कन्या सृष्टि सृजन श्रंखला में प्रकृति स्वरुप मां आदिशक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।जिस प्रकार शरीर में स्वांस के बिना आत्मा अधूरी है उसी प्रकार कन्याओं के बिना सृष्टि की कल्पना अधूरी है। कन्या प्रकृति का ही रूप है…..

आजकल शारदीय नवरात्र चल रहे हैं चारों ओर दुर्गा पूजा की धूम है,भक्तजन जहां नौ दिनों तक व्रत रखते हैं वहीं कन्या पूजन करके मां का आशीर्वाद भी लेते हैं।
कन्या पूजन से जुड़ी धार्मिक मान्यता के अनुसार पता चलता है कि कन्या सृष्टि सृजन श्रंखला का अंकुर होती हैं जो पृथ्वी पर प्रकृति स्वरुप मां आदिशक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं जिस प्रकार शरीर में स्वांस लिए बगैर आत्मा नहीं रह सकती वैसे ही कन्याओं के बिना इस सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। कन्या एक प्रकार से प्रकृति रूप ही हैं। मार्कन्डेय पुराण के अनुसार सृष्टि सृजन में शक्ति रूपी नौ दुर्गा,नौ ग्रह, चारों पुरुषार्थ दिलाने वाली नौ प्रकार की भक्ति ही संसार संचालनय में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
जिस प्रकार हम किसी भी देवता के मूर्ति की पूजा करके हम संबंधित देवता की कृपा प्राप्त कर लेते हैं उसी प्रकार मनुष्य प्रकृति रूपी कन्याओं का पूजन करके साक्षात भगवती की कृपा पा सकते हैं। इन कन्याओं में मां दुर्गा का वास रहता है शास्त्रानुसार तीन वर्ष से लेकर नौ वर्ष की कन्याएं साक्षात माता का स्वरूप मानी जाती है।
दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि
“कुमारीं पूजयित्या
तू ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम्” अर्थात दुर्गापूजन से पहले कुवांरी कन्या का पूजन करने के पश्चात ही मां दुर्गा के पूजन का प्रावधान है। भक्तिभाव से किये गये कन्या पूजन से भक्तजनों को ऐश्वर्य, भोग, पुरुषार्थ, राज सम्मान, बुद्धि-विद्या, कार्यसिद्धि, परमपद, अष्टलक्ष्मी एवं सभी प्रकार के ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। और मां दुर्गा प्रसन्न होकर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि प्रदान करती है।
-कमल किशोर डुकलान, रुड़की (हरिद्वार)