14 Mar 2025, Fri

उत्तराखण्ड के क्रूर राजा सामूशाह के अंत की रोचक गाथा

-भारत चौहान 



त्तराखण्ड के देहरादून जनपद के जौनसार बावर क्षेत्र में अतीत काल में सामूशाह राजा के आंतक की अनेक कहानियां एवं लोकगीतों में उल्लेख मिलता है। एक जनश्रुति के अनुसार सामूशाह ने जौनसार बावर के आस-पास के गावों से दूध लाने के लिए अपने सैनिक भेजे। राजा के सैनिक एक गांव में पहुँचे, इस गांव के एक परिवार के पास सैनिकों को देने के लिए दूध नहीं था, किन्तु क्रूर राजा के भय से एक प्रसूति महिला ने अपना दूध निकालकर सैनिकों को दे दिया। सामूशाह को वह दूध अत्यंत स्वादिष्ट लगा। फिर क्या था क्रूर राजा ने हर दिन सैनिकों से महिलाओं का दूध ही मंगवाना प्रारंभ कर दिया। हर दिन सैनिक महिलाओं का दूध ले जाते, इधर गांव के नवजात बच्चे दूध की कमी के कारण भूख से तड़प-तड़प कर मरने लगे, क्योंकि सामूशाह प्रसूति महिलाओं के स्तनों पर लोहे के ताले लगवा देता था, जिस कारण नवजात शिशु दूध नहीं पी पाते थे।  इस घटना से व्यथित होकर क्षेत्रवासियों ने महासू देवता की शरण में जाकर न्याय की गुहार लगाई।
इतिहास में इस अत्याचारी राजा सामूशाह का लिखित उल्लेख नहीं मिलता और यह भी स्पष्ट नहीं है कि यह राजा था या सामंत। इसलिए यह घटना किस सदी की है, इसका उल्लेख एवं आकलन करना मुश्किल है। कुछ ऐतिहासिक तथ्य, लोकगीतों एवं जन श्रुतियों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बैराट गढ़ किले में क्रूर सामूशाह राजा का आंतक एवं महासू देवता का प्रकट होना 13वीं सदी से 17वीं सदी के मध्य का काल रहा होगा है।
किले के अंदर सुरुंग नुमा कुआं
ईसवी संवत 250 में (कालसी) कुलिंद जनपद के राजा शानूशाही का उल्लेख मिलता है। ‘‘उत्तराखंड का इतिहास’’ पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 460 पर लेखक शिव प्रसाद डबराल लिखते हैं कि कुलिंद जनपद यानी कालसी में शानूशाही नाम का एक देवानाम प्रिय राजा हुए है, जो राजा देवों के लिए प्रिय है, इन्हें देवपुत्र भी कहा गया है। अतः ऐसा राजा मनुष्य जाति के लिए क्रूर नहीं हो सकता। अर्थात यह राजा बैराट गढ़ किले पर निवास करने वाला क्रूर राजा सामूशाह नहीं हो सकता।
इसी नाम से जुड़ी हुई दूसरी घटना गढ़वाल के राजा शामशाह की है। सन् 1547 में सिरमौर नरेश से गढ़वाल के महाराजा मानशाह के सेनापति रीखोला लोदी ने विराट गढ़, कालसी गढ़, काली गढ़, संतूर गढ़ आदि को जीत कर अपने अधीन किया था, जबकि 1635 ईसवीं में सिरमौर के राजा मांनधाता प्रकाश ने नजावत खां की सहायता से गढ़वाल महाराजा से बैराटगढ किले सहित अन्य गढ भी वापस जीते थे। अर्थात बैराटगढ़ का किला 1547 से 1635 तक लगभग 89 वर्षों तक गढ़वाल के महाराजा मानशाह व उनके पुत्र सामशाह के अधीन रहा।
मान शाह की मृत्यु के पश्चात गढ़वाल के महाराजा साम शाह हुए, जो सन् 1611 से 1631 तक श्रीनगर गढ़वाल के महाराजा रहे हैं। इन्हें श्याम शाह के नाम से भी जाना जाता था। उत्तराखंड का नवीन इतिहास पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 157 में लेखक यशवंत सिंह कटोच इनका उल्लेख करते हुए कहते हैं कि यह महाराजा वास्तु शास्त्र अच्छा जानकार था। वहीं, जौनसार बावर ऐतिहासिक संदर्भ के लेखक टीकाराम साह अपनी पुस्तक के पृष्ठ 105 पर सामशाह राजा के बारे में उल्लेख करते हैं कि यह महाराजा अत्यंत कठोर था, उसे अपने आदेशों की अवहेलना करना पसंद नहीं था। 1630 में हरिद्वार से नागा साधु बद्रीनाथ जा रहे थे जिनको महाराजा के सैनिकों ने न केवल अपमानित किया बल्कि अपने राज्य की सीमा से बाहर खदेड़ दिया था।
उपरोक्त दोनों घटनाओं से प्रतीत होता है कि गढ़वाल श्रीनगर का महाराजा सामशाह ने हीं अपना कुछ समय बैराट गढ़ किले पर बिताया होगा, क्योंकि बैराट गढ़ किला उस काल में उनके अधीन था और संभवतः उन्हीं के द्वारा अपने भोजन के लिए मनुष्य के दूध पीने का अत्याचार किया गया होगा, जबकि दूसरे कोई राजा का उल्लेख इस नाम से एवं इस कालखंड में नहीं मिलता है।
सामुशाह राजा की करणी बुधा! सामुशाह राजा मांगो मांणसू रो दूधा !!
चार ना चैन्तरु टाटी ना गाली की बुध!
सामुशाह राजा मांगों, माणसो रो दूध !!
लोकगीतों, जनश्रुतियों एवं इतिहासकारों के अनुसार चार चैन्तरु का उल्लेख किया गया है। उससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि चैन्तरु परंपरा 12-13 वीं सदी के बाद सिरमौर नरेश ने प्रारंभ की थी। तब जौनसार बावर भी सिरमौर रियासत का एक अंग था। यदि सामूशाह राजा के क्रूरतम अत्याचार से पीड़ित जौनसार बावर के चार चैन्तरु हनोल स्थित महासू दरबार में गए तो यह घटना और बैराट गढ़ किले पर सामुशाह के अत्याचार का काल भी 13 वी से 17 वी सदी का रहा होगा ।
गढअ बाजों नमति,
लागों सहासू के कांगों!
इस घटना से दुखी होकर जौनसार के चार चैन्तरुऔं ने हनोल स्थिति महाराज के दरबार में दुष्ट सामूशाह राजा के अत्याचार की कहानी सुनाई। यह सब सुनकर अन्याय का अंत करने के लिए बोठा और चालदा महाराज थैना में प्रकट हुए। अतः जनश्रुतियों एवं लोकगीतों के अनुसार बोठा महाराज के आदेश पर चांलदा महाराज ने बैराट गढ़ किले में पहुंचकर ऐसा चमत्कार किया कि सामूशाह के नाक में देवदार की झाड़ियां जमने लगी और पेट में सूअर और चूहों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। इस प्रकार इस क्रूर और अत्याचारी सामूशाह का चलदा महाराज ने अंत कर दिया।
(स्पष्टीकरण- यह लेख विभिन्न ऐतिहासिक दस्तावेजों, जन श्रुतियोें तथा लोकगीतों के आधार तैयार किया गया है।)

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