26 Apr 2025, Sat

आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि, दार्शनिक दृष्टिक्षेप, वैज्ञानिक विश्लेषण तथा सांगठनिक स्नेहिलता से युक्त श्री गुरुजी का चिन्तन

 ”माधवराव गोलवलकर को श्री गुरुजी के नाम से भी जाना जाना जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक (सुप्रीम लीडर) थे।
आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि, दार्शनिक दृष्टिक्षेप, वैज्ञानिक विश्लेषण तथा सांगठनिक स्नेहिलता से युक्त श्री गुरुजी का चिन्तन इतना मूलगामी तथा विषय-प्रतिपादन इतना हृदयग्राही, तथ्यपरक व तर्क संगत रहता था कि वह श्रोता के मन-मस्तिष्क को झकझोरे बिना नहीं रहता था।
इनका जन्म 19 फ़रवरी 1906 को रामटेक, महाराष्ट्र में हुआ था। जब 1948 में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गाँधी की हत्या कर दी थी, तब गोलवलकर ने इस घटना की निंदा की थी, लेकिन इसके बावजूद उनको गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्होंने Bunch of Thoughts और We, or Our Nationhood Defined नामक पुस्तकें लिखीं। उनका अवसान 5 जून 1973 को हो गया”
संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार ने अपने देहान्त से पूर्व  श्री माधवराव गोलवलकर को संघ का भार सौंपा। संघ के स्वयंसेवक श्री माधवराव गोलवलकर को श्री गुरुजी कहकर पुकारते हैं। माधव का जन्म 19 फरवरी, 1906 (विजया एकादशी) को नागपुर में अपने मामा के घर हुआ था। उनके पिता श्री सदाशिव गोलवलकर उन दिनों नागपुर से 70 कि.मी. दूर रामटेक में अध्यापक थे।
माधव बचपन से ही अत्यधिक मेधावी छात्र थे। उन्होंने सभी परीक्षाएँ सदा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कीं। कक्षा में हर प्रश्न का उत्तर वे सबसे पहले दे देते थे। अतः उन पर यह प्रतिबन्ध लगा दिया गया कि जब कोई अन्य छात्र उत्तर नहीं दे पायेगा, तब ही वह बोलेंगे। एक बार उनके पास की कक्षा में गणित के एक प्रश्न का उत्तर जब किसी छात्र और अध्यापक को भी नहीं सूझा, तब माधव को बुलाकर वह प्रश्न हल किया गया।
वे अपने पाठ्यक्रम के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें भी खूब पढ़ते थे। नागपुर के हिस्लाप क्रिश्चियन कॉलिज में प्रधानाचार्य श्री गार्डिनर बाइबिल पढ़ाते थे। एक बार माधव ने उन्हें ही गलत अध्याय का उद्धरण देने पर टोक दिया। जब बाइबिल मँगाकर देखी गयी, तो माधव की बात ठीक थी। इसके अतिरिक्त हॉकी व टेनिस का खेल तथा सितार एवं बाँसुरीवादन भी माधव के प्रिय विषय थे।
उच्च शिक्षा के लिए काशी जाने पर उनका सम्पर्क संघ से हुआ। वे नियमित रूप से शाखा पर जाने लगे। जब डा. हेडगेवार काशी आये, तो उनसे वार्तालाप में माधव का संघ के प्रति विश्वास और दृढ़ हो गया। एम-एस.सी. करने के बाद वे शोधकार्य के लिए मद्रास गये; पर वहाँ का मौसम अनुकूल न आने के कारण वे काशी विश्वविद्यालय में ही प्राध्यापक बन गये। 
उनके मधुर व्यवहार तथा पढ़ाने की अद्भुत शैली के कारण सब उन्हें ‘गुरुजी’ कहने लगे और फिर तो यही नाम उनकी पहचान बन गया। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवीय जी भी उनसे बहुत प्रेम करते थे। कुछ समय काशी रहकर वे नागपुर आ गये और कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन दिनों उनका सम्पर्क रामकृष्ण मिशन से भी हुआ और वे एक दिन चुपचाप बंगाल के सारगाछी आश्रम चले गये। वहाँ उन्होंने विवेकानन्द के गुरुभाई स्वामी अखंडानन्द जी से दीक्षा ली। 
स्वामी जी के देहान्त के बाद वे नागपुर लौट आये तथा फिर पूरी शक्ति से संघ कार्य में लग गये। उनकी योग्यता देखकर डा0 हेडगेवार ने उन्हें 1939 में सरकार्यवाह का दायित्व दिया। अब पूरे देश में उनका प्रवास होने लगा। 21 जून, 1940 को डा. हेडगेवार के देहान्त के बाद श्री गुरुजी सरसंघचालक बने। उन्होंने संघ कार्य को गति देने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी। 
1947 में देश आजाद हुआ; पर उसे विभाजन का दंश भी झेलना पड़ा। 1948 में गांधी जी हत्या का झूठा आरोप लगाकर संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। श्री गुरुजी को जेल में डाल दिया गया; पर उन्होंने धैर्य से सब समस्याओं को झेला और संघ तथा देश को सही दिशा दी। इससे सब ओर उनकी ख्याति फैल गयी। संघ-कार्य भी देश के हर जिले में पहुँच गया।
श्री गुरुजी का धर्मग्रन्थों एवं हिन्दू दर्शन पर इतना अधिकार था कि एक बार शंकराचार्य पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था; पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार कर दिया। 1970 में वे कैंसर से पीड़ित हो गये। शल्य चिकित्सा से कुछ लाभ तो हुआ; पर पूरी तरह नहीं। इसके बाद भी वे प्रवास करते रहे; पर शरीर का अपना कुछ धर्म होता है। उसे निभाते हुए श्री गुरुजी ने 5 जून, 1973 को रात्रि में शरीर छोड़ दिया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *