अरविन्द कुमार शर्मा

प्याज भी एक बड़ी बला है। ज्यादा उत्पादन हो तो किसान परेशान, कम हो तो उपभोक्ता से लेकर सरकार तक परेशान। किसान हाड़तोड़ मेहनत कर जब प्याज की फसल लेकर मंडी में पहुंचता है, तब आवक बढ़ने के कारण उसे सही दाम नहीं मिल पाते। अभी दो साल पहले महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी अधिक फसल होने के कारण उत्पादक किसान लागत भी नहीं निकाल पा रहे थे। याद करने वालों को पता है कि अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते विपक्ष ने प्याज की बढ़ती कीमतों को भी उनकी सरकार के विरोध का मुद्दा बनाया था। लगता है कि इस साल भी, खासकर अगले दो महीने प्याज के मामले में अच्छा नहीं गुजरने वाला है। नवंबर में प्याज की नई फसल आने के बाद ही कुछ सुधार की गुंजाइश दिखाई देती है। फिलहाल, प्याज का रूलाना देखना हो तो बाजार में जाइए। पितृपक्ष जैसा समय होने के बावजूद, जब प्याज की कम खपत होती है, प्याज के दाम आसमान छूने लगे हैं। दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सामान्य प्याज का खुदरा भाव 50 रुपये तक पहुंच गया है। माना जाता है कि देश में प्याज की सबसे अधिक खपत मुंबई में हुआ करती है। वहां प्रतिदिन करीब एक हजार मीट्रिक टन प्याज की खपत होती है।
मुंबई में पिछले सप्ताहांत, यानी शुक्रवार 13 सितम्बर को यह आलम था कि निम्न गुणवत्ता वाली छोटी प्याज भी 25 से 26 रुपये की दर से थोक में बिकी। बड़ी और बेहतर की थोक दर तो 30 से 33 रुपये प्रति किलोग्राम थी। आम लोगों तक खुदरा मूल्य निम्न गुणवत्ता वाली का 35 से 40 रुपये और अच्छे प्याज की दर 40 से 50 रुपये पहुंच गयी थी। व्यापारी आशंका जता रहे हैं कि ये कीमतें और भी बढ़ सकती हैं।
लोक कल्याणकारी राज्य में सरकार के दायित्वों में यह प्राथमिक है कि लोगों को खाने-पीने की चीजें उचित मूल्य पर मिलें। इसीलिए सरकारी राशन दुकानों का इंतजाम किया जाता है। कई बार सरकार अपनी ओर से कोई विशेष खाद्य सामग्री बिकवाने की व्यवस्था भी करती है। अभी कुछ ही साल पहले दिल्ली सहित कई बड़े शहरों में प्याज बिक्री के इंतजाम किए गये थे। इस साल समय रहते सरकार कोशिश कर रही है कि बड़ी दिक्कत नहीं आए। हुआ यह है कि इस साल बेहतर मॉनसून के चलते प्याज की अच्छी फसल का अनुमान लगाया गया था। लेकिन ज्यादा बारिश के कारण महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे मुख्य प्याज उत्पादक राज्यों में प्याज की फसल तबाह हो गई। एक अनुमान के मुताबिक, महाराष्ट्र में तो अच्छी किस्म की प्याज का स्टॉक 15 फीसद तक सिमट गया है। बाकी या तो भींग गयी है अथवा सड़ने की कगार पर है।
सरकार ने आने वाले समय का अनुमान कर दो हजार मीट्रिक टन प्याज का आयात करने का फैसला किया है। सरकार की संस्था मेटल्स एंड मिनरल्स ट्रेडिंग क़ॉरपोरेशन यानी एमएमटीसी यह आयात करेगी। खास बात यह है कि जिन देशों से प्याज मंगाई जाएगी, उनमें चीन, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान भी शामिल है। इसके लिए एमएमटीसी ने छह सितम्बर को टेंडर जारी किया था। याद रखना होगा कि पाकिस्तान से तनाव के बावजूद भारत ने उसकी अपील पर उसे जीवन रक्षक दवाएं भेजी है। अनुमान है कि प्याज की यह आवक नवम्बर तक हो सकेगी। इतना समय लगने पर विशेषज्ञ इस कोशिश को बहुत सार्थक नहीं मानते। वे कहते हैं कि नवम्बर तक तो हमारे किसानों की फसल भी आ जाएगी। तब इससे उनकी ही फसल की उचित कीमत नहीं मिल सकेगी। वैसे दूसरा पक्ष यह भी कह रहा है कि इससे किसानों का नुकसान नहीं होगा, क्योंकि अपने यहां प्याज की खपत को देखते हुए यह आयात बहुत कम है। जब देश में हर महीने 15 लाख मीट्रिक टन और अकेले मुंबई में हर रोज एक हजार मीट्रिक टन प्याज की खपत होती है, तो दो हजार मीट्रिक टन प्याज का आयात क्या मायने रखता है? वैसे याद रखना होगा कि सरकार के पास 50 हजार मीट्रिक टन प्याज का बफर स्टॉक भी है। मांग बढ़ने पर इस स्टॉक का भी उपयोग किया जा सकता है। देखना है कि सरकार प्याज के अपने बफर स्टॉक का उपयोग करती है या देशवासी यों ही प्याज के आंसू बहाते रहते हैं।
(लेखक पत्रकार हैं।)