30 Jun 2025, Mon

शांतिकुंज व फार्मेसी ने हर्षोल्लास से मनाई धन्वन्तरि जयंती

-गायत्री विद्यापीठ ने पर्यावरण को बचाने हेतु पटाखा नहीं चलाने के संकल्प के साथ निकाली रैली
हरिद्वार। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय स्थित फार्मेसी एवं शांतिकुंज के मुख्य सभागार में आयुर्वेद के प्रवर्तक भगवान धन्वन्तरि की जयंती आयुर्वेद के विकास में जुट जाने के आह्वान के साथ मनाई गई। फार्मेसी में हवन के साथ भगवान धन्वन्तरि की विशेष पूजा-अर्चना की गयी।
अपने संदेश में गायत्री परिवार प्रमुख डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि धन्वन्तरि भगवान विष्णु के तेरहवें अवतार हैं तथा दीर्घतपा के पुत्र व केतुमान के पिता हैं। वे देवताओं के वैद्य थे। उन्होंने कहा कि परमात्मा ने सर्वश्रेष्ठ मनुष्य काया दी है, तो उसे प्राकृतिक रूप से स्वस्थ रखकर जीवनोद्देश्य की दिशा में निरंतर गतिशील रहना चाहिए। डॉ. ओपी शर्मा, डॉ. गायत्री शर्मा, डॉ. शिवानंद साहू, डॉ. वीसी नायक, डॉ. गोपीवल्लभ पाटीदार, डॉ. अलका मिश्रा, डॉ. वन्दना श्रीवास्तव, डॉ. एसपी विश्नोई, डॉ. एके पाण्डेय आदि ने भगवान धन्वन्तरि से जुड़े विभिन्न पौराणिक कथानकों का जिक्र करते हुए प्रकृति के अनुसार जीवन जीने की सलाह दी।
वहीं पर्यावरण संरक्षण को लेकर गायत्री विद्यापीठ के पाँच सौ से अधिक बच्चों ने एक नई पहल की। विद्यापीठ के बच्चों ने पर्यावरण बचाने की मुहिम के साथ इको फ्रेंडली पर्व मनाने, पटाखे नहीं फोड़ने तथा एक-एक पौधा लगाने के संकल्प के साथ जनजागरण रैली निकाली। यह रैली विद्यापीठ से प्रारंभ होकर हरिपुर कलॉ, सप्तसरोवर क्षेत्र होते हुए शांतिकुंज पहुँची। शिक्षकों ने स्वयं व अपने निकटवर्ती परिवारों को भी पर्यावरण संरक्षण हेतु एक-एक पौधा रोपने तथा पटाखे नहीं चलाने की बात कही। इससे पूर्व शांतिकुंज आने वाले श्रद्धालुओं को पारिवारिक स्नेह की अनुभूति कराने वाली श्रद्धेया शैल जीजी एवं श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने अखिल विश्व गायत्री परिजनों से इको फ्रेण्डली दीपावली मनाने का आवाहन किया। देवसंस्कृति विवि के कुलाधिपति व अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ प्रणव पण्ड्या का 70वाँ जन्मदिन 26 अक्टूबर रूप चतुर्दशी को ‘चेतना दिवस’ के रूप में सादगी से मनाया जायेगा। एमडी (मेडीसिन) में स्वर्ण पदक प्राप्त युवा चेतना के उद्घोषक डॉ पण्ड्या ने प्रारंभ के 25 वर्ष अपने शिक्षण कार्य में बिताने के बाद शेष जीवन अपने सद्गुरु युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्यश्री को सौंप दिया। उन्होंने अपने गुरु के बताये निर्देशों के पालन करते हुए देसंविवि एवं गायत्री परिवार को नई ऊँचाइयों में पहुँचाया है।

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