आधुनिक भारत के निर्माण में डिजिटल व्यवस्था को विकसित करने से न केवल गांव के लोगों को फायदा होगा बल्कि देश तरक्की की राह पर तेजी से आगे भी बढ़ेगा।

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने देश की जनता को सातवीं बार संबोधित करते हुए घोषणा की कि आने वाले अगले तीन वर्षो में देश के सभी गांवों को ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ दिया जाएगा। इससे वास्तव में आधुनिक भारत के निर्माण में डिजिटल व्यवस्था को विकसित करने से न केवल गांव के लोगों को फायदा होगा बल्कि देश तरक्की की राह पर तेजी से गांवों का कायाकल्प होने की एक बार फिर उम्मीद जगी है। प्रधानमंत्री मोदी ने सीधे तौर पर यह तो नहीं कहा कि आधुनिक भारत की अगली नई तस्वीर देश के गांव गढ़ेंगे, लेकिन जिस तरह से मौजूदा केंद्र सरकार ने गांवों को डिजिटल व्यवस्था की नई संभावना के रूप में देखना शुरू किया है, वह निश्चित रूप से एक बड़ी बात है। भारत की मौजूदा सबसे बड़ी समस्याओं में से एक हमारे महानगरों और मझोले कद के शहरों के समूचे रहवासी ढांचे का चरमरा जाना भी है। भारत का कोई भी शहर या महानगर आज के समय में ऐसा नहीं है जहां भयानक रूप से जाम की समस्या,स्वच्छ पीने की व्यवस्था, बढ़ती झुग्गी झोपड़ियों की समस्या तथा अनियंत्रित ढंग से शहर के विस्तारित हो जाने की समस्या न हो जिस कारण से भारतीय शहरों का ढांचा पूरी तरह से चरमरा गया है।
लंबे समय से देश का नीति आयोग और शहरी विकास मंत्रालय देश के विभिन्न शहरों के समूचे ढांचे को चुस्त दुरुस्त करने के लिए दर्जनों घोषणाएं कर अपेक्षित सुधार करने का प्रयास करता रहा है। कभी मुंबई को शंघाई तो दिल्ली को लंदन। लेकिन हकीकत यह है कि न तो मुंबई शंघाई बन पाई है और न ही दिल्ली लंदन में परिवर्तित हो पाई है। हालांकि किसी हद तक हाल के दशकों में मुम्बई और दिल्ली जैसे शहरों में बदलाव जरूर आया है, खासकर दिल्ली में 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों के बाद यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर में काफी बड़ी तब्दीली हुई है। लेकिन ऐसा बदलाव नहीं हुआ है कि दिल्ली को स्मार्ट सिटी या लंदन जितना तेज रफ्तार शहर मान लिया जाए।

ऐसे में आधुनिक भारत के निर्माण में डिजिटल गांव एकमात्र ऐसी ठोस उम्मीद हैं जिनके चलते देश का चेहरा बदलने के साथ भारत के महानगर और शहर रहने लायक व्यवस्थित हो जाएंगे। लेकिन अब प्रश्र यह है कि केवल ठान लेने भर से गांवों को डिजिटल में तब्दील किया जा सकता है? इसके पीछे की सोच है, हमारे ग्रामीण भारत की अनेकों ठोस उपलब्धियां हैं।
सबसे पहले हमें यह समझ लेना होगा कि भले भारत की क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी में लिखे गए निबंधों में भारत की पारंपरिक ग्रामीण आबादी आज भी पिछड़ी हुई हो,और फिल्मों के अनुसार वहां आधुनिकता न पहुंची हो।

आज वास्तव में भारत के गांवों की किताबों में लिखी और दिमागों में दर्ज सच्चाई काफी हद तक बदल गई है। पिछले दिनों लॉकडाउन के दौरान ही मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया कम्पनी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या शहरों की अपेक्षा गांवों में ज्यादा है। ताज़ा आंकड़ों के अनुसार जहां नवंबर 2019 में गांवों में 22.7 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे, वहीं शहरों में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद 20.5 करोड़ थी। एक और हैरानी भरा आंकड़ा इसी रिपोर्ट से यह भी सामने आया है कि गांवों में सात करोड़ के आसपास ऐसे इंटरनेट उपभोक्ता हैं जिनकी उम्र पांच साल से लेकर 11 साल के बीच है। ये बड़े मजेदार उपभोक्ता हैं, जो अपने लिए तो इंटरनेट का इस्तेमाल करते ही हैं, बड़े बूढ़ों के लिए भी ज्यादातर यही इंटरनेट का उपयोग करते हैं।

ये आंकड़े सिर्फ इंटरनेट के इस्तेमाल के मामले में ही नहीं हैं, बल्कि गांवों के तेजी से डिजिटल गांवों में तब्दील होने की योग्यता का आधार इस बात से भी आंका जा सकता है कि गांवों की तेजी से क्रयशक्ति बढ़ी है। टेक्नोपैक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के ग्रामीण मजदूरों को शहरी मजदूरों के मुकाबले आधी मजदूरी मिलती है, इसके बावजूद गांवों की अर्थव्यवस्था में करीब 10 फीसद का सालाना इजाफा हो रहा है। भारत में जितना भी उपभोक्ता सामान बिक रहा है, उसमें एक बड़ी हिस्सेदारी गांवों की हो गई है। भले शहरों में अभी बैंकों का लेनदेन ज्यादा होता हो, लेकिन साल 2021-22 के लिए ज्यादातर बैंकों ने अपने विस्तार का टारगेट ग्रामीण इलाकों को ही रखा है। आज की तारीख में पांच हजार की आबादी वाला ऐसा कोई ऐसा गांव नहीं है,जहां कोई बैंकिंग शाखा न हो। इसके बाद भी भारत की वित्त मंत्री ने आगामी वित्त वर्ष में 15,000 से ज्यादा नई बैंक शाखाएं खोलने का लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में ही रखा है।

हालांकि कोरोना संकट ने देश में बहुत कुछ बदल दिया है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत के गांव अब भारत के भविष्य की सबसे बड़ी उम्मीद बनते दिख रहे हैं। यदि किसी गांव में पंचायत से लेकर सार्वजनिक जगहों पर वाइफाइ हॉटस्पॉट से 24 घंटे इंटरनेट उपलब्ध हो तो ऐसे गांवों को ही डिजिटल गांव कहा जाएगा। इन गांवों में न केवल किसानों को खेती किसानी संबंधी प्रशिक्षण की सुविधा होगी, बल्कि उनके तमाम उत्पादों को भी त्वरित भुगतान और पूरी खरीदारी की व्यवस्था भी हो सकेगी। अगर यह सब कुछ हो गया तो ये डिजिटल गांव शहरों की मौजूदा आबादी को 30 से 40 फीसद तक कम कर सकते हैं और शहरीकरण की रफ्तार को 15 से 20 फीसद तक धीमा कर सकते हैं। इससे बड़े पैमाने पर लोग गांवों की ओर रुख कर सकते हैं।
कमल किशोर डुकलान स्वतंत्र लेेखक
रुड़की (हरिद्वार)