राज्य गठन के इन बीस वर्षों में पूर्ण बहुमत की सरकारों में सत्तासीन दलों द्वारा बार-बार नेतृत्व परिवर्तन करना राज्य के विकास में बाधक है,आने वाले समय में उत्तराखंड की जनता विकास के साथ राजनैतिक स्थिरता चाहती है……
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पद से ऐसा समय में त्यागपत्र दिया है,जब सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं को आम जन तक पहुंचाने का समय था। माना जा रहा है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव से एक वर्ष पूर्व यह पाया कि त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व में 2022 का चुनाव जीतना मुश्किल है।अब प्रश्न यह उठता है,कि आखिर चार साल के कार्यकाल में उनके कामकाज का आकलन क्यों नहीं किया जा सका? क्या यह मान लें कि एक वर्ष का नया मुख्यमंत्री उन सब कारणों का निवारण करने में सक्षम हो जाएगा,जिनके चलते त्रिवेंद्र सिंह रावत से त्यागपत्र लिया गया? इन सब प्रश्नों के उत्तर चाहे जो भी रहे हो, परन्तु भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के लिए राज्य के नाते मुख्यमंत्री के तौर पर यह स्पष्ट करना कठिन होगा। केन्द्रीय नेतृत्व को त्रिवेंद्र सिंह रावत के इन चार वर्षों के कार्यकाल के दौरान समय-समय पर संगठन के माध्यम से उचित आदेश-निर्देश देकर उनके कामकाज की कार्यशैली अथवा राज्य मंत्रिमंडल में फेरबदल कर ठीक किया जा सकता था। भाजपा एक राष्ट्रीय दल है और उसका केंद्रीय नेतृत्व राज्यों के अपने नेतृत्व के तौर-तरीकों से न तो अनभिज्ञ हो सकता है और न ही यह कहा जा सकता है कि वह दखल देने की स्थिति में नहीं रहा होगा। कुल मिलाकर उत्तराखंड में चुनाव से एक वर्ष पहले नेतृत्व परिवर्तन का फैसला मोदी फैक्टर में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाला कहा जाए तो कोई हैरानी नहीं होगी।
उत्तराखंड राज्य बनने के बीस वर्षों बाद राज्य को नौवां मुख्यमंत्री मिलने से यह धारणा और अधिक पुष्ट ही हुई कि इस पर्वतीय राज्य में किसी मुख्यमंत्री के लिए अपना कार्यकाल पूरा करना मुश्किल है। नि:संदेह यह तथ्य चकित करता है कि उत्तर प्रदेश से पृथक अलग राज्य के गठन के बाद से नारायण दत्त तिवारी के अलावा अन्य कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका है-वह चाहे वह भाजपा का कार्यकाल रहा हो या कांग्रेस का। अपेक्षाकृत एक छोटे राज्य में ऐसा होना आश्चर्यजनक है। अब तक राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकारों में ही बार-बार नेतृत्व परिवर्तन से कहीं न कहीं इसका नुकसान राज्य की जनता को भी उठाना पड़ता है। राज्य बनने के बाद बार-बार नेतृत्व परिवर्तन से राज्य की जनता की समझ में एक बार तो जरुर समझ में आ गई है,कि राज्य में विकास के साथ-साथ स्थिरता में एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकारों में भाजपा हो या कांग्रेस को इस बीस वर्षों में नेतृत्व परिवर्तन जिन परिस्थितियों में करना पड़ा हो, इससे भाजपा अथवा कांग्रेस को सबक सीखने की जरूरत है। राज्य के राजनैतिक दलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि जैसे उत्तराखंड के हालात इन बीस वर्षों में बने हैं,वैसे अब आगे न बन पायें यदि बनते हुए दिखें तो समय रहते तत्काल हस्तक्षेप कर उन्हें ठीक करना चाहिए। कम से कम भाजपा से यह अपेक्षा इसलिए की जाती है,क्योंकि वह कांग्रेस सरीखा राजनीतिक दल नहीं है,जहां एक ही परिवार के निर्णय पार्टी पर हावी हो और उसके फैसलों के आगे किसी की नहीं चलती हो। कमल किशोर डुकलान रुड़की (हरिद्वार)