-कमल किशोर डुकलान, रुड़की (हरिद्वार)


सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाने वाला लोक-आस्था का पर्व छठ हमें प्रकृति की ओर लौटने और उसके साथ चलने का संदेश नहीं है,बल्कि हमारी जीवन-शैली का एक अभिन्न हिस्सा भी है….

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता एवं लोक-आस्था का महापर्व छठ बिहार-पूर्वी उत्तर प्रदेश के निवासियों की स्मृतियों में गहरी पैठा बना चुका है। सूर्य नारायण भगवान को चढ़ाया गया गौं दुग्ध या गंगा-जल की आदरांजलि जीवन को पोषण देने वाले भगवान सूर्य के प्रति कृतज्ञ मानव का प्रकृति,कृषक-संस्कृति के प्रति अपनी ही तरह की यह एक श्रद्धाभिव्यक्ति है।यह कृतज्ञता की हमारी संस्कृति है। जिसने हमारे लिए कुछ किया, उन सबके प्रति श्रद्धा हमारा स्वाभाविक धर्म है।
प्रकृति से प्राप्त सामग्री को प्रकृति-माता को अर्पित करना तृप्तिदायक अनुभव है,यह केवल समर्पित मन ही जान सकता है! आरती की पक्तियों ‘तेरा तुझको अर्पण,क्या लागे मेरा… यह भाव अद्भुत है। प्रकृति की ओर लौटना और उसके साथ चलना यह भाव पूरब का केवल नारा नहीं बल्कि जीवन-शैली का अभिन्न हिस्सा भी है। दरअसल पर्व, त्योहार, परंपराएं लोक जनमानस के पुनर्नवीकरण की अद्भुत प्रक्रिया हैं। इनसे गुजरकर हमारी चेतना बार-बार सुसंस्कृत, परिष्कृत एवं परिमार्जति होती है। छठ जैसे महापर्व एक-दूसरे के लिए त्याग का भाव जगाते हैं, एक-दूसरे के लिए जीना सिखाते हैं।
लोक-आस्था का महापर्व छठ पर्व पारिवारिक स्तर पर न केवल परस्पर प्रेम और आदर का ही भाव पैदा करता है,अपितु सामाजिक जीवन में समरसता की अनूठी मिसाल भी पेश करता है।
छठ पूजा पर्व पर जिन वस्तुओं में प्रसाद रखा जाता है, उन्हें बनाने वाले लोग सामान्यतःसमाज के वंचित वर्ग से आते हैं,उन्हीं के हाथों से बने बांस एवं पतली कमानी के हस्त-निर्मित पात्रों को शुद्ध समझा जाता है। यह समरसता का अनूठा उदाहरण है। जब सारी दुनिया उगते हुए सूरज की पूजा-परिक्रमा में जुटी हो, वहीं छठ महापर्व हमें ढलते हुए सूरज के सम्मान की अनूठी सीख देता है। ढलते हुए सूरज की ऐसी सहेज-संभाल पूरब की पश्चिम को सांस्कृतिक देन है।
समृद्धि के शिखर पर आरूढ़ सत्ता के समक्ष तो सभी नतमस्तक होते हैं, परन्तु वैशिष्ट्य तो इसमें है कि जो ढलान, संघर्षरत,यात्रा पर हैं, जिनका सूर्य बुझता-टिमटिमाता,डूबता-उतराता है,उसका भी मानवांचित स्नेह-सत्कार-सम्मान हो। कालचक्र के अनुसार हर अस्त का एक दिन जरुर उदय होता है। जो आज डूब रहा है वह कल निश्चित रुप से पूरी आभा,ऊर्जा और प्रखरता के साथ उगेगा। सामाजिक और सांस्कृतिक महत्ता का अद्वितीय पर्व है। छठ इसकी प्रतीति और विश्वास का प्रतीक है।