देहरादून। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के नारे वाली सरकार के समय में देहरादून नगर निगम ने लिम्का बुक रिकॉर्ड्स बनाने के लिए बच्चियों को स्कूल से निकालकर कई घंटे के लिए सड़क पर लाइन में लगा दिया। नगर निगम के रिकॉर्ड के लिए पूरा शहर जाम से परेशान था तो बच्चे कई किलोमीटर पैदल चलकर नगर निगम के ड्रीम को पूरा करने के लिए लाइन में अपनी जगह ढूंढ रहे थे। बाल आयोग इस सबसे नाराज नजर आया और कहा कि बच्चों में जागरुकता फैलाने के और भी तरीके हैं।
 दून में ही हुए एक प्रयोग से यह बात साबित भी हो चुकी है। नगर निगम देहरादून सिंगल यूज प्लास्टिक बैन के खिलाफ जागरुकता फैलाने के नाम पर रिकॉर्ड बनाने की तैयारी में है। इसके लिए पूरे शहर को जीरो ट्रैफिक जोन घोषित कर दिया गया था और एसएसपी ने लोगों से एमरजेंसी की सूरत में ही घरों से बाहर निकलने की अपील की थी। रिकॉर्ड के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स की टीम को भी बुला लिया गया था। मानव श्रृंखला के लिए जगह कम न पड़ जाए इसलिए स्कूली बच्चों को भी इसमें शामिल करने का फैसला किया गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट राजनीतिक रैलियों में बच्चों को शामिल करने पर रोक लगा चुका है, लेकिन नगर निगम को लगा कि पर्यावरण जागरुकता के नाम पर अपने रिकॉर्ड के लिए वह बच्चों का इस्तेमाल कर सकता है। इसलिए शिक्षा विभाग के निदेशक आरके कुंवर से 5000 बच्चों को इस मानव श्रृंखला में शामिल होने के लिए कहलवा दिया गया। 9 बजे से बनने वाली मानव श्रृंखला के लिए सुबह से राजधानी के सरकारी, गैर सरकारी स्कूलों में बच्चों को बुला लिया गया था। इसके बाद इन्हें मानव श्रृंखला में अपनी जगह बनाने के लिए कई किलोमीटर चलना भी पड़ा।
 घंटों से जाम में खड़े लोगों का सब्र टूटने लगा था और वह लाइन लगाकर जाते स्कूली छात्र-छात्राओं के बीच से गाड़ियां ले जा रहे थे। जाहिराना तौर पर बच्चों के साथ चल रहे शिक्षकों की बात सुनने को कोई तैयार नहीं था। उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष ऊषा नेगी ने इस पर नाराजगी जताई। ऊषा नेगी ने कहा कि वह शहर से बाहर थीं और उन्हें सुबह ही इस बारे में पता चला। उन्होंने कहा कि स्कूली बच्चों को अपने किसी अभियान में शामिल करने से पहले नगर निगम को शिक्षा विभाग के साथ ही बाल आयोग से भी बात करनी चाहिए थी, अनुमति लेनी चाहिए थी। ऊषा नेगी ने कहा कि बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरुकता लाने की कोशिश अच्छी बात है लेकिन इसके लिए बेहतर तरीकों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। स्कूलों से बातचीत कर, बेहतर प्रोग्राम बनाकर यह काम किया जा सकता है। इसके लिए बच्चों को सड़क पर उतारने की कतई जरूरत नहीं थी। ऊषा नेगी ने यह भी कहा कि वह नगर निगम को पत्र लिखकर इस बारे में स्पष्टीकरण मांगेंगी।
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नगर निगम के श्रेय लेने की होड़ में जाम से हलकान हुआ दून
देहरादून। प्लास्टिक और खासतौर पर सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ प्रधानमंत्री के अभियान छेड़ने के बाद देश भर में, खासतौर पर बीजेपी नेताओं में इसके लिए श्रेय लेने की होड़ मच गई है। अनूठे प्रयोगों के लिए जाना जाने वाला देहरादून नगर निगम ने श्रेय की दौड़ में बाजी मारने के लिए मानव श्रृंखला का रिकॉर्ड बनाने का फैसला किया। इस मानव श्रृंखला की वजह से लगे जाम से शहर का दम निकल गया और जो भी बाहर निकला वह इसमें फंस गया।
नगर निगम देहरादून ने सिंगल यूज प्लॉस्टिक पर प्रतिबंध के बारे में जन जागरुकता के लिए 50 किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला बनाने का ऐलान पहले ही कर दिया था। नगर आयुक्त विनय शंकर पांडेय ने दावा किया था कि देहरादून देश का पहला शहर होगा जिसका नाम सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ लड़ने के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज होगा। मानव श्रृंखला के लिए मंगलवार सुबह 9 बजे से दोपहर 12 बजे तक पूरे शहर में यातायात के लिहाज से जीरो-जोन करने का ऐलान कर दिया गया था। एसएसपी ने देहरादून वासियों से अपील की थी कि ‘एमरजेंसी न हो, तो वह घर से बाहर न निकलें’. सुरक्षा को देखते हुए मानव श्रृंखला पर ड्रोन से नजर रखी जानी थी। मंगलवार की सुबह ऐसा लगा कि शायद दूनवासियों तक एसएसपी की अपील नहीं पहुंची और लोग रोज की तरह ही अपने काम के लिए निकले. नतीजा यह हुआ कि पूरा शहर ही जाम से हलकान हो गया। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा को बिना खीझे, बिना चिढ़े और एक-डेढ़ घंटा लेट हुए बिना अपने गंतव्य तक पहुंचा हो।
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 घंटों गलियों में भटकते रहे काम पर जाने वाले लोग
देहरादून। भले ही नगर निगम व यातायात पुलिस द्वारा आज पॉलीथीन के विरोध में आयोजित की गयी मानव श्रंृखला के लिए चाहे जो इंतजाम किये गये हों लेकिन इस दौरान ड्यूटी पर जाने वाले लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा और लोग एक दो घंटे की देरी से ही अपने कार्यस्थल पर पहुंच सके।
इस मानव श्रृखंला के आयोजन का समय ऐसे पीक आवर्स में रखा गया था जब लोगों के काम पर जाने का समय होता है। 9 बजे से लेकर 10 बजे तक हमेशा ही शहर की सड़कों पर भारी भीड़ होती है। आज इस दौराज जब लोग अपने घरों से काम पर जाने के लिए निकले तो उन्हे मुख्य मार्ग पर पहुंचते ही रोक लिया गया। भले ही इस मानव श्रृंखला के दौरान सड़क के बांई ओर पांच फीट स्थान सुरक्षित रखे जाने की बात की गयी थी लेकिन हरिद्वार रोड जैसे टू लेन रोड पर किसी तरफ से छोटे और दुपहिया वाहनों तक को नहीं जाने दिया गया।
क्योंकि इस मानव श्रंृखला का दायरा पूरे शहर में फैला हुआ था इसलिए लोगों को गली मौहल्लों की सड़कों की ओर दौड़ लगानी पड़ी। लेकिन इसका भी कोई फायदा उन्हे नहीं हो सका क्योंकि दो चार किलोमीटर घूम कर फिर आखिरकार उन्हे आना तो उन्ही मुख्यमार्गो पर ही था। ऐसी स्थिति कहीं एक दो स्थानों पर ही नहीं पूरे शहर में देखी गयी। जब लोग गली मौहल्लों के रास्ते अपने कार्यस्थलों तक पहुंचने की कोशिशें करते रहे लेकिन वह नाकाम ही रहे और वह तभी आगे बढ़ सके जब इस मानव श्रंखला का समापन हो गया। जो लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर निर्भर थे उन्हे तो 11 बजे तक कहीं से भी कोई सवारी का  साधन मिल सका। जिसके कारण सभी दफ्तरों व कार्यालयों में लोग आम तौर पर एक दो घंटों की देरी से ही पहुंच सके।