4 Jul 2025, Fri

माँ दुर्गा के नौ रूपों का अलग-अलग महत्व

नवरात्रि में मां दुर्गा को नौ रूपों में पूजा जाता है। शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री मां दुर्गा के इन सभी नौ रूपों का अपना अलग महत्व है।
१:-प्रथमं शैलपुत्री−
वन्दे वांछितलाभाय
चन्द्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां
शैलपुत्रीं यशंस्विनिम।।

मां दुर्गा पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा गया है।नवरात्रि के पूजन में पहले दिन शैलपुत्री के रूप में इन्हीं का पूजन होता है योगीजन अपने मन को मूलाधार चक्र में स्थित करते हुए अपनी योग साधना शुरू करते हैं।

२:-द्वितीया ब्रह्मचारिणी:-
दधानां करपद्माभ्यां
मक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि
ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
मां दुर्गा की नौ शक्तियों में दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्मा शब्द का आशय तपस्या से है। तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्त और सिद्ध प्राप्त जनों को अनंत फल प्रदान करने वाला है। ब्रह्मचारिणी की उपासना से मनुष्य में तप, त्याग,वैराग्य,सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में स्थित होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।

३:-तृतीया चंद्रघण्टा:-
पिण्डज प्रवरारूढ़ा
चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते महयं
चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघण्टा है। नवरात्र उपासना में तीसरे दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन व आराधना की जाती है। इनका स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है।मन,वचन, कर्म एवं शरीर के शुद्ध अंत:करण से इनकी उपासना से हमारे समस्त सांसारिक कष्टों की मुक्ति से सहजता से परमपद के अधिकारी बन सकते हैं।

४:-चतुर्थी कूष्माण्डा:-
सुरासम्पूर्णकलशं
रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां
कूष्माण्डा शुभदास्तुमे।।
माता दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्माण्डा पड़ा। इस दिन साधक का मन अनाहज चक्र में स्थित होता है। दुर्गा के चौथे रुप कूष्माण्डा की उपासना से मनुष्य स्वाभाविक रूप से भवसागर से पार उतारने के लिए यह सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है। माता कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधिव्याधियों से विमुक्त तथा सुख,समृद्धि और परलौकिक उन्नति की ओर ले जाती है।

५:-पंचमी स्कन्दमाता:-
सिंहासनगता नित्यं
पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी
स्कन्दमाता यशस्विनी।।
मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। ये भगवान स्कन्द ‘कुमार कार्तिकेय’ के नाम से भी जाने जाते हैं। इन्हीं भगवान स्कन्द अर्थात कार्तिकेय की माता होने का गौरव प्राप्त है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है।इसलिए इन्हें पद्मासन देवी नाम से भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाएं एवं चित मनोवृत्तियों का लोप हो जाता है।

६:-षष्ठी कात्यायनी:-
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा
शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं
दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं। कात्यायनी महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी इसलिए इन्हें कात्यायनी के नाम से जाना जाता है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सब कुछ न्यौछावर करने से साधक को सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। और साधक को अलौकिक तेज से प्राप्त होता है।

७:-सप्तमी कालरात्रि:-
एक वेणी जपाकर्णपूरा
नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी
तैलाभ्यक्तशरीरणी।।
वामपादोल्लसल्लो
हलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा
कालरात्रिर्भयड्करी।।
मां दुर्गा के सातवें स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है जो सदैव शुभ फल देने वाली मानी जाती हैं। इसलिए इन्हें शुभड्करी भी कहा जाता है। मां दुर्गा का सातवें दिन कालरात्रि की पूजा का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्रार चक्र में स्थित रहता है। उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं। इस चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है। मां कालरात्रि के दिन मां दुर्गा की पूजा से दुष्टों का विनाश और सम्पूर्ण ग्रह बाधाएं को दूर होती हैं। जिससे साधक भयमुक्त हो जाता है।

८:-अष्टमी महागौरी:-
श्वेते वृषे समरूढ़ा
श्वेताम्बरधरा शुचिः।
महागौरी शुभं
दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
मां दुर्गा के आठवें स्वरूप का नाम महागौरी है। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। मां दुर्गा की शक्ति अमोघ और फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कलुष धुल जाते हैं।

९:-नवमी सिद्धिदात्री:-
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यै
रसुरैरमरैरपि।
सेव्यामाना सदा भूयात
सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
मां दुर्गा की नौवीं शक्ति को सिद्धिदात्री कहते हैं। अर्थात सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। नव दुर्गाओं में मां सिद्धिदात्री का अंतिम रुप हैं। इनकी उपासना के बाद भक्तों के अन्त:करण में काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ आदि जितनी भी राक्षसी प्रवृतियां हैं उन सबका नाश हो जाता है और मन और बुद्धि की शुद्ध सात्विकता प्राप्त होती है।

#कमल किशोर डुकलान, रुड़की (हरिद्वार)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *