देहरादून। कोरोना वायरस और लॉकडाउन से भले ही देश दुनिया को खासा नुकसान हुआ हो, लेकिन इससे प्रकृति एक बार फिर से चमक उठी है। लॉकडाउन से प्रकृति में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिले हैं। जिसके बाद से ही प्रकृति में सकारात्मकता नजर आई है। लॉकडाउन के बाद पर्यावरणीय प्रदूषण का स्तर घटा है, नदियां साफ हुई हैं। जिसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ा है। आज गंगा 20 साल पहले की तरह साफ है, मैदानी इलाकों से ही हिमालय के दर्शन हो रहे हैं। लॉकडाउन के बाद प्रकृति एक बार फिर से खिलखिलाकर हंसने लगी है।
ऐसा लग रहा है मानों लॉकडाउन के बीच प्रकृति ने खुद ही अपनी मरम्मत कर ली हो। आज भले ही लॉकडाउन के कारण पर्यावरण साफ हो मगर सबसे पहले पर्यावरण को बचाये रखने वाले कदमों की बात करें तो 5 जून को इसके लिए विशेष तौर पर जाना जाता है। पर्यावरण को बचाने और लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। पहली बार 1972 में पर्यावरण दिवस मनाया गया था। जिसमें ये बात रखी गई थी कि प्रकृति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। दरअसल, 5 जून 1972 में यूएन ने स्वीडन के स्टॉकहोम में पर्यावरण और प्रदूषण को लेकर एक सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें 119 देशों ने हिस्सा लिया।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने बताया कि पृथ्वी और पर्यावरण पर अभी तक तक जो चोट लगी थी उस पर लॉकडाउन ने मरहम लगाने का काम किया है। यही नहीं पूरे देश के पर्यावरण के साथ ही पानी, हवा भी पूरी तरह से साफ हो गई है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण पर्यावरण इतना साफ हो गया है कि मैदानी इलाकों से ही हिमालय की चोटियों के दर्शन हो रहे हैं। जिससे साफतौर पर कहा जा सकता है कि लॉकडाउन ने प्रकृति के जख्मों पर मरहम लगाया है। लॉकडाउन के दौरान प्रकृति का जो रूप देखने को मिला है इससे साफ जाहिर है कि प्रकृति को नुकसान पहुंचाने वाले इंसान ही है। इस लॉकडाउन के दौरान देश की सभी इंडस्ट्री बंद थी। लोग घरों में कैद थे, सड़कों पर गाड़ियां भी नहीं दौड़ रही थी। जिससे प्रदूषण पर रोक लगी और पर्यावरण हर बीतते दिन के साथ साफ होता चला गया। यही नहीं लॉकडाउन से पहले जहां गंगोत्री के पास गंदगी का अंबार नजर आता था वो इस लॉकडाउन के बाद पूरी तरह साफ हो गया है।
पद्मश्री सुंदरलाल बहुगुणा ने विश्व पर्यावरण दिवस पर दिया संदेश
देहरादून। उत्तराखंड के प्रसिद्ध चिपको आंदोलन के प्रणेता पद्मश्री सुंदरलाल बहुगुणा ने भी एक वीडियो संदेश जारी किया है। इस वीडियो में वो प्रकृति के संरक्षण के लिए तीन सूत्र बताते नजर आ रहे हैं। विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा ने एक वीडियो जारी कर प्रकृति को बचाने के लिए लोगों को तीन सूत्र सुझाए, जिसमें पहला सादगी और संयम, दूसरा विकल्प और तीसरा वृक्षारोपण हैं। उन्होंने कहा कि इन्हीं तीनों सूत्रों से पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने में काफी हद तक मदद मिलेगी। साल 1970 में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए एक आंदोलन शुरू किया गया था, जो कि पूरे देश में फैल गया। चिपको आंदोलन उसी आंदोलन का हिस्सा था। गढ़वाल को हिमालयी क्षेत्रों में पेड़ों का कटान लगातार बढ़ता जा रहा था। इसकी वजह से आंदोलन भी शांतिपूर्ण ढंग से बढ़ने लगे. तभी 26 मार्च साल 1974 को चमोली जिले में जब ठेकेदार पेड़ काटने आए तो गौरा देवी के नेतृत्व में ग्रामीण महिलाएं उस वक्त पेड़ों से चिपककर खड़ी हो गईं। यही विरोध प्रदर्शन उस समय पूरे देश में फैल गया था। वहीं, साल 1980 की शुरुआत में सुंदरलाल बहुगुणा ने हिमालय क्षेत्र में करीब पांच हजार किलोमीटर का भ्रमण किया। इस यात्रा के दौरान उन्होंने लोगों पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित किया।
सीएम ने मुख्यमंत्री आवास में जामुन, शहतूत व अंजीर के पौधे रोपित किए
देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री आवास में पौधारोपण किया। मुख्यमंत्री आवास में इस अवसर पर जामुन, शहतूत, बेलपत्र एवं अंजीर के पौधे रोपे गये।
लाॅकडाउन अवधि में पर्यावरण की महत्ता स्वतः स्पष्ट हुईः कौशिक
देहरादून। कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने विश्व पर्यावरण दिवस पर पौध रोपण और पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में भाग लिया। उन्होंने बधाई एवं शुभकामनाएँ देते हुए अपने संदेश में कहा है कि लाॅकडाउन अवधि में पर्यावरण की महत्ता स्वतः स्पष्ट हुई है। पर्यावरण के मानक के अनुसार इस अवधि में प्रत्येक क्षेत्र के पर्यावरण में शुद्धि आई है। उत्तराखण्ड में माँ गंगा और अन्य पवित्र नदियां स्वच्छ हुई हैं। अतः इसके महत्व को समझते हुए अपने कत्र्तव्य को पर्यावरण के प्रति समर्पित करना होगा।