देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा का एक दिन का विशेष सत्र सात जनवरी को बुलाया गया है। इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण को अगले 10 साल के लिए जारी रखने के प्रस्ताव को पारित कराया जाएगा। उत्तराखंड में लगभग 21 फीसदी वोट दलित समुदायों का है। इस पर न सिर्फ भाजपा बल्कि कांग्रेस और बसपा की भी नजर रही है।
इतना बड़ा वोट बैंक प्रदेश की सत्ता पर काबिज करने के लिए काफी है। इसलिए जानकार मान रहे हैं कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के 10 साल के लिए आरक्षण बढ़ाने के मुद्दे को बीजेपी 2022 में कैश करेगी। जानकारों के अनुसार भाजपा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण की अवधि बढ़ाने के प्रस्ताव का उत्तराखंड के 2022 के चुनावों में फायदा जरूर उठाना चाहेगी। जानकारों का मानना है कि यूं तो यह संविधान में दी गई व्यवस्था के अनुसार हो रहा है लेकिन यह तय है कि इसका राजनीतिक इस्तेमाल जरूर किया जाएगा। दरअसल दलितों को राजनीतिक दल हमेशा वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करते आए हैं। देखा जाए तो 2017 और 2019 के चुनावों में भाजपा को दलितों का बम्पर वोट मिला था लेकिन निकाय और पंचायतों में यह वोट बीजेपी से खिसक गया। ऐसे में बीजेपी की पूरी कोशिश रही है कि 10 साल के लिए आरक्षण बढ़ाने के मुद्दों का राजनीतिकरण करके आने वाले चुनावों में फायदा लिया जाए। इसके लिए इस मुद्दे को जिन्दा रखा जाए।