✍️कमल किशोर डुकलान ‘सरल’
ऋग्वेद हमारी भारतीय सनातन परम्परा का प्राचीनतम ग्रंथ है,इसमें इंद्र,अग्नि,रुद्र विष्णु आदि विभिन्न प्रमुख देवी देवताओं का वर्णन है। भगवान जो शिव के रूद्रावतार हैं,और जिन्हें ऋग्वेद में सृजनकर्ता व संहारक की संज्ञा दी गई है वे कोई और नहीं भगवान शिव ही हैं…
भारत सहित मिस्र,मेसोपोटामिया की सभ्यता विश्व की सर्वाधिक प्राचीन सभ्यता है। यूं तो इन सभी सभ्यताओं के मूल में प्रकृति पूजा होने के बाद भी तीनों में कुछ-कुछ विभेद हैं। भारत का सौभाग्य यह है कि विश्व की सभी प्राचीनतम सभ्यताएं विभिन्न कारणों से अपने मूल भाव से विमुख हो गई परन्तु भारतीय समाज आज भी अपनी 5000 वर्ष प्राचीन परम्पराओं को जीवंत बनाए हुए है।इन प्राचीन परम्पराओं के वाहक आज हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख आदि मतों का अनुसरण करते हैं । सनातन परम्परा में प्राचीन काल से ही ईश्वर की साधना के विभिन्न माध्यम थे जिनमें एक माध्यम लिंग पूजा का था,यहां इस बात का उल्लेख करना आवश्यक है क्योंकि लिंग सृष्टि की रचना का आधार रहा है।
वेदों में ऋग्वेद सनातन परम्परा का प्राचीनतम ग्रंथ है इस ग्रन्थ में इंद्र,अग्नि,रूद्र, विष्णु आदि प्रमुख देवी-देवताओं का वर्णन है। भगवान शिव जो शिव का ही रूद्रावतार है और जिन्हें ऋग्वेद में सृजनकर्ता व संहारक की संज्ञा दी गई है वे और कोई नहीं वे भगवान शिव ही हैं। भगवान शिव की आराधना के पुरातात्विक साक्ष्य हमें 5000 वर्ष पुराने मिलते हैं,भगवान शिव की आराधना इस सृष्टि जगत में लिंग स्वरुप व मानव स्वरुप दोनों में ही की जाती है ।
भारत की प्राचीनतम सभ्यता जिसे हम सरस्वती-सिंधु सभ्यता के नाम से जानते हैं उसमे भी हमें शिव पूजा के पर्याप्त साक्ष्य देखने को मिलते हैं। कहते हैं कि हड़प्पा सभ्यता के अवशेष जो अब पाकिस्तान में अवस्थित है। इस प्राचीन स्थल से भी शिवलिंग प्राप्त होने के प्रमाण हैं। आज से लगभग 2400 वर्ष पूर्व बनने वाले आहत सिक्कों पर शिव के आयुध या हथियार त्रिशूल का अंकन हमें दिखाई देता है, यह तत्कालीन भारतीय समाज में शिव के प्रति आस्था का प्रतिबिम्ब है। भारत का मूल समाज तो शिव की आराधना करता ही है,इस भारत में आक्रमणकारी के रूप में आए शक व हूण जैसे शासकों द्वारा चलाए गए सिक्के इस बात के प्रमाण हैं कि विदेशी आक्रांताओं की आस्था के केंद्र में भी शिव थे।
विदेशी आक्रान्ता हूण शासक वासुदेव के द्वारा चलाए गए सिक्कों पर शिव व उनके वाहन नंदी का अंकन दिखाई देता है। चौथी-पांचवीं शताब्दी में शासन करने वाले गुप्त शासकों के काल में भी शिव पूजा का प्रभुत्त्व हमें दिखाई देता है। एक मुखी शिवलिंग,उमा-महेश्वर,शिव-पार्वती आदि की प्रतिमाएं इस काल में पर्याप्त मात्रा में बनाई गईं। विदिशा स्थित उदयगिरि में पर्वत को काट बनाई गई गुप्तकालीन गुफाएं जो शिव को ही समर्पित हैं ।
भौगोलिक दृष्टिकोण से भी सम्पूर्ण भारत में हमें शिव पूजा के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। प्रारम्भिक मध्य कालीन भारत के हिन्दू शासकों ने अपने आराध्य शिव के लिए विशाल मंदिरों के निर्माण करवाए जो आज विश्व धरोहर हैं। आठवीं शताब्दी में तमिलनाडु के थंजावुर में स्थित बृहदीश्वर मंदिर तथा महराष्ट्र में एलोरा स्थित कैलाशनाथ मंदिर एक ही चट्टान को काट कर बनाया गया भगवान शिव को समर्पित है।
यह साक्ष्य इस बात को सिद्ध करते हैं की शिव पूजा का व्याप्त सम्पूर्ण भारत में रहा है । इन सब के अतिरिक्त भी सम्पूर्ण दक्षिण एशिया में हमें शिव पूजा के प्रमाण मिलते हैं। उपरोक्त प्रमाणों से यह सिद्ध हो जाता है की भारत में मानव सभ्यता के उदय से ही शिव की आराधना की जा रही है। सावन के पवित्र मास में सनातन परम्परा का निर्वहन करने वाला समाज शिव आराधना में रत है। जिसे भारतीय सनातन समाज 5000 वर्षों से नित्य प्रतिदिन करता आ रहा है। सावन मास में ध्यान-साधना,पूजा,जलाभिषेक विशेष रूप में भगवान शिव को समर्पित है। इस सृष्टि जगत में भगवान राम को आदि सृष्टि का पहला शिव पूजन किया और देवघर में शिवलिंग पर जलाभिषेक किया था। शिव भक्त रावण और परशुराम ने सावन मास में पहले कांवड़िए के रूप में उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के पुरा महादेव’ स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जलाभिषेक किया था।
मानव स्वरुप में शिव का अंकन भी हमें इसी सभ्यता में देखने को मिलता है, वर्तमान पाकिस्तान में स्थित मोहनजोदड़ो से मिली एक मुहर पर एक योगी का अंकन है जिसके इर्द-गिर्द पशु खड़े हैं । विश्व प्रसिद्द पुरातत्ववेत्ताओं का यह मत है कि यह शिव ही हैं,जिन्हें पशुपति की संज्ञा दी गई है । सरस्वती सिंधु सभ्यता से मिले पुरावशेष यह सिद्ध करते हैं कि तत्कालीन समाज में शिव पूजा का भी प्रचलन था,ऋग्वेद में भी शिवपूजा का उल्लेख पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है और भगवान शिव में जलाभिषेक करते समय हमारे पण्डित जी रुद्री पाठ का वाचन करते समय भगवान शिव इंद्र,अग्नि,रुद्र विष्णु आदि अनेक नामों का वाचन करते हैं। भगवान शिव ही इस सृष्टि में चराचर जगत के सृजनकर्ता और संहारक भी हैं।
-ग्रीनवैली गली नं-5 सुमन नगर, बहादराबाद (हरिद्वार)