27 Apr 2025, Sun

बोर्ड परीक्षा रद्द होने के बाद तर्कसंगत मूल्यांकन की दरकार

केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पैमाने के अनुसार स्कूली आंतरिक मूल्यांकन के अलावा पिछले तीन साल के बोर्ड परीक्षाओं में स्कूली नतीजों का रखा जायेगा। विशेष ध्यान केन्द्रीय बोर्ड का इसके पीछे का तर्क है कि स्कूल अपने बच्चों को अंक देने में मनमानी न करें, इसके लिए पिछले तीन साल के नतीजों को बनाया जा रहा है मानक……

कोरोना की भयावहता में छात्रों और अभिभावकों की मांग पर केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने काफी समय पहले 10वीं और लम्बे समय के कोविड कर्फ्यू के बाद 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं रद्द की हैं। हालांकि परीक्षा रद्द होने पर काफी विरोध के भी स्वर उठ रहे हैं। विरोधियों का मानना है कि कोरोना की लहर कमजोर पड़ रही है ऐसे में कुछ अरसे बाद परीक्षाएं सम्भव हो सकती थीं। लेकिन
कोरोना की दूसरी लहर का माहौल जिस तरह का चलते देश में बना है, उसमें सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती है, जिससे कोरोना के फैलने का जरा भी खतरा हो, इसलिए केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने सुरक्षित रहने में ही भलाई समझी। अब राज्य सरकारें भी अपने-अपने बोर्ड की परीक्षाओं पर फैसला ले रही हैं। कुछ राज्यों ने परीक्षाएं रद्द कर दी हैं, शेष राज्य भी अपने बोर्ड के अन्तर्गत होने वाली 12वीं की को रद्द करने पर विचार कर रहे हैं।
परीक्षाएं रद्द होने से एक समस्या तो समाप्त हो गई, लेकिन कुछ अन्य जटिल समस्याएं अभी भी सामने खड़ी हैं, देखा जाए तो हमारी शिक्षा प्रणाली पूरी तरह परीक्षा केंद्रित है और उसमें भी बोर्ड परीक्षाओं का सबसे ज्यादा महत्व है। अब सबसे जटिल सवाल यह होगा कि इन परीक्षाओं का विकल्प क्या होगा? विकल्प भी ऐसा होना चाहिए,जो न्यायसंगत और सर्वमान्य हो। बोर्ड की परीक्षाओं से नौजवानों का भविष्य काफी हद तक तय होता है। 10वीं की परीक्षा के नतीजे से यह तय होता है कि छात्र आगे क्या पढ़ सकता है और 12वीं के नतीजे से यह तय होता है कि छात्र को आगे की पढ़ाई के लिए कहां प्रवेश लेना है। हमारे यहां शिक्षा में जिस तरह की प्रतिस्पर्धा है, ऐसे में कोविड काल में परीक्षा रद्द होने के फैसले काफी मायने हैं। हालांकि बोर्ड की परीक्षाओं की कोई बहुत अच्छी कसौटी नहीं रही है,इस प्रणाली की आलोचना सभी शिक्षाविद करते हैं,लेकिन इसके विकल्प के बारे में केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय ने कभी गंभीरता से सोचा ही नहीं सोचा। अब महामारी ने अचानक यह संकट खड़ा कर दिया है। वैकल्पिक व्यवस्था में दिक्कतें बहुत हैं। 10वीं की परीक्षा की जगह स्कूल के आंतरिक मूल्यांकन के जरिये बच्चों को आंकने का एक पैमाना केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने बनाया है। दिल्ली की एक सामाजिक संस्था ने तो दिल्ली सरकार की ओर से दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
हाईकोर्ट ने इस सिलसिले में केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस भेजा है। जो पैमाना बनाया गया है, उसमें स्कूल के आंतरिक मूल्यांकन के अलावा पिछले तीन साल की बोर्ड परीक्षाओं में स्कूल के नतीजों को भी ध्यान में रखा जाएगा। केन्द्रीय बोर्ड का इसके पीछे यह विचार हो सकता है कि स्कूल अपने बच्चों को अंक देने में मनमानी न करें, इसलिए उनके पिछले तीन साल के नतीजों को भी एक मानक बनाया जा रहा है। इसके पीछे अदालत में चुनौती देने वाली संस्था का कहना है कि यह बच्चों के साथ अन्याय है कि छात्रों के पिछले प्रदर्शन को स्कूल व शिक्षकों के प्रदर्शन के आधार पर भी आंका जाए। कुछ हद तक यह तार्किक बात लगती है,क्योंकि केन्द्रीय शिक्षा बोर्ड की परीक्षा में तो परीक्षार्थियों का अपना प्रदर्शन मायने रखता है। उनका स्कूल कैसा था या फिर स्कूल में उन्होंने क्या किया के बजाय एकमात्र कसौटी यह रहती है कि परीक्षा के दिन उन्होंने अपनी उत्तर पुस्तिका में क्या लिखा। अब अगर स्कूल के औसत प्रदर्शन के आधार पर उनके अंक कम या ज्यादा होते हैं,तो यह उन्हें अन्यायपूर्ण लग सकता है। ऐसे कई सवाल और भी होंगे,जिनका न्यायसंगत हल निकालना जरूरी है, क्योंकि इस महामारी में पहले ही लम्बे समय से स्कूली परिवेशीय शिक्षण वंचित बच्चे बहुत भुगत चुके हैं,और फिर यह मसला तो सीधे बच्चों के भविष्य से जुड़ा हुआ है।
@कमलकिशोर डुकलान, रुड़की

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *