10 May 2025, Sat

Maharana Pratap Jayanti 2021: हल्दीघाटी के अस्मिता और संघर्ष के प्रतीक महाराणा प्रताप

⇒ कमलकिशोर डुकलान

 महाराणा प्रताप मेवाड़ के 13 वें महान योद्धा और राजस्थान की माटी के एक ऐसे गौरव थे, जिनकी बहादुरी और शौर्य-गाथाओं के अनेकों किस्से इतिहास के पन्नों में अंकित हैं…….

चेतक पर चढ़ कर जिसने, भाले से दुश्मन संहारे।

मातृभूमि की खातिर, जंगल में कई साल गुजारे ।।

महाराणा प्रताप मेवाड़ के 13 वें महान योद्धा और राजस्थान के गौरव थे। भारत के महान योद्धा के सम्मान के लिए यह जयंती पूरे देश में खास कर देश के उत्तरी भागों में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। उनका नाम इतिहास के पन्नों पर साहस और दृढ़ प्रण के लिए आज भी अमर है, उन्होनें कभी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की और उनके साथ अनेकों लड़ाईयां लड़ी।

महाराणा प्रताप का जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार विक्रम संवत 1597 की ज्येष्ठ शुक्लपक्ष की तृतीया को हुआ था।अंग्रेजी महीनों के अनुसार उनकी जन्मतिथि 9 मई 1540 को राजस्थान के कुम्भगढ में हुआ था जो इस बार रविवार 13 जून 2021 को पड़ रही है। राजस्थान में उनकी जयंती को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराणा उदयप्रताप सिंह और माता का नाम महारानी जयवंती था। उनकी माता जयवंती मां होने के साथ उनकी गुरू भी थी। माता जयन्ती ने अपने बेटे प्रताप में शौर्य और साहत निर्माण किया। महाराणा प्रताप की बहादुरी, शौर्य-गाथाओं के अनेकों किस्से इतिहास के पन्नों में अंकित हैं।

मेवाड़ का किला उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण था। पश्चिम इलाके से व्यापार करने के लिए अकबर को मेवाड़ से होकर गुजरना पड़ता था। व्यापार के लिए अकबर को मेवाड़ जीतना बेहद जरूरी था। महाराणा प्रताप के होते हुए अकबर को मेवाड़ को जीतना आसान नहीं था। मेवाड़ के अलावा अकबर ने बाकी हिस्सों को राजाओं की कमजोरियों का फायदा उठाकर बड़ी आसानी से जीत लिया था। लेकिन मेवाड़ पर कब्जा करने की अकबर की नीति प्रताप के सामने फेल हो गई।

महाराणा के पास भील सेना की अद्वितीय शक्ति थी। जिसका हर सिपाही महाराणा के लिए कुछ भी करने को तैयार था। अकबर ने मेवाड़ जीतने के लिए प्रताप से आठ बार समझौते करने की कोशिश की। उसने मानसिंह, जलाल खान, कोरची, भगवान दास और टोडरमल को बातचीत के लिए भेजा। कहा जाता है कि महाराणा प्रताप से मेवाड़ प्राप्त के लिए अकबर आधा हिंदुस्तान देने को राज़ी हो गया था। लेकिन महाराणा प्रताप समझौते को राजी नहीं हुए।

महाराणा प्रताप के संदर्भ में एक प्रेरक घटना है। कहते हैं कि एक बार अब्राहम लिंकन भारत आने वाले थे। भारत आते समय इब्राहिम लिंकन ने अपनी माता से पूछा कि हिंदुस्तान से आपको क्या चीज चाहिए। तब इब्राहिम लिंकन की मां ने कहा था, अगर मेरे लिए भारत से स्मृति के रुप में कोई निशानी लाना ही चाहते हो तो हल्दी घाटी से थोड़ी सी मिट्टी लेते आना। मैं मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप को नमन करती हूं। जिसने अपनी छोटी जमीन के लिए अकबर के आधे भारत के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।

महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे कोई बंदी नहीं बना सका। महाराणा प्रताप का युद्ध कौशल बड़ा जबरदस्त था। साथ ही वे साढे सात फिट ऊंचे तथा 120 किलो वजन के थे। राणा अपनी भारी-भरकम तलवार से दुश्मन को एक बार में अपने चेतक घोड़े के साथ काट देते थे। इतिहासकार बताते है कि अकबर कभी महाराणा के सामने नहीं आता था, क्योंकि उसका कद काफी छोटा था। उसे डर था कि महाराणा प्रताप एक वार में उसे मार डालेगा।

महाराणा प्रताप का बेहद प्रिय घोड़ा चेतक था। वहीं राम प्रसाद नाम का एक हाथी था, जो उन्हें बेहद प्रिय था। उन दिनों लड़ाई में हाथी के सूंड़ में तलवार बांध दी जाती थी। जिससे हाथी सामने आने वाले सैनिक, घोड़े और हाथियों को काटते दे। एक बार महाराणा राम प्रसाद नामक हाथी पर सवार होकर युद्ध कर रहे थे। तो राम प्रसाद नाम के हाथी ने एक साथ करीब 8 हाथियों और घोड़ों को मार डाला था। यह सब देख अकबर ने रामप्रसाद नामक हाथी को पकड़ने का आदेश दिया था। अगले दिन 12 हाथियों के बीच में फंसाकर रामप्रसाद नामक हाथी को पकड़ लिया गया। राम प्रसाद नामक हाथी का नाम बदलकर अकबर ने पीर रख दिया और सैनिकों से कहा कि इसके स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखा जाए। लेकिन प्रताप से बिछड़ने के दुख में राम प्रसाद नामक हाथी ने खाना-पीना छोड़ दिया और 28 दिन के बाद उस हाथी की मौत हो गई। इस पर अकबर ने कहा था कि जिस महाराणा का हाथी मेरे सामने झुका नहीं। उसका सिर मैं कैसे झुकवा सकता हूं।

 

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