गांवों की बदहाली के बीच डाॅ.निशंक की घोषणा से बंधी उम्मीद
देहरादून। उत्तराखंड में पलायन मुख्य समस्या है। अभी इसका कोई ठोस समाधान नजर नहीं आ रहा है। गांवों की वीरानगी चिंतित करती है। गांवों से होने वाले पलायन के पीछे बुनियादी समस्याएं जिम्मेदार हैं। शिक्षा इनमें प्रमुख है। उत्तराखंड के संदर्भ में बात करें तो यहां रोजगार के बाद शिक्षा के कारण लोग उन गांवों को छोड़कर कस्बों और शहरो में बस गए हैं, जिन गांवों को आबाद करने के लिए एक जमाने के लोगों ने अपना पूरा जीवन लगा दिया था। इस बीच राज्य के हर विकासखंड में एक केंद्रीय विद्यालय खोलने की केंद्रीय शिक्षा मंत्री की घोषणा उम्मीद की एक किरण दिखाती है। राज्य बने बीस साल होने के बाद उत्तराखंड से पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा है। पलायन आयोग के आंकड़े राज्य में वर्तमान में बदहाली और भविष्य की चिंताओं की ओर संकेत करते हैं। आयोग की रिपोर्ट बताती है कि यहां 10 साल में 90 हजार लोग स्थायी/अस्थायी तौर पर गांव छोड़ चुके हैं। 58 गांव आबादी शून्य हो चुके हैं। 71 गांवों से 50 प्रतिशत पलायन हुआ है। 19 हजार लोग पूरी तरह गांव छोड़कर चले गए हैं। नए आंकड़े कुछ और चैंकाने वाले हो सकते हैं। राज्य से पलायन रोकने के सरकारी प्रयास विफल रहे हैं। कोरोना काल में आए बहुत से प्रवासियों के यहां रुकने की उम्मीद थी, लेकिन उनमें भी बहुत कम ही यहां रुक पाएंगे। राज्य से पलायन के कारण रोजगार है। अधिकांश गांवों में खेती इतनी नहीं कि उस पर निर्भर रहा जा सके। इसलिए युवा थोड़ा-बहुत पढ़कर चंडीगढ़, दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों की ओर रुख करता है। शिक्षा की दशा यहां बहुत ठीक नहीं हैं। विद्यालय तो खुल गए हैं, लेकिन कहीं अध्यापकों का रोना तो कहीं अन्य सुविधाओं का अभाव है। गुणवत्ता की समस्या है। कस्बों और शहरो में कुकुरमुत्तों की तरह खुले निजी स्कूल लोगों को आकर्षित करते हैं। लोग कीर्तिनगर, श्रीनगर, हल्द्वानी, रामनगर, घनसाली, देहरादून, रुद्रपुर जैसे शहरों में बच्चों को किराये के कमरे में रहकर पढ़ा रहे हैं। उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों का धड़ाधड़ बंद होना इस बात का प्रमाण है कि लोगों का इनसे या तो मोह भंग हो चुका है या फिर उनमें पढ़ने के लिए विद्यार्थियों का टोटा है। भविष्य में और कितने स्कूल बंद होंगे, यह कहा नहीं जा सकता। जो युवा चंडीगढ़-दिल्ली में नौकरी कर रहे हैं, उनकी पत्नियां गांव के निकटवर्ती कस्बों में बच्चों को पढ़वा रही हैं, यह इस समय उत्तराखंड का बड़ा चिंतनीय और कष्टदायी पहलू है। संभवतः इस समस्या के दृष्टिगत राज्य में पिछली हरीश रावत नीत कांग्रेस सरकार ने उत्तराखंड के हर विकासखंड में एक आदर्श विद्यालय खोले थे। यानी पहले से चल रहे इंटर काॅलेजों को आदर्श विद्यालय के रूप में परिवर्तित किया गया था, लेकिन वे भी अपने लक्ष्य में नहीं के बराबर सफल रहे। उनका नाम ही उन्हें ’आदर्श’ दिखाता है। शायद ही आदर्श बनने के बाद उनमें छात्र संख्या बढ़ी हो। इधर, केंद्रीय शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरिया ’निशंक’ घोषणा कर चुके हैं कि हर ब्लाॅक में एक केंद्रीय विद्यालय खोला जाएगा और इसकी शुरुआत उत्तराखंड से ही की जाएगी। डाॅ. ’निशंक’ का यह ऐलान कहीं न कहीं गांवों की शिक्षा की दशा सुधारने की मंशा का संकेत है। उत्तराखंड के संदर्भ में देखें तो ये विद्यालय यदि मुख्यालयों (ब्लाॅक मुख्यालयों के आसपास पहले से ही अनेकों सरकारी और निजी स्कूल हैं)से बहुत दूरस्थ इलाकों में खुलते हैं तो शिक्षा के लिए होने वाले पलायन पर काफी हद तक रोक लगाने में सफल हो सकेंगे। बहुत हद तक गुंजाइश है कि आठ से दस हजार रुपये तक खर्च करके कस्बों में बच्चों को पढ़ा रहे लोग अपने बच्चों को गांवों की ओर ले जाएंगे। केंद्रीय विद्यालयों के निकट बाजार विकसित होगा और स्थानीय लोगों की सब्जियां, दूध इत्यादि बिकेगा। गांवों के आसपास विकास होगा और स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा। यदि ऐसा होता है कि तो राज्य के 95 विकासखंडों की दशा बहुत हद तक सुधर जाएगी। बता दें कि 15 दिसंबर, 1963 में स्थापित केंद्रीय विद्यालयों में एनसीईआरटी का पाठ्यक्रम का चलता है और ये सीबीएसई से संबद्ध होते हैं। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की शिक्षा देने वाले इन विद्यालयों का मुख्य लक्ष्य राष्ट्रीय एकता और बच्चों में भारतीयता की भावना पैदा करना है। इनमें प्रवेश के लिए प्राथमिकता केंद्र सरकार के कर्मचारियों, बीएसएफ, सीआरपीएफ, सेना इत्यादि कार्मिकों के बच्चों को दी जाती है। अन्य लोग भी इनमें बच्चों को पढ़ाते हैं। वर्तमान में 1240 के लगभग केंद्रीय विद्यालय हैं। इनमें एक-एक विद्यालय माॅस्को(रूस), काठमांडु तथा तेहरान(ईरान) में है। इन विद्यालयों का प्रबंधन केंद्रीय विद्यालय संगठन नामक संस्था करती है। इस संबंध में केंद्रीय शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल ’निशंक’ का कहना है कि यह केंद्र सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना है। आल वेदर रोड के बाद यह उत्तराखंड के लिए केंद्र सरकार की दूसरी बड़ी सौगात होगी। केंद्रीय शिक्षा मंत्री के अनुसार वे इस संबंध में मुख्यमंत्री से लगातार संपर्क में हैं। हम चाहते हैं कि जल्द से जल्द यह योजना धरातल पर उतरे और गांवों के लोगों को इसका लाभ पहुंचे।