हम युवा है हम करें मुश्किलों से सामना मातृभूमि हित जगे है ये हमारी कामना ॥॥ संस्कृती पली यहाँ पुण्य भू जो प्यारी है। जननी वीरों की अनेकों भरत भू हमारी है।।
युगपुरुष, वेदांत दर्शन के पुरोधा, मातृभूमि के उपासक, दरिद्रनारायण मानव सेवक, करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्रोत एवं विश्व में शान्ति और समता का संदेश देने वाले युग पुरुष स्वामी विवेकानंद जी का जन्मदिन प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद ने मात्र 25 वर्ष की युवा अवस्था में सन्यास धारण किया। युवा अवस्था से ही उन्हें हिंदू धर्म और आध्यात्म से विशेष लगाव हो गया था। विश्व प्रसिद्ध अमेरिका के शिकागो शहर में स्वामी विवेकानंद जी द्वारा विश्व धर्म सम्मेलन में दिया गया भाषण युवाओं के लिए ऐतिहासिक ही नहीं अपितु प्रेरणादायक भी था। उनके विचारों का युवाओं और आमजन पर आज भी खासा प्रभाव है। जिस कारण से करोड़ों लोगों के लिए स्वामी विवेकानंद आज भी आदर्श हैं। वर्तमान परिपेक्ष्य में स्वामी विवेकानंद जी के विचारों को आत्मसात करके सुखी और सफल जीवन व्यतीत किया जा सकता है।
भारतीय युवाओं को अगर किसी ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है तो वो हैं स्वामी विवेकानंद। वह हर युवा के लिए आदर्श हैं। स्वामी विवेकानंद के जीवन के एक भी आदर्श को हम अपने जीवन में अगर उतार पाएं तो शायद ही हमें कभी हार का सामना करना पड़े। उनके जीवन से जुड़े अनेक प्रसंग हैं जो आज भी हमें प्रेरणा देते हैं। वर्तमान परिपेक्ष्य में उनकी शिक्षाएं हमारा जीवन बदल सकती हैं।
एक बार एक विदेशी महिला ने स्वामी विवेकानंद से विवाह करने का निवेदन किया। स्वामी जी ने कहा मैं सन्यासी हूं और आगे भी सन्यासी जीवन ही व्यतीत करूंगा। इस पर महिला ने कहा कि मैं आपके जैसा सुशील, तेजस्वी और गौरवशाली पुत्र चाहती हूं। इस पर स्वामी जी ने कहा कि क्यों न मैं आज और अभी से ही आपका पुत्र बन जाऊं और आप मेरी मां। आपको मेरे स्वरूप में मेरे जैसा पुत्र मिल जाएगा और मुझे मां। यह सुनकर महिला गदगद हो गई और बोली आप तो साक्षात ईश्वर हो, क्योंकि ऐसा सुझाव तो सिर्फ़ ईश्वर ही दे सकता है। स्वामी जी कहा करते थे कि कैसी भी समस्या सामने आए उसका डटकर सामना करो। ऐसा करने पर बहुत सी समस्याओं का समाधान हम अपने स्तर पर ही कर सकते हैं। स्वामी विवेकानंद का व्यक्तिगत जीवन साधारण था, लेकिन जब वे किसी विषय पर गंभीरता से बात करते थे या फिर भाषण देते थे, तो लोग उनकी ओर आकर्षित हो जाया करते थे। बचपन में उन्हें नरेंद्र कहकर बुलाया जाता था। स्कूल के दिनों में एक रोज वह अपनी कक्षा के छात्रों से बात करने में मशगूल थे, लेकिन उनका ध्यान सामने पढ़ा रहे अध्यापक पर भी था। अध्यापक को महसूस हुआ कि बच्चे पढ़ने के बजाए बातें करने में व्यस्त हैं, तब उन्होंने बच्चों से सवाल पूछना शुरु कर दिया। सबसे पहले नरेंद्र से शुरुआत की गई। उनकी स्मरणशक्ति तीव्र थी और वे बीच-बीच में पढ़ाई पर गौर भी कर रहे थे। इसीलिए नरेंद्र ने सभी सवालों का जवाब सही-सही दे दिया। यह देखकर अध्यापक ने उन्हें बैठने का निर्देश दिया और अन्य छात्रों से सवाल पूछने लगे। बाकी छात्रों का ध्यान बातों में होने की वजह से एक भी छात्र सवाल का सही सही उत्तर नहीं दे सका। अध्यापक ने सभी बच्चों को हाथ ऊपर कर खड़ा रहने का निर्देश दिया। इस पर नरेंद्र ने कहा, क्षमा करें गुरु जी! मेरी वजह से सभी छात्र दंड के पात्र बने हैं। सजा का हकदार मैं ही हूं। यह सुनकर अध्यापक भी हैरान रह गए। कहने का आशय है कि युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। युवा देश का वर्तमान और भूतकाल और भविष्य के सेतु भी हैं। आज जहां युवा देश और समाज के जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं वहीं गहन ऊर्जा और उच्च महत्वकांक्षाओं से भरे हुए होते हैं। युवाओं की आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्नों में समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान रहता है।देश के स्वतंत्रता आंदोलन में युवाओं ने अपनी शक्ति का परिचय दिया था।परंतु देखने में आ रहा है कि युवाओं में नकारात्मकता जन्म ले रही है। उनमें धैर्य की कमी है। वे हर वस्तु अति शीघ्र प्राप्त कर लेना चाहते हैं। वे आगे बढ़ने के लिए कठिन परिश्रम की बजाय शॊर्टकट्स खोजते हैं। भोग विलास और आधुनिकता की चकाचौंध उन्हें प्रभावित करती है। उच्च पद, धन-दौलत और ऐश्वर्य का जीवन उनका आदर्श बन गए हैं। अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने में जब वे असफल हो जाते हैं, तो उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है। कई बार वे मानसिक तनाव का भी शिकार हो जाते हैं। युवाओं की इस नकारात्मकता प्रवृत्ति को सकारात्मकता में परिवर्तित करना होगा।
कमल किशोर डुकलान, रुड़की (हरिद्वार)