Rubus ellipticus वनौषधि, जिसे उत्तराखंड में “हिंसालू” या “हिंसर”आदि नामों से तथा हिमाचल में “अच्छू” या “अन्छू” नाम से जाना जाता है।
मई-जून में सफेद रंग के फूल आते हैं जो जून से अगस्त तक स्वादिष्ट पीले फल का रूप लेते
हिमालयी क्षेत्र में पीढ़ी दर पीढ़ी वनौषधियों के द्वारा घरेलू उपचार का पारंपरिक ज्ञान बहुत अधिक वैज्ञानिक एवं सफल परिणाम देने वाला रहा है। आज भी गाँवों में ऐसे अनेक बुजुर्ग मिल जाते हैं जो पूरी जिन्दगी बिना कोई अंग्रेजी दवाओं का इस्तेमाल किये भी शहरी लोगों की अपेक्षा अधिक हृष्ट-पुष्ट एवं निरोगी हैं।
उत्तराखंड में घरेलू चिकित्सा में कारगर सैंकड़ों वनौषधियों का उल्लेख वर्तमान में उपलब्ध आयुर्वेद के ग्रंथों में भी उस रूप में नहीं है। अतः व्यापक अध्ययन एवं शोध से जहां वनौषधियों के विलुप्त होने अंकुश लगेगा, वहीं हमारा ‘तथाकथित आधुनिक’ चिकित्सा विज्ञान और अधिक सम्पन्न होगा।
पर्वतीय क्षेत्रों में 2200 मीटर की ऊंचाई तक कांटेदार झाड़ियों के रूप में Rubus ellipticus वनौषधि बड़ी मात्रा में पाई जाती है, जिसे उत्तराखंड में “हिंसालू” या “हिंसर”आदि नामों से तथा हिमाचल में “अच्छू” या “अन्छू” नाम से जाना जाता है।
हर वर्ष मई-जून में इन झाड़ियों पर सफेद रंग के फूल आते हैं जो जून से अगस्त तक ये फूल पक कर अत्यंत स्वादिष्ट पीले फलों का रूप ले लेते हैं। पहाड़ों में पुरानी पीढ़ी “हिंसालू” के औषधीय गुणों से भली भांति परिचित है तथा इसके फलों,पत्तियों एवं जड़ों का अनेक रोगों की घरेलू उपचार में सफलता पूर्वक करती है।
“हिंसालू” के फलों को घी में भूनकर पीसकर चुटकी भर पुदीने के पत्तों का powder मिलाकर बोतल में बंद कर दिया जाता है तथा किसी को उल्टी-दस्त लगने पर इसके 2 चम्मच को 3 बार पानी के साथ देने पर निश्चित रूप से आराम मिलता है। पेट दर्द होने पर “हिसालू” की जड को थोड़ी थोड़ी देर बाद चबाने से सामान्य दर्द शांत हो जाते हैं।
हिंसालू में kidney को ताकत देने का गुण भी पाया गया है। urinary system से सम्बंधित समस्याएं जैसे बार- बार urine होना तथा बच्चों में रात्रि में बिस्तर पर पेशाब करने (bed wetting) की चिकित्सा में भी हिंसालू बहुत कारगर है।
हिंसालू के फलों में हमारे sense organs की शक्ति बढ़ाने का भी चमत्कारिक गुण पाया गया है। अनेक स्त्री रोग भी हिंसालू के विधि पूर्वक इस्तेमाल से पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं।
हिंसालू में पाला सहने की शक्ति होती है तथा इन्हें उचित ऊचाई पर बीजों द्वारा किसी भी ऊंचाई पर उगाया जा सकता है। हिंसालू के बारे में जानकारी के अभाव के कारण रोगनाशक दिव्य गुणों वाला यह पौधा आज पहाड़ों में उपेक्षित सा खड़ा है।
लेखक के बारे में-आयुर्वेदाचार्य, पूर्व उपाध्यक्ष, राज्य औषधीय पादप बोर्ड, उत्तराखंड सरकार।
औषधीय पौधों की विरासत के संरक्षण के लिए तीस वर्षों से काम कर रहे हैं।
कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में 250 से अधिक लेख प्रकाशित और 300 व्याख्यान।
“इंडियन साइंस राइटर्स एसोसिएशन, नई दिल्ली” के आजीवन सदस्य हैं।