कमल किशोर डुकलान ‘सरल’ रुड़की,हरिद्वार (उत्तराखंड)


 

राम का अतीत इतना व्यापक और विस्तारित है कि उन्हें समझ और संज्ञान की सीमाओं में चिन्हित करना बहुत दूर की कोड़ी का काम है। भारतीय समाज में राम उस वट-वृक्ष की तरह है जिसकी छत्रछाया में भक्त,आलोचक,आम, खास,आराधक,विरोधक,सम्बोधक सब के सब न जाने कितने सालों से एक साथ चले आ रहे हैं। ‘राम’ भारतीय चिंतन परंपरा का सबसे प्रमुख चेहरा है।

राम भारतीय परम्परा का अभिन्न हिस्सा हैं। गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस में राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं,तो महर्षि वाल्मीकि में राम संतुलित और मानवीय भावनाओं से ओत-प्रोत हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में भगवान श्री राम ने अपने जीवन के हर क्षण में मर्यादा की पालन किया, भारतीय समाज के सम्मुख आदर्श प्रस्तुत किया भगवान श्री राम पुत्र, पिता,भाई,पति,राजा,मित्र तमाम स्वरूपों में मानवीय भावनाओं के संतुलक सिर्फ भारत के ही आदर्श नहीं है बल्कि पूरे विश्व के लिए आदर्श रूप में अनुकरणीय है। भगवान राम का जीवन आम जीवन से जुड़ा जीवन है, वह चमत्कृत नहीं सबको आकर्षित करता है।


राम’ भारतीय चिंतन परंपरा का सबसे चहेता चेहरा तथा निर्गुण,सगुणों का सबका समान हिस्सा है। भगवान श्री राम में ब्रह्मवादी ब्रह्म स्वरुप तो निर्गुणवादियों की आत्मा तथा अवतार वादियों के वे अवतार हैं। वैदिक साहित्य में उनकी बौद्ध कथाएं करुणा रूप में भरी हुई हैं…….


रावण द्वारा माता सीता के अपहरण पर भी भगवान श्री राम ने समाज से सहयोग मांगा और संघर्ष किया। तो लंका से सीता की वापसी पर वानर सेना रुपी समाज से मिल बैठकर नीति बनाई। लंका चढ़ाई के लिए सेतुबंध रामेश्वरम में एक-एक पत्थर जोड़कर पुल बनाया। एक कुशल प्रबन्धक की तरह लौटे तो पूरी सेना के साथ लौटे,एक साम्राज्य निर्माण की आकांक्षा से लबरेज रामराज की कामना के साथ। राम अगम है सगुण हैं निर्गुण है। कहत कबीरं “निर्गुण राम जपहुं रे भाई।”

राम के चरित्र के पग-पग पर मर्यादा, त्याग,प्रेम तथा लोक व्यवहार का साक्षात्कार तथा मानवता में मथे महापुरुष हैं। भगवान श्री राम लोकतंत्र के लोकपाल,सबके प्रेरक तथा समाज के सह-निर्माता हैं।
राम भारतीय समाज की वैचारिक थाती तथा भारतीय संस्कृति की सतत प्रवाहमान धारा का नाम है। भगवान श्री राम का उग्र स्वरूप के चित्रण में वैसा प्रभाव नहीं है जैसा उनकी सौम्यता में समाया हुआ है। वे बहुत सहज,सौम्य और सम्मोहक हैं,इसलिए वह सर्वत्र है,सबके व सबमें हैं।

राम किसी धर्म, देश, दुनियां की सीमाओं तक ही सीमित नहीं है,वह एक विलक्षण विचार,साहित्य में खुसरो, रसखान,आलम रसलीन,हमीदुद्दीन नागौरी, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती सबने राम की काव्य-पूजा की तो किसी ने राम की शक्ति पूजा की है। तुलसी,कबीर,नानक और रैदास सब राम में रमे रहे। गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते हैं:- तुलसी कहत ‘राम न सकहिं नाम गुन गाहीं। ‘अर्थात स्वयं ‘राम’ भी इतने समर्थ नहीं है कि वह अपने ही नाम के प्रभाव का गान कर सकें। कबीरदास जी लिखते हैं ’राम गुण न्यारो न्यारो। अबुझा लोग कहांलौं बूझै, बूझनहार विचारो। ‘राम के गुण बेहद न्यारे हैं।

महात्मा गांधी जी का प्रमुख भजन राम ‘रघुपति राघव राजा राम’ पतीत पावन सीताराम। यहीं संदेश है जिसमें महात्मा गांधी जी लिखते हैं ‘मेरे लिए राम,अल्लाह और गॉड सब एक ही हैं। ‘इसी चिंतन धारा में संत विनोबा भावे जी कहते हैं कि राम, कृष्ण,बुद्ध विचार का ही अवतार होता है। लोग समझते हैं कि राम कृष्ण,बुद्ध,अवतार थे। हमने उन्हें अवतार बनाया है। अवतार व्यक्ति का नहीं विचार का होता है और विचार के वाहन के तौर पर मनुष्य काम करते हैं।
युगानु कूल विमर्श खड़ा करते हैं। किसी युग में राम के रूप में सत्य की महिमा प्रकट हुई तो किसी में कृष्ण के रूप में प्रेम की, तो कभी बुद्ध के रूप में करुणा की।‘ भारत की हर एक भाषा में रामकथाएं कही गई हैं। भारत के बाहर इंडोनेशिया,जावा, सुमात्रा,कम्बोडिया,चीन,कपान, श्रीलंका,वियतनाम विदेशों में भी रामकथा के ढेरों स्वरूप मौजूद हैं। इससे स्पष्ट है कि यदि राम केवल राजा,न्याय पालक,सदाचारी,धर्म प्रवर्तक होते तो शायद उनकी स्मृति कबकी क्षीण हो चुकी होती और वह इतिहास बनकर रह गए होते। लेकिन भगवान श्री राम इतिहास नहीं,वरन हर पल नए निवर्तमान हैं। अपना कोई धर्म-पंथ न चलाते हुए भी धर्म का आदि और अंत हैं। स्थूल रूप में अपने समय में नर-लीला करते हुए भी अतीत नहीं हुए बल्कि वर्तमान बने हुए हैं। त्रेतायुग से अब तक चला आ रहा रामलीलाओं का मंचन इसका जीता जागता उदाहरण है।
मौजूदा समय में यह प्रश्न थोड़ा दुरुह करने वाला है। क्या यह राम विचार का विश्राम है। आज यह यक्ष प्रश्न भारतीय चित्त की बड़ी चुनौती है। भारतीय नेतृत्व को नए राष्ट्र संगठक राम की तलाश है। राम की प्रतिष्ठा राजनीति से ज्यादा राष्ट्रनीति में निहित है। गंभीर सवाल यही है कि नई पीढ़ी के लिए राम कैसे हो? नयी सदी के नए दिमागों में राम की नई उपमाएं कैसे उगे? मौजूदा चुनौतियों को मानस मंथन की नयी व्याख्याएं कैसे हल की जाएं।
जब विश्व मानवता और विज्ञान के विकास का क्रम इतना सहज न रहा हो? क्या नई पीढ़ी का वाल्मिकि के ‘राम’ से काम चल जायेगा? या तुलसी, कबीर और रसखान के ‘राम’ से सब काम बन जायेगा। आजाद भारत में गांधी, निराला और रामानंद सहित भारतीय राजनीति ‘राम’ को कितना भारतीयता के निकट ला पाती है। युवा पीढ़ी की आधुनिकता को कितना राम समर्थित बना पाती है। आधुनिक राम और आध्यात्मिक राम में संतुलन साधने का उद्यम तो नई पीढ़ी के लिए आज नहीं तो कल करना ही होगा। जो जय श्रीराम के जयकारे से आगे बढ़कर हर दिल के हलकारे तक राम के रंग बिखेर सके। देश का हर जवान उमंगित हो उठे, झूम उठे, गा उठे “होली खेले रघुवीरा, अवध में………….”

नए भारत के ग्लोबल इंडिया के वे द्वंद्व हैं जो नए मुहावरों में राम को रमना चाहते हैं। क्या नयी सदी का भूमंडलीय भारत नई नैतिकताओं और नई सामूहिकताओं की नई सामाजिक संहिता की सैद्धांतिकी के साथ नए राम की रचना करने वाले नए नरेशन को राजनीति के बाहर विस्तारित कर पाएगा। यहीं वह सबसे मौजूं सवाल है जिसके जवाब में राम युगो-युगों तक भारत के भीतर प्राण संचार करने वाले जन-नायक रहे हैं। राम का जीवन चरित्र संघर्ष में भी धीरज देता है। घोर नैराश्य में भी साहस और संयम सिखाता है।
राम एक आदर्श व्यक्तित्व के पूरक हैं। राम का पूरा जीवन ही संघर्षों और आदर्शों से लबालब है। राम एक आदर्श पुत्र, पति या भाई ही नहीं है भारतीय समाज के लिए मर्यादा के प्रति स्वरूप हैं। विनय और विवेक के विनायक हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों और संयम के संवाहक हैं। राम एक मर्यादित,संयमित और संस्कारित जीवन की जीवंत झांकी हैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम। राम का राज्य जन सेवा के लिए नीतिकुशल न्यायप्रिय राजा का हैं। पारिवारिक मूल्यों के लिए निष्ठावान पीढ़ी के संस्कार वाला जीवन राम का है। वैवाहिक आदर्शता की पराकाष्ठा को परोसते राम ने पिता के तीन विवाहों के वातावरण में भी सीता सी सती के लिए वियोगी जीवन संधर्ष जारी रखा। यह राम ही कर सकते हैं।

राम का यह पारिवारिक व्यवहारिक जीवन-दर्शन भारतीय समाज की रग-रग में रमता है। उनके आदर्श उत्तर से दक्षिण तक सम्पूर्ण भारतवर्ष के जनमानस में जमें हुए हैं। राम का तेजस्वी और पराक्रमी स्वरूप भारत राष्ट्र को रक्षित रखता है। असीम क्षमता और अपार शक्ति वाले राम संयमित और मर्यादित जीवन जीते हैं। सामाजिक, पारिवारिक, लोकतांत्रिक और आध्यात्मिक आहवाहन के साथ लोक कल्याण में रत राम मानवीय करुणा वाले कर्मवीर हैं। तभी तो मानते हैं-परहित सरिस धर्म नहीं भाई।
राममनोहर लोहिया कहते हैं गांधी ने भारत को संबोधित करने के लिए राम का ही सहारा लिया, यह अकारण नहीं है दरअसल राम इस राष्ट्र की एकता के प्रवर्तक हैं। गांधी जी ने राम के जरिए हिन्दुस्तान के सामने एक मर्यादित चित्र प्रस्तुत किया। क्योंकि गांधी जी के राम राज्य की परिकल्पना में लोकहित सर्वोपरि था। भारत की हर नई पीढ़ी राम और रहीम की साझी परम्पराओं के सामाजिक, ऐतिहासिक,आध्यात्मिक और वैज्ञानिक संदर्भ समझती आई है।
राम की यह थाती हमारी अमूल्य निधि है और असली ताकत भी है। हमारी सामाजिक-राजनीतिक परम्पराओं के समावेशी चरित्र को बनाने में राम की अद्वितीय भूमिका रही है। राम भारत के जन-जीवन में समाएं हुए सर्वग्राही नायक हैं। हिन्दू समाज मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को अपनी उस आध्यात्मिक शक्ति का प्रकाश पुंज मानते हैं जिसके सहारे वह हर क्षेत्र में रामराज्य की स्थापना के व्यवहारिक और अभिनव प्रयोग करते दिखते हैं। हर भारतवासी की राम प्रति अगाध श्रद्धा है। राम भारतीय जीवन को प्रारंभ से अंत तक अजेय शक्ति स्रोत के रूप में उर्जित रखते हैं। राम उस उर्जा स्रोत की तरह भारतीय अस्तित्व में समाये हुए हैं जो इस समाज को बार-बार संभालता है और लोक कल्याण की दिशा में प्रेरित रखता है। यहां हर घर में राम रमण करते है, घट-घट में राम बसते है।