• रमेश ठाकुर 
भारत-रूस के मध्य रिश्तों की नई इबारत लिखी जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस यात्रा कई मायनों में अहम साबित हो सकती है। मोदी की दो दिनी यात्रा के दरम्यान दोनों मुल्कों के मध्य एनर्जी क्षेत्र में साथ काम करने को लेकर भविष्य के लिए खाका तैयार किया गया। नई डील के मुताबिक ऊर्जा शक्ति को उत्पन्न करने के लिए दोनों देश आपस में मिलकर काम करेंगे। संसार इस बात से वाकिफ है कि जिस देश के पास ऊर्जा पॉवर नहीं है, वह दूसरों से हमेशा पिछड़ा रहेगा। ऊर्जा पर ही तरक्की और उत्पादन निर्भर होता है। रूस-भारत की दोस्ती बहुत पुरानी है। दोनों मुल्क एक दूसरे पर आंख मूंदकर विश्वास करते हैं। लेकिन अब दोस्ती में और मिठास घुल चुकी है। वर्षों से रूस हर मौके पर भारत के साथ खड़ा रहा है।
यहां तक कि भारत के खिलाफ पाकिस्तान की हर नापाक करतूत की रूस भर्त्सना करता रहा है। कश्मीर को लेकर इस वक्त भारत-पाकिस्तान के बीच तनातनी का माहौल है। जबकि, रूस कश्मीर मुद्दे पर और सीमा पार आतंकवाद संबंधी चिंताओं पर भारत का लंबे समय से समर्थन करता आया है। ऊर्जा क्षेत्र में दोनों देश के बीच सहयोग की जो राहें खुली हैं उससे सबसे ज्यादा पाकिस्तान परेशान हो रहा है। भारत के साथ जब कोई बड़ा मुल्क जुड़ता है तो पाकिस्तानी नेताओं के पेट में मरोड़े उठने लगती हैं। दुनिया जिस अंदाज से भारत की दीवानी होती जा रही है, उतनी ही तेजी से पाकिस्तान परेशान होता जा रहा है। खैर, पाकिस्तान को अपने हाल पर ही छोड़ देना समझदारी होगा। लेकिन रूस-भारत के बीच दोस्ती की जो नई इबारत लिखी जा रही है उससे दोनों मुल्कों को आने वाले समय में फायदा होगा। ऊर्जा क्षेत्र में रूस के साथ भारत का जो समझौता हुआ है उससे निश्चित रूप से हिंदुस्तान की ऊर्जा शक्ति और मजबूत होगी।
वर्तमान में ऊर्जा सभी देशों की जरूरत है। बिना ऊर्जा शक्ति के कोई कुछ नहीं कर सकता। समूचे संसार की जीवनशैली में निरंतर बदलाव हो रहा है। विकास वृद्धि की गति के साथ, इंसानी जरूरतें भी लगातार बढ़ रही हैं। आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा में सभी को बेहतर उपकरणों की जरूरतें हैं। इन जरूरतों की भरपाई मात्र ऊर्जा सेक्टर ही पूरा कर सकता है। इस लिहाज से ऊर्जा को खोजने और उसके संरक्षण के लिए तमाम मुल्क एक साथ काम कर रहे हैं। इस दिशा में अब नए समझौते के तहत भारत-रूस ने भी कदम बढ़ा दिए हैं। हालांकि भारत अभी भी कच्चे तेल और एलएनजी को लेकर ईरान पर निर्भर है। रूस के साथ नए मसौदे के बावजूद ईरान से तेल एवं एलएनजी खरीद में आड़े आने वाले मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं हैं। उनके साथ भारत का जो करार है वह भविष्य में यथावत ही रहेगा।
हिंदुस्तान मौजूदा वक्त में हर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है। साइंस, स्पेस, निर्माण, इकोनॉमी, बाजार आदि क्षेत्रों में इसका कोई सानी नहीं है। लेकिन ऊर्जा सेक्टर में अभी भी थोड़ा पिछड़ा हुआ है। कच्चे तेलों के लिए भारत अब भी पूरी तरह से ईरान पर ही निर्भर है। इसी कमजोरी को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी दो दिनी रूस यात्रा में संसाधन संपन्न रूस के साथ अपने ऊर्जा संबंधों को मजबूत करने की ऐतिहासिक पहल की है। भारत के आग्रह का रूस ने स्वागत किया है। अपने देश के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने रूस के ऊर्जा मंत्रालय के साथ तेल एवं गैस क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के करार पर मुहर लगाई है। इस करार से परिवहन के लिए प्राकृतिक गैस इस्तेमाल एवं अन्य ऊर्जा की जरूरतों वाले क्षेत्रों की भरपाई होगी।
प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान एक और बेहतरीन फैसला हुआ। फैसले के मुताबिक चेन्नई से व्लादिवोस्तोक को जोड़ने के लिए समुद्री मार्ग चालू करने पर दोनों देशों के बीच सहमति हुई। अगर यह मार्ग खुलता है तो इससे आर्कटिक मार्ग के जरिए यूरोप से भी जुड़ा जा सकेगा। भारत और यूरोप के बीच की दूरी कम होगी। इससे कई मुल्कों के साथ आयात-निर्यात करने में सहूलियतें मिलेंगी। रूस को कुशल श्रमशक्ति भेजने की संभावना तलाशने के अलावा भारत कृषि क्षेत्र में भी सहयोग के रूप में देख रहा है। क्योंकि, खेती करने की तकनीक भी उनके पास हमसे बेहतर है। इस मसले पर भी गंभीरता से मंथन किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री की रूस यात्रा के दौरान व्लादिवोस्तोक में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ 20वीं वार्षिक द्विपक्षीय शिखर बैठक भी हुई। बैठक के अलावा दोनों नेताओं ने रूस के एक प्रमुख पोत निर्माण यार्ड का भी संयुक्त रूप से दौरा कर मुआयना किया। इसके अलावा मोदी मुख्य अतिथि के रूप में पूर्वी आर्थिक मंच की बैठक में शामिल हुए। तब, कई नेताओं के साथ उनकी द्विपक्षीय वार्ता हुई। मोदी और पुतिन ने व्लादिवोस्तोक में एक अंतरराष्ट्रीय जूडो चैम्पियनशिप भी देखा, जिसमें छह सदस्यीय भारतीय टीम इस वक्त भाग ले रही है। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी यात्रा को पूरी तरह से सफल बनाने का प्रयास किया। अपनी मात्र दो दिनी यात्रा में उन्होंने कोयला खनन और बिजली क्षेत्रों सहित करीब 50 समझौतों को अंतिम रूप दिया।
(लेखक पत्रकार हैं।)