• कौशल अरोड़ा (जयपुर राजस्थान)

भारतीय परम्पराओं में सभी को सुखी होने की कामना व उसी अनुरूप कृत्य करने के संस्कार पीढ़ी दर पीढ़ी मिले हैं; इस कामना का उद्धरण है, ‘शीतला सप्तमी’ का त्यौहार। जिसे घरों में प्रकृति की अनमोल वंचना के साथ मनाते है । जिसे घरों में चेचक रोग (बड़ी व छोटी माता) की रोकथाम के लिए कारगर मानकर मनाया जाता रहा है । जब समाज के पास इस तरह की भयानक महामारियों से लड़ने के लिए पर्याप्त संसाधनों का अभाव था । उस समय कैसे हमारा समाज इन महामारियों से छुटकारा पा लेता होगा । उस समय भी मृत्यु होती थी तो वह आज भी हो रही है । अपनी रक्षा वही कर पाता था या कर पा रहा है, जो प्राकृत नैसर्गिक परम्पराओं का अनुसरण करता था ।

आप चाहे तो ‘कारोना’ के विकराल रूप पर चर्चा करे । कितने लोग इससे मर रहे है। इसके भय से विकसित देश अमेरिका आपातकाल की घोषणा के बाद हार चुका है । यूरोप अपने यहाँ आने वालों को वीजा देने से मना कर रहा है । इस बीमारी का स्त्रोत चीन जैसा विकसित देश जो विश्व मेंं मेडिकल सप्लीमेंट का एक मात्र उत्पादक है । वही चीन चार दिन में बहुत बड़ा हॉस्पिटल खड़ा करने की ताकत रखता है, पर कोरोना महामारी के सामने घुटने टेकने को मजबूर हो गया। खाड़ी के देश व यूरोपियन देश डर के मारे काँपते नजर आ रहे है ।

विश्व के बड़े-बड़े एयरपोर्ट्स सुने हो चुके है । विश्व भर की अधिकांश जनसंख्या अपने ही घरों में कैद हो गई है । त्राहिमाम-त्राहिमाम की ध्वनि दशों दिशाओं से आ रही है। विकासशील ओर आधुनिकता की छवि पर अभिमान करने व भारत को पिछड़ा ओर सपेरों का, अर्थात पिछड़ी मानसिकता वाला देश कहने वाले सेनेटाइजर मांग रहे है । यही देश भारत से कपूर, तुलसी, गोमूत्र व आयुर्वेद की गरिमा को जान रहे हैं ।

विश्व भर में वायु प्रदूषित होने से बच रही है । सड़कों पर ध्वनि प्रदूषण कम है। समुंद्री जल यान समुद्र को विषैला नहीं कर रहे । वायु यान मौसमी परावर्तन को घर्षण से मुक्त हो रहे हैं । प्रकृति अपना संचय पहले भी नहीं करती थी अभी भी नहीं कर रही । दूषित है तो बस वह व्यावसायिकता जो निर्भया के लिये समाज मेंं प्रदूषित को स्थापित कर रही है । व्यक्तियों में भक्षणता कम हो रही है, आहार-निराहार व प्रत्याहार की कथा होने लगी है । जीव हत्या कम हुई है ।

संस्कारों को अपनाने ओर कुसंक्ति को छोड़ लोग हैंड शेक भूल हाथ जोड़ अभिवादन की ओर अग्रसर हुये हैं । यह भय नहीं अपितु घारण बदलने की घड़ी है । जिसे प्राकृत न्याय से ही समझा जा सकता है । ये दर्शन जागृत हुआ है, जीव-जन्तु, चर-चराचर प्रसन्ता का भाव लिये हैं । मानव में सेवा और करुणा का भाव जागृत हुआ है तभी तो इसे करोना नहीं अपितु करूणा अवतार भी कहा जा रहा है । आखिर क्यों भारत में ही सामाजिक परम्पराएं प्रारम्भ हुई । हमारे मनीषियों ने किस दृष्टिकोण को समझकर इन्हें विकसित किया । कौनसा अनुशासन है जिसे आज विश्व समझने का प्रयत्न कर रहा है । युगों युगों से निष्कंटक भाव से जीवित है- ‘मेरा भारत’ । इन अन सुलझे हुये रहस्यों की अभिव्यक्ति है ‘मेरा भारत’। अनुशासन का पालन करता आ रहा है ‘मेरा भारत’ । सामाजिक मनीषियों ने त्योहारों का सृजन मनोरंजन के साथ सेवा, स्वास्थ्य व स्वस्थ विचारों के लिए भी किया होगा । यही मान्यतायें हमें राह दिखा रही हैं ।