबाद और सिंघु बॉर्डरों पर वाहनों के लंबे जाम की समस्या देखी गई है। हम भी यात्रा के दौरान किसान आन्दोलन से हुई जाम की समस्या से काफी हद तक प्रभावित हुए।
यह अपने आप में ऐतिहासिक घटना है कि किसानों को किसी भी तरह से दिल्ली पहुंचने से रोका जा रहा है। हालांकि,पुलिस का यही कहना है कि सीमा को सील नहीं किया गया है,मगर दिल्ली आने वाले वाहनों की जांच की जा रही है। वैसे पुलिस ने मंगलवार को ही यह स्पष्ट कर दिया था कि किसान अगर कोरोना महामारी के समय में दिल्ली आने की कोेशिश करते हैं,तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी। बहरहाल, आम लोगों या किसानों को हुई परेशानी के लिए राजनीति को भी काफी हद तक जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। साफ तौर पर पंजाब के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि किसान दिल्ली में विरोध मार्च करके अपनी ताकत दिखाएं। यह बात छिपी हुई नहीं है, पिछले दिनों में पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी दिल्ली में विरोध जताया था, पर उनकी मांग नहीं मानी गई। आनन-फानन में वह किसानों को खुश करने के लिए अपनी ओर से ऐसे कानून बनाने की कोशिश कर चुके हैं,पर वह जानते हैं कि केंद्र सरकार की सहमति के बिना यह कानून मंजूर नहीं होगा। पंजाब में किसानों का प्रदर्शन लगातार जारी है। अत: प्रदर्शन का स्थान बदलने की राजनीति कतई अचरज का विषय नहीं है। पंजाब के बजाय अगर दिल्ली में किसान अपनी आवाज उठाएं, तो यह पंजाब के अनुकूल है,लेकिन समस्या हरियाणा सरकार को भी हो रही है। किसानों के दिल्ली कूच के प्रयास को रोकने के लिए हरियाणा सरकार को जोर लगाना पड़ रहा है। पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों के बीच ट्विटर पर छिड़ी जंग केवल यही संकेत दे रही है कि किसान आंदोलन के पीछे राजनीति ज्यादा जिम्मेदार है। पंजाब के मुख्यमंत्री ने दिल्ली की ओर मार्च कर रहे किसानों को रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली हरियाणा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि किसानों के खिलाफ बल प्रयोग करना पूरी तरह अलोकतांत्रिक व असांविधानिक है। इसका हरियाणा के मुख्यमंत्री ने ट्वीट करते हुए जवाब दिया कि मैंने पहले ही कहा है और मैं इसे फिर कह रहा हूं कि मैं राजनीति छोड़ दूंगा, अगर एमएसपी पर कोई परेशानी होगी, इसलिए कृपया निर्दोष किसानों को उकसाना बंद कीजिए।
दो पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच इस तरह के अप्रिय संवाद से साफ है, राज्यों के बीच में स्वस्थ संवाद और समन्वय का अभाव होने लगा है।अब प्रश्न उठता है कि वैचारिक या राजनीतिक मतभेद के आधार पर जो संघर्ष चल रहा है,तो क्या इसका नुकसान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को भुगतना पड़ेगा? ऐसे मतभेद के रहते क्या किसानों की समस्या का समाधान हो सकता है?  बेशक, समय रहते निर्णायक मंचों पर किसानों को सुनने और संतुष्ट करने के प्रयास तेज होने चाहिए।