डॉ. गौरव का यह कदम करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणादायकः डाॅ. निशंक

-डाॅ. वीरेंद्र बर्त्वाल

देहरादून। हम भले ही अंग्रेजी का इस्तेमाल कर अपने को समाज में बड़ा आदमी दिखाने की कोशिश करें, लेकिन हकीकत यह है कि हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत का महत्त्व भारत ही नहीं, सात समुद्र पार तक फैला हुआ है। देववाणी के नाम से विख्यात इस समृद्ध भाषा को कंप्यूटर के लिए सर्वश्रेष्ठ भाषा करार दिया जा चुका है। यह इसकी वैज्ञानिकता का प्रमाण है। हाल ही में न्यूजीलैंड के सांसद भारतीय मूल के डाॅ. गौरव शर्मा के संस्कृत में शपथ लेने से देश-दुनिया में इस भाषा का गौरव बढ़ा है। यह भारत में अंग्रेजी को बेवजह अपना रहे लोगों के लिए यह एक सबक है।
डाॅ. गौरव शर्मा न्यूलीलैंड के हैमिल्टन पश्चिम से लेबर पार्टी के सांसद चुने गए हैं। 33 वर्षीय गौरव का पैतृक घर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के लोअर हड़ेटा गांव में है। उनका जन्म 01 जुलाई, 1087 को हिमाचल प्रदेश के सुंदरनगर मे हुआ था। वे 2017 में चुनाव हार गए थे। उनकी जीत पर वहां रह रहे भारतीय मूल के अनेक नागरिकों ने प्रसन्नता व्यक्त की। शपथ ग्रहण समारोह में डाॅ. शर्मा ने पहले वहां की भाषा मोरी और इसके बाद संस्कृत में शपथ ली। उनके इस फैसले की सर्वत्र सराहना की गयी, क्योंकि उन्होंने अपने वर्तमान क्षेत्र की भाषा के साथ ही अपने मूल देश की पुरातन भाषा में भी शपथ ली। न्यूलीलैंड में भारतीय उच्चायुक्त मुक्तेश परदेशी ने डाॅ. गौरव शर्मा के इस कदम की सराहना करते हुए इसे दोनों देशों का सम्मान बताया है।
डाॅ. गौरव ने इस संबंध में ट्विटर पर लिखा है कि माना जाता है कि दुनिया की सभी भाषाओं का जन्म संस्कृत से हुआ है। मैं उत्तर भारत की कई भाषाओं को जानता और समझता हूं। मैं किसी एक भाषा में शपथ लेता तो दूसरी भाषा के लोगों के साथ भेदभाव होता, इसलिए संस्कृत में भी शपथ ली।
डॉ. गौरव शर्मा 1996 में न्यूजीलैंड चले गए थे। गौरव के पिता हिमाचल प्रदेश बिजली विभाग में इंजीनियर थे। उन्होंने वीआरएस लिया था। इसके बाद वे परिवार के साथ न्यूजीलैंड चले गए।
उधर, इस संबंध में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल का कहना है कि डाॅ. गौरव शर्मा का यह निर्णय अपने मूल देश के प्रति उनके प्रेम और अपनी पुरातन भाषा के प्रति उनकी श्रद्धा का द्योतक है। अपनी जड़ों से जुड़े रहने वाले लोग ही जीवन में प्रगति और प्रतिष्ठा हासिल करते हैं। डाॅ. गौरव का यह कदम करोड़ों भारतवासियों और अप्रवासी भारतीयों के लिए प्रेरणादायक है। हमारी देववाणी संस्कृत ने एक बार सात समुद्र पार अपना महत्त्व प्रतिपादित किया है। इस भाषा की समृद्धि और वैज्ञानिकता इसे अन्य भाषाओं से श्रेष्ठ बनाती है।