केंद्रीय मंत्री एवं प्रसिद्ध डायबिटीज विशेषज्ञ, डॉ. जितेंद्र सिंह ने डायबिटीज और कोविड के बीच परस्पर-संबंध के बारे में जन जागरूकता अभियान चलाने का आह्वान किया
नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह, जो प्रतिष्ठित आरएसएसडीआई (रिसर्च सोसायटी फॉर स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया) के जीवन संरक्षक होने के साथ-साथ डायबिटीज और चिकित्सा के पूर्व प्रोफेसर भी रहे हैं, ने आज कहा कि मधुमेह और कोविड के बीच परस्पर-संबंध के बारे में ज्यादा जन जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है, क्योंकि दोनों के कारण और प्रभावी संबंधों के बारे में कुछ आशंकाएं व्याप्त हैं।
‘डायबिटीज इंडिया’ वर्ल्ड कांग्रेस- 2021 के मुख्य अतिथि क रूप में अपना उद्घाटन भाषण देते हुए, डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि कई अन्य क्षेत्रों की तरह, यहां तक कि अकादमी में भी, कोविड ने हमें विपरीत परिस्थितियों में नए मानदंडों की खोज करने के लिए प्रेरित किया है, जिसे इतने बड़े पैमाने पर इस प्रकार की अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की सफलता में स्पष्ट से देखा जा सकता है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि पिछले दो दशकों में भारत में टाइप 2 डायबिटीज मेलिटस में वृद्धि देखने को मिल रही है, जिसने अब अखिल भारतीय स्तर पर एक अनुपात को प्राप्त कर लिया है। टाइप 2 डायबिटीज, जो कि दो दशक पहले तक मुख्य रूप से दक्षिण भारत में ही प्रचलित हुआ करता था, आज उत्तर भारत में भी समान रूप से फैला हुआ है और साथ ही, यह महानगरों, शहरों और शहरी इलाकों से ग्रामीण इलाकों में भी स्थानांतरित हो चुका है।
उन्होंने जागरूकता फैलाने के लिए कोविड – मधुमेह अकादमिक बैठकों की एक श्रृंखला की आवश्यकता पर भी बल दिया। डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा की कोरोना ने हमें नए मानदंडों के साथ जीना सिखाया है साथ ही उन्होंने चिकित्सकों को औषधीय और गैर-औषधीय प्रबंधन के विभिन्न तरीकों पर जोर देने को कहा जो बीते कुछ वर्षों के दौरान महत्व खो चुके थे। उन्होंने यहां तक कहा कि कोविड महामारी खत्म होने के बाद भी सोशल डिस्टेंसिंग का अनुशासन और ड्रॉपलेट इनफेक्शन से बचाव कई अन्य प्रकार के संक्रमणों के खिलाफ सुरक्षात्मक उपाय के रूप में कार्य करेगा, विशेष रूप से उन लोगों के लिए जो डायबिटीज के शिकार हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि डायबिटीज से पीड़ित रोगियों की स्थिति प्रतिरक्षा-समझौता वाली होती है, जो उनके प्रतिरोधक क्षमता को कम करती है और उन्हें कोरोना जैसे संक्रमणों के साथ-साथ परिणामी जटिलताओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाती है। उन्होंने कहा कि यह स्थिति तब और भी गंभीर हो सकती है जब डायबिटीज से पीड़ित रोगी को गुर्दे की बीमारी हो या डायबिटीज-नेफ्रोपैथी, गुर्दे की पुरानी बीमारी आदि भी हो। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि रक्त शर्करा का स्तर और लक्षित अंग की क्षति के खिलाफ सुरक्षात्म उपायों वाले सख्त ग्लाइसेमिक नियंत्रण के बुनियादी सिद्धांत, जो अन्य डायबिटीज में भी प्रचलित हैं, महामारी के दौरान भी समान रूप से लागू होते हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात को जोर देकर कहा कि यहां पर यह समझना महत्वपूर्ण है कि यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक डायबिटीज के रोगी को कोविड से संक्रमण हो और यह भी कि प्रत्येक कोविड संक्रमण से पीड़ित डायबिटीज के रोगी में जटिलताएं उत्पन्न हो।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने डायबिटीज इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष, स्वर्गीय प्रो शौकत एम सादिकोट को स्नेहपूर्वक याद किया और कहा कि उनकी विरासत भारत में मधुमेह के बारे में शिक्षा और जागरूकता फैलाने के उद्देश्य के साथ लगातार काम कर रही है।
इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के अध्यक्ष, डॉ. अख्तर हुसैन ने अपने संबोधन में कहा कि चीन के बाद भारत सबसे ज्यादा डायबिटीज से प्रभावित है और पिछले कुछ वर्षों में इसके रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि देखी जा रही है। उन्होंने यह भी चेतावनी दिया कि पोस्ट कोविड युग में जटिलताएं और ज्यादा बढ़ सकती है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने डायबिटीज के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए देश के सभी हिस्सों के कई डॉक्टरों को पुरस्कृत किया। उन्होंने मुंबई के प्रसिद्ध एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. शशांक जोशी, अहमदाबाद के डॉ. बंशी साबू, डायबिटीज इंडिया के ट्रस्टी, डॉ. अनूप मिश्रा, डायबिटीज इंडिया के अध्यक्ष, डॉ. एसआर अरविंद और आयोजकों की पूरी टीम की सराहना करते हुए कहा कि वे दुनिया के चार महाद्वीपों से सर्वश्रेष्ठ संकाय को एक साथ लेकर आए हैं।