देहरादून। उत्तराखण्ड में हुई प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं और दुर्घटनाओं की एक रिपोर्ट के अनुसार अक्टूबर की तुलना में नवम्बर महीने में सड़क दुर्घटनाओं में कमी आयी है। वहीं नवम्बर में तीन भूकम्प के झटके भी आये हैं। सोशल डेवलपमेन्ट फॉर कम्युनिटी के संस्थापक अनूप नौटियाल की और से जारी यह रिपोर्ट मुख्य रूप में विश्वसनीय हिन्दी और अंग्रेजी अखबारों और न्यूज़ पोर्टल्स में छपी खबरों पर आधारित है। रिपोर्ट में नवम्बर 2022 के महीने में राज्य में आई प्रमुख आदाओं और दुर्घटनाओं का ब्योरा दिया गया है। हम इस रिपोर्ट में राज्य में बड़ी दुर्घटनाओं को ही शामिल कर रहे हैं। नवम्बर महीने की रिपोर्ट बताती है कि इस महीने राज्य में बड़ी सड़क दुर्घटनाओं में 12 लोगों की मौत हुई है। उदास की अक्टूबर के महीने की हमारी पहली उदास रिपोर्ट में प्रदेश की चार प्रमुख आपदाओं और एक्सीडेंट्स में 74 मौत दर्ज की गई थी। नवम्बर के महीने में एक बड़ी सड़क दुर्घटना चमोली जिले में हुई। 18 नवम्बर को जोशीमठ के पास डुमक मार्ग पर पल्ला जखोल के पास हुए इस हादसे में एक टाटा सूमो वाहन करीब 700 मीटर गहरी खाई में गिर गया। इस हादसे में 12 लोगों की मौत हुई। इस टाटा सूमो वाहन में 16 लोग सवार थे। यह संख्या इस वाहन की क्षमता से करीब दोगुनी थी। मरने वालों में दो महिलाएं भी शामिल थी।
भूकंप के झटकों ने हिलाया
उदास की रिपोर्ट में नवम्बर में आये भूकम्पों को प्रमुखता से दर्ज किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार 6 नवम्बर को राज्य के कई हिस्सों में भूकंप का झटका महसूस किया गया। इस भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 4.5 मैग्नीट्यूड थी और भूकम्प का केन्द्र उत्तरकाशी से 17 किमी दूर उत्तर-पूर्व में था। 9 नवम्बर को एक बार फिर राज्य में भूकम्प का झटका महसूस किया गया। इस भूकम्प की तीव्रता 4.3 मैग्नीट्यूट मापी गई। भूकम्प का केन्द्र पिथौरागढ़ में था। 12 नवम्बर को भूकंप का सबसे तेज झटका महसूस किया गया। इस भूकम्प की तीव्रता 5.4 मैग्नीट्यूड थी और भूकम्प का केन्द्र नेपाल में था।
उत्तराखंड और आपदा प्रबंधन
हमारी उम्मीद है की उदास मंथली रिपोर्ट राजनीतिज्ञों, नीति निर्माताओं, अधिकारियों, शोधार्थियों, शैक्षिक संस्थाओं, सिविल सोसायटी आग्रेनाइजेशन और मीडिया के लोगों के लिए सहायक होगी। साथ ही दुर्घटना और आपदाओं से होने वाले नुकसान के न्यूनीकरण के लिए नीतियां बनाते समय भी इसका इस्तेमाल किया जा सकेगा।उत्तराखंड आपदाओं की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है और अपने अध्ययनों के आधार पर वैज्ञानिक यहां भूस्खलन, भूकंप आने की आशंका लगातार जताते रहे हैं। ऐसे में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में विशेष तौर पर आपदा तंत्र को मजबूत करने की सख्त जरूरत है।
उत्तराखंड मे पिछले 20 वर्षों से अधिक समय पर भी आपदा प्रबंधन के कमज़ोर तंत्र को लेकर और प्रदेश में सैंकड़ों आपदा ग्रसित गांवों के विस्थापन को लेकर हम चिंतित हैं और उम्मीद रखते हैं की उदास मंथली रिपोर्ट की निरंतरता से सम्भवता उत्तराखंड मे इस मुद्दे को लेकर सरकार के स्तर पर और अधिक गंभीरता देखने को मिलेगी। उत्तराखंड सरकार और आपदा प्रबंधन विभाग को पीआरआई सदस्यों, आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, गैर सरकारी संगठनों और सामुदायिक स्तर के स्वयं सेवकों, सभी सरकारी कर्मचारियों, अग्निशमन सेवाओं और पुलिस कर्मियों जैसे अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं को आपदा व दुर्घटना न्यूनीकरण के प्रयासों से जोड़ने की जरूरत है, ताकि इनसे होने वाले नुकसान को कम से कम किया जा सके।
आपदा प्रबंधन का ओडिशा मॉडल
उत्तराखंड को आपदा प्रबंधन के लिए ओडिशा मॉडल से सीख लेने की ज़रूरत है। ओडिशा मॉडल की सराहना यूनाइटेड नेशंस ने भी की हैं। आपदा जोखिम शासन को मजबूत करने, तैयारियों और परिदृश्य योजना में निवेश करने और आपदा जोखिम की अधिक समझ फैलाने पर ओडिशा मॉडल महत्वपूर्ण सबक देता है। ओडिशा मे 1999 के चक्रवात मे लगभग 10,000 लोग मारे गए और यह कभी दोहराया नहीं गया है।