अल्मोड़ा। अमृत महोत्सव 2021 के तहत दृश्यकला संकाय एवं चित्रकला विभाग सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोडा में स्वाधीनता के 75 वर्षों में ललित कलाओं की भूमिका विषय को लेकर तीन दिवसीय ऑन द स्पॉट चित्र निर्माण कार्यशाला एवं प्रतियोगिता का शुभारम्भ किया गया।

इस कार्यशाला की शुरुआत  प्रो. एनएस भंडारी  कुलपति सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा, विशिष्ट अतिथि  देवेन्द्र सिह रावत क्षेत्र प्रमुख पश्चिम उत्तर प्रदेश उत्तराखंड संस्कार भारती, प्रो. प्रवीण बिष्ट अधिष्ठाता प्रशासन, डा.देवेन्द्र बिष्ट विश्वविद्यालय विशेष कार्यधिकारी, प्रो. सोनू द्विवेदी शिवानी (संकायाध्यक्ष दृश्यकला एवं विभागाध्यक्ष चित्रकला विभाग), संस्कार भारती के पंकज अग्रवाल प्रांत महामंत्री, अभिषेक पाठक सह कोषाध्यक्ष , डा. गिरीश चन्द्र शर्मा चित्रकला संयोजक ने सरस्वती मां के समक्ष दीप प्रज्वलित कर संयुक्त रूप से किया ।

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कुलपति प्रो. एन.एस. भंडारी ने भारतवर्ष के उच्च संस्कार और कला- संस्कृति के मौलिकता के विषय में बताया, साथ ही उन्होंने अल्बर्ट आइंस्टीन की कल्पना शक्ति को ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण बताया कहा कि ललित कलायें कल्पना को साकार करती है। उन्होंने नई शिक्षा नीति और उसके रोजगार परक चिंतन के बारे में बताया और अलौकिक विकास विज्ञान की टेक्नोलॉजी को कला में प्रयोग करने के बारे में जोर दिया।

उन्होंने देशज शिक्षा पद्धति अपनाने की बात कही और कहा कि भारतीय संस्कार एवं राष्ट्रीयता की भावना सभी व्यक्तियों में होनी चाहिए। कुलपति ने विद्यार्थियों से भी अपील की कि वह नई भारत की नई सोच व समग्र विकास की सोच के साथ संस्कार भारती जैसे संगठनों से जुड़कर स्वरोजगार उत्पन्न करने संबंधी कलात्मक कार्यों में रूचि दिखाए। उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह भी किया कि वह सभी विषय के अध्ययन के साथ अपने मूल जड़ो, संस्कारों से जुड़े।

कार्यक्रम की रूपरेखा कार्यक्रम संयोजिका प्रो. सोनू द्विवेदी शिवानी (संकायाध्यक्ष दृश्यकला एवं विभागाध्यक्ष चित्रकला विभाग) ने राष्ट्र कवि ‘रामधारी सिंह दिनकर’ की रचना – *जला अस्थियां बारी-बारी चिटकाई जिनमें चिंगारी जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का मोल कलम तुलिका आज उनकी जय बोल के साथ रखते हुए अमृत महोत्सव के इस आयोजन के महत्व पर प्रकाश डाला कहा कि युवा कलाकारों को इस कार्यशाला के द्वारा स्वाधीनता आंदोलन एवं स्वाधीनता सेनानियों के बलिदान को स्मरण कराना और राष्ट्र के हित में सृजनशील हो सर्वस्व समर्पण की भावना जाग्रत करना है।

उन्होंने बताया कि चित्रकला कार्यशाला का आयोजन संस्कार भारती ललितकलाओं को समर्पित राष्ट्रीय स्वयं सेवी संगठन प्रांत उत्तराखंड के साथ संयुक्त तत्वावधान मे आयोजित की गयी है। संस्कार भारती 1981 में स्थापित भारतीय ललित कलाओ की संवाहक , संरक्षण और सम्वर्धन करने वाली संस्कारयुक्त कलासृजन की प्रेरणा देने वाली संस्था है, जो विभाग के विद्यार्थियों को कला क्षेत्र में नवीन दिशा देने में सफल होगी निश्चित ही इस कार्यशाला में चित्रकारों द्वारा स्वाधीनता के विभिन्न बिन्दुओं पर राष्ट्र भाव से पूर्ण चित्रों का निर्माण होगा। उन्होंने कहा कि कार्यशाला में बने चित्रों की स्मारिका का भी प्रकाशन किया जायेगा और चित्रों की प्रर्दशनी प्रदेश सहित राष्ट्र स्तर पर आयोजित की जायेगी। उन्होंने कहा कि ललित कला की शिक्षा पूर्णतः रोजगार परक होती है।

विशिष्ट अतिथि श्री देवेन्द्र सिंह रावत क्षेत्र प्रमुख संस्कार भारती (प. उ. प्र. प्रांत उत्तराखण्ड) ने भारतीय कालखंड और इतिहास की चर्चा की कहा आज समाज को राजा राम  के संस्कार को स्मरण और धारण करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को एकाग्रता से पढ़ने, विचार कर सृजन समाज के हित मे करने पर बल दिया उन्होंने कहा कि चित्र बोलते हैं विद्यार्थी जीवन एक साधना है जहां जीवन दृष्टि जागृत होती है कलाकार की रचना समाज को दिशा देती है।

उन्होंने लता मंगेश्कर के गाने “ऐ मेरे वतन के लोगों” तथा शहीद बाबा जसवंत सिंह की सीमा पर प्रहरी को भाव से स्मरण किया।

प्रांत महामंत्री पंकज अग्रवाल ने संस्कार भारती की तरफ से दृश्य कला संकाय की संयोजिका तथा समस्त सदस्यों और दृश्यकला संकाय के विद्यार्थियों को इस अवसर पर शुभकामनाएं और बधाई दिया।

संस्कार भारती के प्रांत चित्रकला संयोजक डॉ गिरीश चंद्र शर्मा ने चित्रकला विभाग और दृश्यकला संकाय के युवा कलाकारों के चरित्र निर्माण के इस सार्थक प्रयास के लिऐ विश्वविद्यालय को बधाई दी और विद्यार्थियों को भारतीय कला शैलियों के बारे में विस्तृत जानकारी दी कहा कि एक कलाकार के पास कलात्मक संवेदना होनी चाहिए तथा साथ मे वास्तविक मौलिकता को नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने नई शिक्षा नीति के बारे में भी अपनी बात रखी और कहा कि रचना करने की प्रवृत्ति हमें पशुता से दूर ले जाती है। साथ ही उन्होंने सभी विद्ववतजनों से अपील की कि कला के लिऐ प्रोत्साहन बचपन से ही बच्चों की दी जाय ताकि समाज में ऐसे कलात्मक व्यक्तित्व का निर्माण हो सके जो राष्ट्र के लिए हितकारी हों।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो. प्रवीण बिष्ट (अधिष्ठाता प्रशासन सो.सिं.जी.वि.वि.) ने कहा कि कला का व्यवसायीकरण होना जरूरी है जिससे विद्यार्थियों का हित हो साथ ही उन्होंने कहा कि कला अभिव्यक्ति का माध्यम है। कला हमारे लिए बेहद ही जरूरी है आज के समाज में कला का बहुत महत्व बढ़ा है इसका लाभ युवा कलाकारों को मिलना चाहिए।

प्रो. शेखर चन्द्र जोशी अधिष्ठाता शैक्षिक ने सभी उपस्थित अतिथियों, शिक्षकगण और प्रतिभागी कलाकारों तथा मीडिया सदस्यों का स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. संजीव आर्य (वरिष्ठ प्राध्यापक चित्रकला) ने किया।
उद्घाटन सत्र में डाॅ देवेन्द्र सिंह बिष्ट, ( विशेष कार्याकारिणी अधिकारी विश्वविद्यालय), डाॅ. ललित जोशी ‘योगी’ समेत सम्मानित सभी शिक्षकगग एवं कौशल कुमार, चन्दन आर्या, रमेश मौर्य, पूरन सिंह मेहता, जीवन चन्द्र जोशी उपस्थित रहें। तकनीकी सहयोग सन्तोष सिंह मेर ने किया। अन्य स्थानों से प्रतिभागी कलाकारों सहित रविशंकर गुसाई,  विनीत बिष्ट,  योगेश डसीला, धीरज भट्ट, पंकज जायसवाल, कु. कंचन कृष्णा, नाजिम अली, नवीन चन्द्र, कु. सुनीता तिवारी, निशा , शैलेश्वरी, हिमांशु आर्या, चित्ररेखा, कशिश एवं दृश्यकला संकाय एवं चित्रकला विभाग के समस्त विद्यार्थी उपस्थित रहें।