देवस्थानम बोर्ड पर बोले चंपत राय, हिन्दू मंदिरों का संचालन पूर्णता हिन्दू समाज करे
सरकारी कब्जे से मंदिरों को मुक्ति मिलनी चाहिए
हरिद्वार। विहिप के केंद्रीय उपाध्यक्ष व श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास ट्रस्ट के महामंत्री चंपत राय ने प्रेस क्लब में प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में राम मंदिर निर्माण को लेकर कई बातें विस्तार से साझा कीं।
उन्होंने कहा कि अयोध्या में बन रहा राम मंदिर विश्व का सबसे अलौकिक व विशाल मंदिर होगा, इसकी सुंदरता व भव्यता विस्मयकारी होगी। आगामी 2023 तक भव्य श्री राम मंदिर का पूर्ण निर्माण हो जाएगा और श्री राम मंदिर के गर्भ गृह में भगवान श्रीराम लला प्रतिमाओं को स्थापित कर दिया जाएगा। बहुत गौर करने वाली बात है कि राम मंदिर निर्माण में किसी भी कहीं भी लोहे का प्रयोग नहीं किया जा रहा है।
कार्यक्रम में प्रेस को अयोध्या में निर्माणाधीन श्री राम मंदिर के विषय में जानकारी देते हुए श्री चंपत राय ने कहा कि 500 वर्षों से भी ज्यादा की जद्दोजहद, संघर्ष और आंदोलन के बाद भव्य राम मंदिर निर्माण हो रहा है। अयोध्या के रामकोट मुहल्ले में एक टीले पर लगभग 500 साल पहले 1528-1530 में बने निर्माण पर लगे शिलालेख के अनुसार यह निर्माण हमलावर मुगल बादशाह बाबर के आदेश पर उसके गवर्नर मीर बाकी ने बनवाया था। इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है कि बाबर अथवा मीर बाकी ने यह जमीन कैसे हासिल की और निर्माण से पहले वहां क्या था? कहा जाता है कि इस निर्माण को लेकर हिंदुओं और मुसलमानों में कई बार संघर्ष हुए। 1949 में हिंदुओं ने उक्त ढांचे के केंद्र स्थल पर रामलला की प्रतिमा रखकर पूजा-अर्चना शुरू की थी।
विश्व हिंदू परिषद ने 1984 में विवादत ढांचे के ताले खोलने, राम जन्मभूमि को स्वतंत्र कराने और यहां मंदिर निर्माण के लिए एक अभियान शुरू किया। अयोध्या के उस स्थल पर मालिकाना हक को लेकर साल 2002 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन न्यायधीशों की खंडपीठ ने सुनवाई शुरू की। मार्च-अगस्त 2003 में हाईकोर्ट से मिले निर्देश पर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल पर खुदाई की। विभाग ने दावा किया कि खुदाई में विवादित ढांचे के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं। 2011 में मामले की सुनवाई कर रही इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने विवादित क्षेत्र को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को बराबर तीन हिस्सों में बांटने का फैसला दिया। यह फैसला सभी पक्षों को स्वीकार नहीं था। ऐसे में फरवरी 2011 में हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई तो शुरू हो गई, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट से भेजे गए दस्तावेजों का अनुवाद नहीं हो पाने के कारण यह मामला टलता रहा। अगस्त 2019 से सुप्रीम कोर्ट ने रोजाना सुनवाई कर जल्द से जल्द मामले का निपटारा करने की बात कही। 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा विवादित भूमि पर मंदिर का अधिकार माना और मुस्लिम पक्ष को कहीं और जमीन देने के आदेश दिए गए।
दशकों के संघर्ष के बाद अयोध्या में मंदिर निर्माण की अनुमति मिल पाई है। राम मंदिर ट्रस्ट के लिए भगवान राम के मंदिर का निर्माण आसान काम नहीं है। ट्रस्ट ने इंजीनियर्स की एक टीम बनाई हैं, जिसने लंबे वक्त तक मंदिर निर्माण हेतु नींव को लेकर मंथन किया। इसमें IIT दिल्ली, IIT रुड़की, IIT गुवाहाटी समेत देश की अन्य शीर्ष संस्थाओं के वरिष्ठ इंजीनियर भी शामिल हुए। निर्माण करीब 110 एकड़ की ज़मीन पर हो रहा है, जबकि ट्रस्ट को कुल 67 एकड़ ज़मीन मुहैया कराई गई थी। मंदिर की नींव हेतु मिट्टी की पहचान और स्टडी की गई तो मालूम पड़ा कि 161 फीट ऊंचे मंदिर के लिए मौजूदा स्थिति कमज़ोर पड़ सकती है। इसके बाद नींव को लेकर पुरानी सभ्यताओं वाली तकनीक और नई तकनीक को लेकर मंथन किया गया। नींव में कुल 44 लेयर्स डाली गई हैं, हर लेयर की मोटाई 8 इंच की है। इसके लिए वाइब्रो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। पूरी नींव बनने में कुल 125 लाख क्यूबिक फीट मटेरियल लग रहा है, करीब 71 लाख क्यूबिक फीट मटेरियल लग चुका है। मंदिर निर्माण का काम कंपनी लार्सन एण्ड ट्रबो तथा निगरानी का कार्य टाटा कंपनी को दिया गया है। मंदिर के निर्माण के वक्त भूकंप को भी ध्यान में रखा जा रहा है। मंदिर पर कितना बोझ आएगा इसका अध्ययन हो रहा है। मंदिर के भीतर निर्माण में स्टील,लोहे, सीमेंट का उपयोग नहीं होगा। दो दशक से अयोध्या में मंदिर स्थल के 3 किमी. दूर करीब 40 हजार क्यूबिक तराशे हुए पत्थर पड़े हुए हैं, जो मंदिर आंदोलन के बाद से विश्व हिन्दू परिषद द्वारा यहां लाए गए थे। ट्रस्ट के मुताबिक, इनमें से करीब 70 फीसदी पत्थरों का इस्तेमाल कर लिया जाएगा, कैसे इस्तेमाल होगा वो इंजीनियर्स अपने हिसाब से तय करेंगे।
इस अवसर पर देवस्थानम बोर्ड को उत्तराखंड सरकार द्वारा वापस लिये जाने पर प्रतिक्रिया देते हुए चंपत राय ने कहा कि विश्व हिन्दू परिषद का यह सुविचारित मत है कि हिन्दू मंदिरों का संचालन पूर्णता हिन्दू समाज को ही करना चाहिए। सरकारी कब्जे से मंदिरों को मुक्ति मिलनी चाहिए। मंदिरों की संपत्तियों, वहाँ आये हुए दान का हिन्दुओं के लिए, मंदिर के रखरखाव के लिए तथा हिन्दू धार्मिक प्रचार के लिए उपयोग हो। “सेक्युलर” होकर भी केवल हिन्दू धर्मस्थानों को व्यवस्था के नाम पर दशकों शतकों तक हड़प लेना, अभक्त, अधर्मी, विधर्मी के हाथों उनका संचालन करवाना आदि अन्याय दूर हों। हिन्दू मंदिरों का संचालन हिन्दू भक्तों के ही हाथों में रहे तथा हिन्दू मंदिरों की सम्पत्ति का विनियोग भगवान की पूजा तथा हिन्दू समाज की सेवा तथा कल्याण के लिए ही हो, यह भी उचित व आवश्यक है। इस विचार के साथ ही हिन्दू समाज के मंदिरों का सुयोग्य व्यवस्थापन तथा संचालन करते हुए, मंदिर फिर से समाज जीवन के और संस्कृति के केन्द्र बनाने वाली रचना हिन्दू समाज के बल पर कैसी बनाई जा सकती है, इसकी भी योजना आवश्यक है। इससे पूर्व प्रेस क्लब हरिद्वार के अध्यक्ष राजेंद्र नाथ गोस्वामी व महासचिव राजकुमार द्वारा श्री चम्पतराय का माल्यार्पण कर एवं शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया।
उन्होंने इसके अतिरिक्त और भी कई रोचक बातें मंदिर निर्माण को लेकर रखीं और प्रेस क्लब के सदस्यों को मंदिर निर्माण कार्य देखने के लिए अयोध्या आने का निमंत्रण दिया।
इस दौरान उनके साथ विहिप के केंद्रीय मंत्री अशोक तिवारी, प्रान्त उपाध्यक्ष प्रदीप मिश्रा,प्रान्त संगठन मंत्री अजय कुमार,प्रान्त प्रचार प्रमुख पंकज चौहान,प्रान्त प्रवक्ता वीरेंद्र कीर्तिपाल,बजरंग दल सयोजक अनुज वालिया, जिलाध्यक्ष नितिन गौतम, मंत्री भूपेंद्र चौहान, मयंक चौहान के अलावा प्रेस क्लब के संस्थापक अध्यक्ष डॉ.शिवशंकर जायसवाल, डॉ रजनीकांत शुक्ला, अमित शर्मा, अविक्षित रमन, संजय आर्य, मुदित अग्रवाल, रविन्द्र सिंह, विकास चौहान, मुकेश वर्मा आदि प्रेस क्लब के सदस्य मुख्य रुप से उपस्थित थे।