लगता है-गांवों में (दुर्गम को छोड़कर) सेनेटाइजर और मास्क पर्याप्त संख्या में बांटे जा चुके होंगे। अब यह पता करवाने का कष्ट करें कि गांवों के निकट के अस्पतालों में सांप के काटे के टीके की उपलब्धता की क्या स्थिति है।
बरसात का सीजन आने वाला है। गांवों में इस मौसम में सर्प दिखायी देते हैं। उत्तराखंड की बात करें तो यहां इसी मौसम में सर्पदंश से लगभग 50 से अधिक मौतें होती हैं। हालांकि सांप की लगभग तीन सौ प्रजातियों में 15-20 ही जहरीले होती हैं,लेकिन मनुष्य भय के कारण किसी भी सांप को देखते ही मार देता है,जबकि सांप पर्यावरण के लिए आवश्यक है और वह किसान का मित्र है। सांप अपने ही डर अथवा धोखे से मनुष्य को काटता है,वह मनुष्य को काटना नहीं चाहता है। पहाड़ में सर्पदंश का शिकार प्रायः महिलाएं होती हैं,क्योंकि वे घास-चारे की व्यवस्था करती हैं और खेतों में भी अधिक समय तक काम करती हैं।
उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो यहाँ सांपों के डसने पर प्रायः झाड़-फूंक का सहारा लिया जाता है,जो जान को जोखिम में डालता है। पहले अस्पताल न होने के कारण ऐसा करना मजबूरी भी थी। इसका एक लाभ यह होता था कि सर्पदंश के शिकार व्यक्ति को आत्मबल मिर जाता था। अब न्याय पंचायत स्तर पर अस्पताल खुल चुके हैं,लेकिन लगता नहीं कि उन सभी में सर्पदंश के एंटी वैनम टीके उपलब्ध होंगे।
पहाड़ में अस्पताल वैसे भी बहुत दूर होते हैं। वहाँ पहुंचने में समय बहुत लगता है। ऐसे में यदि किसी को जहरीला सांप काट ले और तीन-चार घंटे में टीका न लगे तो मौत निश्चित है। अतः कम से कम प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर पर टीका उपलब्ध होना आवश्यक है। गांवों में बरसात के मौसम से पहले इसकी मॉनिटरिंग करना आवश्यक है।