✍️ सुभाष चन्द्र जोशी ©


विष्णु प्रसाद का चयन आई0ए0एस0 में हो गया था। प्रशिक्षण के बाद अब उसे तैनाती मिलनी थी। विष्णु प्रसाद शौकिया किस्म का व्यक्ति था। उसकी पहली तैनाती उपजिलाधिकारी के रूप में हुई थी। विष्णु प्रसाद को खाने का बहुत शौक था, इसलिए उसेे खाना बनाने के लिए एक अच्छे रसोईये की आवश्यकता थी। बहुत ढूंढने के बाद एक 18 वर्ष का एक लड़का मिल ही गया। हुकुम सिंह नाम था उसका। वह 10वीं पास था। दिखने में गोरा, चिट्टा और लम्बा था। वह अक्सर शादी-ब्याह में खाना बनाने के लिए जाता था। इसलिए उसे खाना बनाने की जानकारी तो थी ही। विष्णु प्रसाद ने पूछा ‘‘क्या बना लेते हो।’’ हुकुम बोला ‘‘साहेब शादी-ब्याह में तो सभी चीज बना लेता हूँ।’’ बाकी जो आप बोलेंगे वह बना लूँगा।’’ उम्र में छोटा था, इसलिए विष्णु प्रसाद को विश्वास नहीं हुआ कि हुकुम सिंह को अच्छा खाना बना लेता होगा। विष्णु ने कहा ‘‘चलो रसोई में जाओ और जो तुम्हें अच्छा लगे वह बना लो।’’ हुकुम ने पूरी रसोई का जायजा लिया फिर वह खाना बनाने में लग गया। उसने दाल, सब्जी, पूड़ी, पकौड़े तथा खीर बनाई। विष्णु को खाना अच्छा लगा। हुकुम सिंह ने पूछा ‘‘साहेब खाना कैसे बना है।’’ विष्णु बोला ‘‘खाना तो ठीक बना लेते हो। अब बताओ थोड़े-थोड़े दिन बाद गायब तो नहीं हो जाओगे।’’ हुकुम को तो काम की जरूरत थी इसलिए उसने मेहनत से काम किया और अपने हुनर से वह विष्णु प्रसाद का चहेता बन गया।
विष्णु प्रसाद की तैनाती अब जिलाधिकारी के पद पर हो गयी। इसलिए वह मुख्यालय पर जिलाधिकारी आवास में चला गया। अब विष्णु का पूरा परिवार भी वहाँ रहने आ गया। सभी हुकुम सिंह के खाने के दीवाने हो गये। कहते है ना किसी के दिल में जगह बनाने का रास्ता पेट से जाता है। उसी प्रकार हुकुम सिंह ने भी अब जिलाधिकारी और उसके परिवार के दिल में जगह बना ली थी। अब तो हुकुम सिंह जिलाधिकारी के अधीनस्थ अधिकारियों से भी घुलमिल गया था। जिलाधिकारी के साथ कभी-कभी वह दौरे पर भी चला जाता था। धीरे-धीरे उसकी जिलाधिकारी आवास में स्थित कैम्प कार्यालय में एक पहचान बन गयी थी कि यह जिलाधिकारी का खास आदमी है। वह आये दिन अधिकारियों को कोई न कोई काम बता देता था। उसके कहने पर छोटे-मोटे काम हो भी जाते थे। अब वह जिलाधिकारी का इतना विश्वासपात्र हो गया था कि उसने लोगों के बीच अपनी हनक बनाने के लिए जिले में कोई भी काम करवाने के दावे करने शुरू कर दिया था। ऐसा हो भी रहा था, जिस काम के लिए वह बोल लेता वह हो भी जाता था। धीरे-धीरे काम करवाने के एवज में उसे लोग उपहार और रूपये भी देने लगे थे। हुकम सिंह को चस्खा लग गया था। वह काम करवाने के एवज में मोटी रकमें भी वसूलने लग गया था। जिलाधिकारी के टेबल के नीचे के सभी उपहार और रूपये हुकुम सिंह ही लेने लगा था। धीरे-धीरे उसने सभी जिला कार्यालयों में अपनी पैठ बना ली।
एक दिन विष्णु प्रसाद का स्थानान्तरण मंत्रालय में हो गया। वह अपने साथ हुकुम सिंह को भी ले आया। हुकुम सिंह ने अपनी चतुराई और चालाकी के बल पर यहाँ भी अपना खेल चालू कर दिया। अब तो वह नौकरी लगवाने के दावे करने लगा। उसने लाखों रूपये लेकर विष्णु प्रसाद के अधीनस्थ कार्यालय में कई लोगों को अस्थायी तौर पर नियुक्ति दिलवायी। अब तो उसने लाखों रूपये एकत्रित कर लिये थे। अब विष्णु प्रसाद को भी यह अच्छा लगाने लगा था क्योंकि हर माह हुकुम सिंह लाखों रूपये लेकर जो दे देता था। विष्णु प्रसाद के साथ रहते-रहते उसकी पहचान मंत्रालय के कई बड़े नौकरशाहों से हो गयी। वह उनको भी अपने झांसे में ले लेता था। एक दिन उसने अखबार में नौकरी का विज्ञापन पढ़ा, जिसमें सरकार ने विभिन्न विभागों में खाली पदों पर भर्ती के लिए आवेदन मांगे हुए थे। लगभग 5 हजार पदों पर भर्ती होनी थी। फिर तो क्या था। हुकुम सिंह लग गया जुगाड़ में। उसने परीक्षा करवाने वाले राज्य सरकार के विभाग में आना-जाना शुरू कर दिया। विष्णु प्रसाद के पद का रौब दिखाकर कई अधिकारियों से मिलने-जुलने लगा। उसकी नजर तो मात्र किसी तरह रूपये लेकर नौकरी का जुगाड़ ढूंढना था। उसने विभाग के कुछ छोटे अधिकारियों और परीक्षा का जिम्मा संभाल रही कम्पनी के कर्मचारियों को अपने खेल में मिला दिया। सबसे पहले उसने कम्पनी के एक क्लर्क को अपने झांसे में लिया। उसने किसी तरह पेपर हासिल करने की ठान ली थी। फिर जब उसे लगा कि वह यह काम कर सकता है तो उसने नौकरी के लिए युवकों से रूपये ऐंठने शुरू कर दिये। इस तरह उसने कर्मचारियों और अधिकारियों को भी करोड़ों का लालच दे दिया। कुछ बेरोजगार संघ के नेताओं को मोहरा बनाकर ऊगाई शुरू कर दी। करोड़ों रूपये एकत्रित कर लिया था हुकुम ने। उसने परीक्षा में आने वाले पेपर को भी हासिल कर लिया था। लगभग 500 लोगों से परीक्षा में पास करवाने के एवज में रूपये ले लिये। सभी को पेपर के बारे में जानकारी देने के लिए व्यवस्था कर दी इस काम में कुछ सरकारी कर्मचारियों और शिक्षकों के साथ कोचिंग संस्थानों के संचालकों को भी साथ ले लिया। इस गोरखधंधे में कई लोग जुड़ गये। प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से कई लोगों ने इस पेपर से सहायता प्राप्त कर ली थी। परीक्षा हो गयी। परिणाम भी आ गये। परिणाम देखकर युवाओं को निराशा हुई और उन्हें इस में शक होने लगा कि कहीं न कहीं इस परीक्षा में धांधली हुई है। क्योंकि इस परीक्षा में ऐसे लोगों टॉपर थे जिनके आज तक 40 से अधिक नम्बर नहीं आये। इस परीक्षा में एक ही परिवार के दो-दो सदस्य पास हुए थे। यह बात धीरे-धीरे फैलने लगी और पीड़ित युवाओं ने जगह-जगह अपनी शिकायतें दर्ज करवा ली थी। सरकार के लिए भी यह प्रतिष्ठा का विषय बन गया था। इसलिए सरकार ने इसका संज्ञान लेकर जांच बैठाकर स्पेशल टॉस्क फोर्स को यह मामला सौंप दिया। जांच में इस मामले की परत-दर-परत खुल गयी। 200 लोगों को हिरासत में लिया गया। यह सब होने के बाद भी हुकुम सिंह गिरफ्त में नहीं आया। वह देश के अलग-अलग राज्यों में अपना ठिकाना बनाने लगा। पुलिस को जांच में पता चल गया था कि इसमें हुकुम सिंह नाम के एक आदमी मास्टर माइण्ड है। जांच एजेंसी ने सभी सबूतों के आधार पर हुकुम सिंह को एक दिन धर दबोचा। हुकुम सिंह के सम्बन्ध एक सताधारी दल के साथ-साथ कई नौकरशाहों से था। इससे सरकार सर्तक हो गयी। कल तक जो उसे खास थे आज उन्होंने भी उससे मुंह मोड़ लिया।
विष्णु प्रसाद प्रतिनियुक्ति पर केन्द्र में चला गया। हुकुम सिंह इस षड़यन्त्र का मास्टरमाइण्ट था। हुकुम सिंह की गिरफ्तारी के बाद कई सफेदपोशों को भी पकड़ लिया गया, जो इस खेल में शामिल थे। राज्य में इस प्रकार की धांधली परीक्षा में आज तक नहीं हुई थी। सरकारी नौकरी के इन सौदागरों ने कई युवाओं का भविष्य बर्बाद कर दिया था और जिन युवाओं ने रूपये देकर पेपर हासिल किया उनके भविष्य पर काले बादल छा गये थे। इस गोरखधंधे में कई सरकारी कर्मचारी/अधिकारी भी शामिल थे। दबाव में चयन आयोग के अध्यक्ष और सचिव को भी हटा दिया गया। इनकी भूमिका भी संदिग्ध लगने लगी थी। सरकारी नौकरी के इन सौदागरों के कारण अब सरकार और चयन आयोग से युवाओं का विश्वास उठ गया था। सरकार की छवि भी इससे धूमिल हो गयी। विपक्ष ने सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। सरकार ने इस दबाव में जांच तेज कर दी और किसी को भी न बख्शने की ठान ली। धीरे-धीरे एक-एक कर सभी षड़यन्त्रकारी पकडे गये। कोर्ट ने इन सभी को सजा सुनाई और कई वर्षों की जेल हो गयी।
(यह एक काल्पनिक कहानी है इसका किसी घटना की वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं है)