वनौषधि पुत्रजीवक
-डॉ. आदित्य कुमार (पूर्व उपाध्यक्ष, राज्य औषधीय पादप बोर्ड, उत्तराखंड)


श्वर ने देवभूमि को, मानव  की शिशु अवस्था से लेकर वृद्धावस्था तक ही नहीं अपितु गर्भ में पल रहे जीवन के नव-अंकुर के स्वस्थ रहने की भी  चिन्ता  करते हुए ,अपार वनौषधियों की सौगात  सौंपी है। इन दिव्य संजीवनी वनौषधियों के खजाने का एक अनमोल  रत्न है “पुत्रजीवक” जिसे आम भाषा में ‘जियापोता’ या ‘पितोजिया’ भी कहा जाता है। पुत्रजीवक  नाम में पुत्र से आशय शिशु यानि पुत्र-पुत्री दोनों से ही है। 
उत्तराखंड तथा देश के अन्य राज्यों में  लगभग 3 हजार  फीट की ऊंचाई तक “पुत्रजीवक” के माध्यम ऊचाई  के वृक्ष पाए जाते हैं जो कि पूरे साल हराभरा (green) रहते हैं। इन पेड़ों पर मार्च-अप्रैल में फूल आते हैं तथा सर्दियों में  जनवरी-मार्च में सफेद रंग के लगभग पौने इंच के रोयेदार फल लगते हैं। आयुर्वेद शास्त्र में “पुत्र जीवक” के गुणों एवं उपयोग का विस्तार से वर्णन  है-

“पुत्रजीवो हिमो वृष्यः श्लेशमदो गर्भ जीवकः।
चक्षुश्यःपित्तशमनो दाहतृष्णा  निवारणः।।” (राज निघन्टु)

पुत्रजीवक के बीजों में गर्भस्थ शिशु को delivery तक स्वस्थ रखने के साथ ही  infertility के कारणों को भी दूर करने के चमत्कारिक गुण हैं। पुत्रजीवक का इस्तेमाल  गर्भधारण में बाधक male  एवं female infertility दोनों के कारणों की चिकित्सा में किया जाता है। इसका प्रयोग  semen में sperm count बढ़ाने तथा उसकी quality सुधारने के लिए किया जाता है। महिलाओं में बार- बार गर्भपात की चिकित्सा में “पुत्रजीवक” का उपयोग किया जाता है।
सामान्य स्थिति में भी पुत्रजीवक बहुत अच्छा uterine tonic  है। महिलाओं में leucorrhoea के इलाज के लिए भी पुत्रजीवक बहुत उपयोगी है। यह अन्य अनेक रोगों जैसे कब्ज,cervical एवं lumbar pain, जुकाम खांसी आदि में भी रामबाण है। इस जड़ी बूटी को अधूरी एवं अप्रमाणिक जानकारी के साथ प्रयोग करने पर गंभीर  हानि हो सकती है।